नई दिल्ली :अफगानिस्तान और तालिबान के बीच लड़ाई जारी है. इसी बीच तीन दिवसीय वार्ता-'विस्तारित ट्रोइका' कतर के दोहा में चल रही है, जिसे रूस द्वारा युद्धग्रस्त देश में शांति प्रक्रिया पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया था, जिसमें तालिबान, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और अन्य देशों की की उपस्थिति रही.
एक विश्लेषक का मानना है कि इंट्रा-अफगान शांति वार्ता का कोई फल नहीं होगा क्योंकि इस समय तालिबान को लगता है कि उनकी गति/ परिस्थिति (momentum) उनके पक्ष में है और उन्हें अपनी गति का कोई बड़ा विरोध नहीं दिखता है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा, जब तक अमेरिका कुछ रेडलाइनों को सैन्य रूप से सुदृढ़ करना शुरू नहीं करता, तालिबान के लिए अच्छे विश्वास में बातचीत करने के लिए शायद ही कोई प्रोत्साहन है. कुल मिलाकर, इंट्रा-अफगान प्रक्रिया टूट गई है और मुझे चीन, पाकिस्तान या अमेरिका और रूस द्वारा इन्हें एक साथ वापस लाने की कोशिश करने की कोई संभावना नहीं दिख रही है.
इस समय राजनीतिक सुलह प्रक्रिया खस्ताहाल है और आने वाले वर्षों में अफगानिस्तान के लिए निश्चित रूप से चुनौती यह होगी कि तालिबान विरोधी ताकतें एक ऐसा मोर्चा कैसे पेश कर सकती हैं जो तालिबान को अपनी सैन्य चाल पर पुनर्विचार करने के लिए पर्याप्त और शक्तिशाली हो. फिलहाल तालिबान को लगता है कि वह बल के इस्तेमाल से सत्ता हासिल कर सकता है और इस सोच के साथ वे बातचीत करने में विश्वास नहीं रखते. इसलिए, तथाकथित शांति प्रक्रिया से कुछ हासिल नहीं होगा और चुनौतियां जारी रहेंगी. अफगानिस्तान में गृहयुद्ध और सैन्य संघर्ष की ओर आंदोलन जारी है. इसमें अफगान के लोग सबसे ज्यादा पीड़ित हैं.
पढ़ें :-तालिबान ने अफगान सेना के 700 ट्रकों और दर्जनों गाड़ियों पर किया कब्जा
तालिबान ने हाल के सप्ताहों में पूरे अफगानिस्तान में तेजी से लाभ कमाया है जो संकेत देता है कि विद्रोही समूह अफगानिस्तान में शांति वार्ता को प्राथमिकता नहीं दे रहा है.
बता दें कि विस्तारित ट्रोइका बैठक में शीर्ष अफगान शांति वार्ताकार अब्दुल्ला अब्दुल्ला और अफगानिस्तान सुलह के लिए अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि राजदूत ज़ाल्मय खलीलज़ाद के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र, कतर, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों की भागीदारी देखी गई. भारत को फिर से बैठक से बाहर रखा गया है.
विस्तारित ट्रोइका से भारत के बहिष्कार पर टिप्पणी करते हुए प्रो. पंत ने कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत को छोड़ दिया गया है क्योंकि पाकिस्तान और चीन वास्तव में भारत को इसका हिस्सा नहीं बनना चाहते थे. रूस भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है, लेकिन उस पर चीन का प्रभाव काफी है. लेकिन अगर रूस ने कोशिश की होती, तब भी यह देखना बहुत मुश्किल होता है कि रूस भारत को यहां लाने के लिए चीन और पाकिस्तान को कैसे राजी करता.