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चीन में ऐतिहासिक बिजली संकट : कौन है दोषी ? कोयले की कमी या शी जिनपिंग की पॉलिसी

चीन का बिजली संकट शी जिनपिंग की अपनी नीतियों की देन है. कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनने को आतुर चीन ने स्टील और बिजली की डिमांड के बीच कोयले की माइनिंग स्लो कर दी. अब इसका नतीजा पूरा चीन भुगत रहा है. अगर हालात नहीं सुधरे तो ठप पड़ी इंडस्ट्री और कम उत्पादन से सप्लाई चेन टूटने से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट हो सकती है.

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Published : Sep 30, 2021, 2:36 PM IST

China electricity crisis
China electricity crisis

हैदराबाद :चीन के 20 राज्यों में किल्लत के कारण बिजली रोटेशन में मिल रही है. कारखाने बंद हो रहे हैं. इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ने का अंदेशा है. पूर्वोत्तर चीन के तीन प्रांतों में बिजली की कमी 2022 के अप्रैल तक रहने की आशंका है. चीन के इंस्डट्रियल सेक्टर में बिजली आपूर्ति की समस्या मार्च से ही है. घरों में बिजली के उपयोग पर प्रतिबंध अभी-अभी लागू हुआ है.

चीन अभी अभूतपूर्व बिजली संकट से गुजर रहा है. आलम यह है कि कल-कारखानों के लिए बिजली की सप्लाई सीमित कर दी गई है. कई इंडस्ट्रीज को सप्ताह में सिर्फ 4 या 5 दिन बिजली दी जा रही है. इसके अलावा घरों के लिए बिजली सप्लाई भी नियंत्रित की गई है. पूर्वोत्तर चीन के कुछ हिस्सों में लोगों को घरों में वॉटर हीटर और माइक्रोवेव के उपयोग करने की सलाह दी गई है. पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में लिफ्ट और ट्रैफिक लाइट भी प्रभावित हुई हैं. पूर्वी चीन के टियांजिन में सोयाबीन प्रसंस्करण संयंत्र भी 22 सितंबर से बंद हैं.

चीन में कोयले का खनन कम होने से बिजली संकट गहराया है

बिजली संकट के कारण चीन की बड़ी अर्थव्यवस्था के धीमा होने और वहां के कारखानों में बनने वाले प्रोडक्ट की आपूर्ति पर दबाव बढ़ने का खतरा बढ़ गया है. अगर चीन की सरकार हालात पर जल्द काबू नहीं पाती है तो इसका असर भारत समेत उन देशों पर भी पड़ेगा, जो चीन से काफी सामान आयात करते हैं.

आखिर चीन में बिजली की किल्लत ( China Power Crisis) क्यों हुई ?

बताया जा रहा है कि पावरहाउस को कोयले की आपूर्ति में व्यवधान और लॉकडाउन खत्म होने के बाद उद्योगों व घरों की बढ़ती मांग के कारण बिजली की डिमांड और सप्लाई का बैलेंस गड़बड़ हो गया. मगर इसका सबसे बड़ा कारण चीन की अपनी पावर पॉलिसी है.

जलवायु परिवर्तनकी चर्चा के बीच राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्ष 2060 तक चीन को पूरी तरह से कार्बन न्यूट्रल बनाने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए चीन में उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य तय किया गया है. पर्यावरण से संबंधित प्रतिबंध लागू किए गए. बिजली के उपयोग के लक्ष्य भी निर्धारित किए गए. लक्ष्य हासिल करने के लिए चीन ने बिजली उत्पादन में कटौती पर ध्यान केंद्रित कर दिया. कोयले के स्थानीय उत्पादन में भी कड़े नियमों का असर हुआ.

पिछले तीन दिनों में भी स्टील और आयरन की कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है

लॉकडाउन खत्म होने के बाद बिजली की मांग बढ़ गई. इससे एक ओर कोयले की कीमत अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई, दूसरी ओर सरकार ने इसके व्यापक उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे बिजली की निर्माण कीमत बढ़ गई. नियंत्रित बिजली मूल्य निर्धारण प्रणाली के कारण वहां की पावर प्रोडक्शन करने वाली कंपनियों ने उत्पादन में कटौती शुरू कर दी. इस तरह औद्योगिक बिजली के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने की चीन की योजना अब धीरे-धीरे मुसीबत बनने लगी.

एक्सपर्ट मानते हैंकि अपने खादानों में कोयला खनन पर अंकुश लगाने से पहले चीन को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहिए था. मगर ऑस्ट्रेलिया के साथ बिगड़ते संबंधों के कारण उसे यह मौका नहीं मिला. ऑस्ट्रेलिया दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला निर्यातक है, जिसने चीन को कोयला निर्यात पर अंकुश लगा दिया है.

