नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले का इस्तेमाल शीर्ष अदालत से आदेश लेने के लिए नहीं किया जा सकता. दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ये दलील दी.
इन याचिकाओं में राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. मेहता ने पीठ से कहा कि सीआईसी के आदेश का इस्तेमाल राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के लिए आदेश (आधिकारिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए सरकार को एक न्यायिक आदेश) मांगने के संदर्भ के तौर पर नहीं किया जा सकता है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की तरफ से पेश वकील पीवी दिनेश ने कहा कि पार्टी को वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के संबंध में आरटीआई पर कोई आपत्ति नहीं है.
माकपा के वकील ने कहा कि लेकिन (आरटीआई के तहत) यह अनुरोध नहीं किया जा सकता है कि किसी उम्मीदवार का चयन क्यों किया गया...ना ही किसी पार्टी की निर्णय लेने की आंतरिक प्रक्रिया पर विवरण मांगा जा सकता है.
एक याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सीआईसी ने 2013 में एक आदेश पारित किया था कि राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से कर संबंधी छूट और भूमि जैसे लाभ प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाया जाना चाहिए.