नई दिल्ली : चीन इन दिनों नेपाल के तिब्बती बौद्धों को तिब्बत लौटने के लिए आकर्षित कर रहा है, इससे इसका असर भारत पर पड़ने की संभावना है. वहीं चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के रूप में पंचेन लामा का चीन समर्थन करता रहा है, जबकि भारत का समर्थन करने वाले एक अन्य लामा इन दिनों दूरी बनाए हुए हैं और इन दिनों वाशिंगटन में हैं. एक तरफ जहां भारत की नेपाल के साथ खुली सीमा है और दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच संस्कृति के क्षेत्र में गहरे सौहार्दपूर्ण भी संबंध हैं जो लोगों की बातचीत, व्यापार और अन्य के लिए उपयुक्त हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से चीन-नेपाल में भारत को कमजोर करने की हर कोशिश कर रहा है, इसे नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली (Former Nepal PM KP Sharma Oli) के कार्यकाल में भी देखने को मिला था.
इस संबंध में आई रिपोर्टें इस तरफ इशारा कर रही हैं कि चीन ने नेपाली तिब्बती बौद्धों को लुभाने के लिए अपना रुख तेज करने के साथ ही तिब्बत में उनके प्रत्यावर्तन को बढ़ावा दे रहा है. इसकी वजह से भारत को कठिन स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि एसएसी पर चीनी हमले के बाद से भारत-चीन के संबंध इस समय सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए भारत के पूर्व राजदूत और प्रोफेसर एसडी मुनि (India former ambassador Professor SD Muni) ने कहा कि इस तरह का घटनाक्रम चीन के द्वारा किए जाने में कोई संदेह नहीं है क्योंकि, हम दलाई लामा को अपने साथ रख रहे हैं और हम नहीं चाहते कि चीनी चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के बारे में कोई फैसला करें.
चीनियों द्वारा पंचेन लामा को प्रमुखता दिए जाने के संकेत देने वाली रिपोर्टों के बीच चीन दलाई लामा के उत्तराधिकारी को तय करने के अपनी पैठ मजबूत बना रहा है. वहीं पंचेन लामा को बीजिंग के एक नियुक्त प्रतिनिधि के रूप में देखा जा रहा है. इस बारे में प्रो. मुनि ने कहा कि चीनी पंचेन लामा का समर्थन करते रहे हैं, जबकि हम एक अन्य लामा का समर्थन कर रहे हैं जो अभी वाशिंगटन में हैं. इससे प्रतीत होता है कि इस तरह के घटनाक्रम से नई दिल्ली में भी उथल-पुथल के हालात पैदा हो सकते हैं.