नई दिल्ली :चीन के सामने अब तक की सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती रेल नेटवर्क को पूरा करना है. यह नेटवर्क चेंगदू को ल्हासा (Chengdu-Lhasa Rail Project) से जोड़ता है. यह महत्वाकांक्षी रेल परियोजना 2024 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन तय समय सीमा में चेंगदू-ल्हासा रेल नेटवर्क पूरा होने में आशंका है.
बता दें कि चेंगदू-ल्हासा रेल नेटवर्क की परियोजना, 'थ्री गोरजेस डैम' (Three Gorges Dam) या ग्रेट बेंड के पास यारलुंग त्सांगपो-ब्रह्मपुत्र नदी (Yarlung Tsangpo-Brahmaputra) के नीचे सुरंग बनाने की योजना या अंतरिक्ष के किसी प्रोजेक्ट से भी कठिन है.
बता दें कि चेंगदू, एक सैन्य और एक वाणिज्यिक केंद्र है. यह सिचुआन प्रांत की प्रांतीय राजधानी है. जबकि ल्हासा 4,000 मीटर ऊंचे पठार के विशाल और उजाड़ विस्तार में स्थित तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (Tibetan Autonomous Region- TAR) का मुख्यालय है.
चीन की 13वीं पंचवर्षीय योजना का केंद्र बिंदु सिचुआन-तिब्बत रेल नेटवर्क, टीएआर और झिंजियांग सहित दक्षिण-पश्चिमी चीन के सामाजिक-आर्थिक विकास की शुरुआत करना, नेपाल में रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की योजना है.
परियोजना एक बार पूरी हाेने पर चेंगदू-ल्हासा की यात्रा लगभग 50 घंटे से कम होकर मात्र 12 घंटे की हो जाएगी. सौ साल पहले यहां घोड़े पर सवार होकर एक साल की लंबी यात्रा की जाती थी. लेकिन रेलवे नेटवर्क को अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पार न्यिंगची को मुख्य रेल हब में से एक बनाने सहित भारतीय सीमा के बहुत करीब के हिस्सों तक पहुंच बनाने की यह योजना काफी महत्वपूर्ण है.
भारत की सीमा पर सैनिकों और युद्ध उपकरणों को कम समय में तेजी से परिवहन के लिए इसका बड़ा सैन्य महत्व है. दो एशियाई दिग्गजों के बीच तनाव की पृष्ठभूमि में निहितार्थ बहुत बड़े हैं, यहां तक कि एक लाख से अधिक सैनिक सीमा के पास तैनात हैं. फिर भी प्रकृति बड़ी चुनौती पेश कर रही है जो चीन के तकनीकी कौशल को पूरी तरह से परखेगी.
1567 किमी लंबा रेल खंड सिचुआन के चेंगदू शहर से शुरू होता है और ल्हासा पहुंचने से पहले यान सिटी, कांगडिंग काउंटी, कम्दो, न्यिंगची और शन्नान के माध्यम से पश्चिम की ओर बढ़ता है. यह रेलवे लाइन अत्यधिक भूवैज्ञानिक अस्थिरता और जटिल जल वितरण प्रणालियों सहित बेहद नाजुक पारिस्थितिकी के क्षेत्रों से गुजरती है.
यहां ऊंचाई वाली कार्य कुशलता के साथ ही दूसरी बड़ी चुनौती अत्यंत कठिन और जटिल इंजीनियरिंग है क्योंकि पहाड़ों की विशाल खाई पर पुल या सतह के नीचे गहरे सुरंग बनाने के कार्य शामिल हैं. इसमें इंजीनियरिंग जटिलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि न्यिंगची-ल्हासा खंड में लगभग 120 पुल और लगभग 70 सुरंगें बननी हैं. जिनमें से सबसे लंबी सुरंग 40 किमी लंबी है जबकि सबसे गहरी सतह से 2100 मीटर नीचे है.
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चीनी मीडिया रिपोर्टों ने पीयर-रिव्यू किए गए प्रकाशन जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग जियोलॉजी में प्रकाशित एक पेपर का हवाला दिया है. जहां एक शीर्ष वैज्ञानिक को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि भूमिगत भू-तापीय गर्मी, गहरी सुरंग के काम के लिए एक दुर्गम चुनौती पेश कर रही है.
रिपोर्ट के अनुसार यहां जमीन का तापमान 89 डिग्री सेल्सियस (192 डिग्री फारेनहाइट) तक पहुंच जाता है क्योंकि कई दोषों से यादृच्छिक स्थानों पर जबरदस्त गर्मी निकलती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय और तिब्बती पठार के यूरेशियन प्लेट और भारतीय उपमहाद्वीप से टकराने के बाद बने तिब्बती पठार की ऊंचाई के अंदर भारी मात्रा में गर्मी फंस गई है.
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जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग जियोलॉजी में प्रकाशित एक हालिया पेपर सिचुआन-तिब्बत रेलवे के लिए प्रमुख इंजीनियरिंग भूवैज्ञानिक खतरों का व्यवहार्यता अध्ययन करता है. जिसमें कहा गया है कि सिचुआन-तिब्बत रेलवे दुनिया में अब तक की सबसे चुनौतीपूर्ण रेलवे परियोजना है. पेपर के निष्कर्ष परिणाम बताते हैं कि सतह और उपसतह दोनों पर इंजीनियरिंग जोखिम महत्वपूर्ण है. साथ ही परियोजना की सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकते हैं.