नई दिल्ली :चीनी विदेश मंत्री वांग यी और उनके ईरानी समकक्ष मोहम्मद जावेद जरीफ के बीच तेहरान में $ 400 बिलियन का एक ऐतिहासिक 'व्यापक रणनीतिक साझेदार' सौदा हुआ है. यह 25 वर्षों के लिए वैध है. शनिवार को दोनों नेताओं ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए.
इस एग्रीमेंट ने ईरान में भारत की पहले से चली आ रही चाबहार परियोजना पर अपनी अंधेरी छाया डाल दी है.
इस डील के तहत चीन ने ईरान में विशाल निवेश का वादा किया है. बदले में ईरान चीन को रियायती दरों पर तेल की नियमित आपूर्ति करेगा और 25 साल तक सैन्य क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में सहयोग करेगा.
इससे पहले कुछ अपुष्ट रिपोर्टें सामने आई थीं कि चीन ईरान में अपने निवेश और हितों की रक्षा के लिए लगभग 5,000 सैनिकों को तैनात कर सकता है.
गौरतलब है कि चीन के साथ इस डील के बाद ईरान रूस के साथ भी इसी तरह के एक और समझौते के लिए तत्पर है.
ईरानी संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति समिति के अध्यक्ष मुजतबा जोनूर ने हाल ही में कहा कि ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों और डॉलर की कमी को दूर करने के लिए रूस के साथ इसी तरह का समझौता करना चाहता है.
जोनूर ने कहा कि हम रेल सेवाओं, सड़कों, रिफाइनरियों, पेट्रोकेमिकल्स, ऑटोमोबाइल, तेल, गैस, गैसोलीन और पर्यावरण आधारित कंपनियों के क्षेत्र में इन देशों के साथ संयुक्त सहयोग और द्विपक्षीय बातचीत करने का मौका तलाश रहे हैं, क्योंकि यह विदेशी प्रतिबंधों को बेअसर करने में बहुत प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं.
चाबहार परियोजना
भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता है.
इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होने था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती.
एक ऐसे समय में जब भारत क्वाड के साथ-साथ अमेरिका के शिविर में शामिल हो रहा है, क्वाड जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. वहीं चीन रूस और ईरान के साथ गठनबंधन का संकेत दे रहा है, ऐसे में यह परियोजना काफी महत्वपूर्ण है.