एक अन्य कारक नैचुरल गैस की वैश्विक कमी है. COVID-19 प्रतिबंधों में ढील के बाद विश्व के कई देश एक साथ ईंधन का स्टॉक करने में जुटे हैं. इस कारण नैचुरल गैस की कीमत भी बढ़ी है. बिजली के लिए इसका उपयोग अभी महंगा साबित हो रहा है.

चीन के नीति निर्माताओं ने 2019 में ही इस संकट के प्रति सरकार को आगाह किया था. उन्होंने बताया था कि चीन को 2021-2025 की अवधि में बिजली की कमी के जोखिमों को दूर करने के लिए अधिक कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का निर्माण करने की आवश्यकता है. इससे उलट चीन ने अपने कोयले के उत्पादन को ही धीमा कर दिया.

बिजली का उपयोग कैसे सीमित कर रहे हैं चीनी अधिकारी

सरकार ने अपने प्रांतों के अधिकारियों को बिजली के उपयोग सीमित करने का लक्ष्य दिया था. राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद डिमांड में बढ़ोतरी से लक्ष्य पूरा नहीं हो सका. अगस्त 2021 में पिछले साल यानी अगस्त 2020 के मुकाबले 10.1% अधिक बिजली की खपत हुई. तब झेजियांग, जिआंगसु, युन्नान और ग्वांगडोंग प्रांतों की स्थानीय सरकारों ने कारखानों से बिजली के उपयोग को सीमित करने या उत्पादन पर अंकुश लगाने के निर्देश दिए. बिजली कंपनियों और अधिकारियों ने कारखानों को नोटिस भेजकर रोजाना चार घंटे प्रोडक्शन करने या सप्ताह में दो से तीन दिन पूरी तरह से संचालन बंद करने की हिदायत दे दी. पूर्वी चीन में तो घरों में भी बिजली कटौती की जाने लगी.

बिजली की कमी से कौन से उद्योग प्रभावित हुए हैं?

बिजली के कमी से एल्यूमीनियम गलाने, स्टील बनाने, सीमेंट निर्माण और उर्वरक उत्पादन करने वाले सेक्टर प्रभावित हुए हैं. एल्युमीनियम और केमिकल बनाने वाली15 चीनी कंपनियों ने बताया है कि बिजली की कमी से उनका उत्पादन बाधित हुआ है. चीन की सरकार का कहना है कि वह बिजली की कमी को दूर करने के लिए काम करेगी, लेकिन उसने यह नहीं बताया कि वह क्या कदम उठाएगी. फिलहाल कोयले की के अंतर को खत्म करने के लिए मंगोलिया, रूस और इंडोनेशिया से इम्पोर्ट करने का आग्रह किया है.

भारत में मोबाइल फोन और खिलौने का बाजार चीन पर ही टिका है, अगर वहां प्रोडक्शन में कमी आई तो इसके रेट बढ़ सकते हैं

चीन के पावर क्राइसिस से दुनिया क्यों है चिंतित

चीन में बिजली की कमी से बंद हो रहे कारखाने दुनिया की चिंता का कारण बने हैं. इसका असर यह है कि विश्व का सप्लाई चेन प्रभावित हो सकता है और कई अर्थव्यवस्थाएं दबाव में आ जाएंगी. ग्लोबल मार्केट में दवाइयों के अलावा स्टील, एल्युमीनियम समेत कई मेटल के दामों में तेजी आ सकती है. भारत में पिछले तीन दिनों में ही स्टील के दाम में1500 रुपये प्रति टन इजाफा हो गया है. इसके अलावा वैश्विक बाजारों में कपड़ा, खिलौनों से लेकर मशीन के पुर्जों तक आपूर्ति की कमी भी हो जाएगी. चीन में उत्पादन कम होने के बाद पैदा होने वाले गैप को तुरंत नहीं भरा जा सकता है. भारत में मोबाइल फोन, गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक सामान के आयात पर भी प्रभाव पड़ना तय है. इसके अलावा चीन में रियल एस्टेट सेक्टर भी सुस्त पड़ा है. आर्थिक और कारोबारी गतिविधियों में कमी आर्थिक मंदी की ओर भी दुनिया को धकेल सकते हैं. इस प्रॉब्लम के बीच कुछ एक्सपर्ट हालात को भारत के अनुकूल मानते हैं. उनका मानना है कि इंडस्ट्री सेक्टर में प्रॉब्लम के कारण यूरोप की कंपनियां निवेश के लिए भारत का रुख कर सकती हैं.

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