नई दिल्ली : भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर चीन एक बार फिर चालबाजी करता दिख रहा है. लद्दाख में पैंगोंग लेक पर चीन की गतिविधि देखी गई है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने पैंगोंग झील पर एक पुल का निर्माण शुरू किया है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक पुल के निर्माण के बाद चीनी सैनिकों को पैंगोंग त्सो झील (China Pangong Lake Bridge) के किसी भी किनारे पर अपनी मजबूत मौजूदगी सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पैंगोंग झील के जिस हिस्से पर चीन पुल बना रहा है, वह सबसे संकरा क्षेत्र है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पुल और सड़कें बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रही है. पुल बनने से 200 किलोमीटर की दूरी मात्र 40-50 किलोमीटर रह जाएगी.
गौरतलब है कि 135 किमी लंबी पैंगोंग त्सो भूभाग से घिरी हुई झील है. इसका कुछ हिस्सा लद्दाख और बाकी हिस्सा तिब्बत में है. मई 2020 में भारत और चीन के बीच तनाव की शुरुआत इसी क्षेत्र में हुई थी.
पैंगोंग झील इलाके में पुल निर्माण पर ट्विटर यूजर एसए फिलिप ने लिखा कि चीन 29-30 अगस्त, 2020 की दरम्यानी रात को हुए भारतीय सेना के ऑपरेशन से बौखला गया था.
फिलिप ने कहा कि चीन की निर्माण गतिविधि भविष्य में भारतीय सेना के संभावित अभियानों का मुकाबला करने का प्रयास है. उन्होंने कहा कि चीन अपने क्षेत्र में पैंगोंग त्सो पर पुल का निर्माण (bridge on PangongTso) कर रहा है. चीन की ओर से अधिक वैकल्पिक सड़कों का निर्माण किया जा रहा है.
पैंगोंग लेक के पास चीन कर रहा ब्रिज का निर्माण सुप्रीम कोर्ट में भारत और चीन के बीच युद्ध का जिक्र
नवंबर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट में भी भारत-चीन सीमा विवाद (India China border dispute) का जिक्र हुआ था. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर सेना अपने मिसाइल लॉन्चर भारत-चीन सीमा तक (missile launchers and machineries upto the northern China border) नहीं ले जा सकती तो युद्ध कैसे लड़ेगी.
रक्षा मंत्रालय की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा था, अगर युद्ध होता है तो असलहों की कमी के साथ सेना चीन का मुकाबला कैसे करेगी. केंद्र ने कहा था कि ये दुर्गम इलाके हैं जहां सेना को भारी वाहनों, मशीनरी, हथियारों, मिसाइलों, टैंकों, सैनिकों और खाद्य आपूर्ति स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है.
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सरकार ने कहा था, हमारी ब्रह्मोस मिसाइल 42 फीट लंबी है और इसके लॉन्चर ले जाने के लिए बड़े वाहनों की जरूरत है. अगर सेना अपने मिसाइल लॉन्चर और मशीनरी को उत्तरी चीन की सीमा तक नहीं ले जा सकती है, तो वह युद्ध कैसे लड़ेगी. इन दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ ने सड़क चौड़ीकरण के खिलाफ अपने पहले के आदेश को संशोधित करने संबंधी रक्षा मंत्रालय की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दिसंबर में भी आई चीनी निर्माण की खबर
इससे पहले गत 22 दिसंबर, 2021 को पैंगोंग त्सो झील के किनारों की सेटेलाइट तस्वीरें (pangong tso satellite image) सामने आई थीं. इनमें दावा किया गया कि चीन ने पैंगोंग त्सो झील के किनारों पर निर्माण किया है. इस प्रकरण को लेकर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सरकार पर चीन-भारत सीमा विवाद के मुद्दे पर संसद में चर्चा न कराने के आरोप लगाए थे. तिवारी ने दावा किया था कि लोक सभा सचिवालय ने इस मुद्दे पर पूछे जाने वाले 17 सवालों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया.
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दिसंबर, 2021 में सामने आईं सेटेलाइट तस्वीरें मैक्सर (@Maxar) की मदद से जारी की गई. तस्वीरों को जैक डिट्चो (Jack Detsch) ने ट्वीट किया. जैक ने ट्विटर बायो में खुद को फॉरेन पॉलिसी मैगजीन का रिपोर्टर बताया. इस आधार पर मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि चीन ने पैंगोग त्सो इलाके में संभावित हेलीपैड के अलावा स्थायी शिविर जैसे निर्माण किए हैं. तस्वीरों में चीन की जेटी देखी जा सकती है. पैंगोग त्सो के किनारों पर किए गए कथित निर्माण पर जैक डिट्चो ने लिखा था कि सेटेलाइट फोटो से स्पष्ट होता है कि चीन ने पैंगोंग त्सो के किनारे अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है.
संसद के मानसून सत्र में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर राज्य सभा में बयान दिया था. राजनाथ सिंह ने कहा था कि पैंगोग झील क्षेत्र से सेनाएं पीछे हटाने को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति बन गई है. उन्होंने कहा था कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांतिपूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने यह भी कहा था कि चीन को एक इंच भी जमीन नहीं दी जाएगी.
फरवरी, 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 29-30 अगस्त, 2020 की रात को भारतीय सेना ने चीनी सेना के रवैये को बदलने वाले पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट के पास एक सफल ऑपरेशन किया. इस मास्टर स्ट्रोक ने पैंगोंग त्सो के पास भारतीय सेना को मजबूत बढ़त दी थी.
फरवरी, 2021 में ही पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील क्षेत्र के किनारे से भारतीय और चीनी सेना और टैंक के विघटन (disengaging) की तस्वीरें सामने आई थीं. तस्वीरों में देखा गया था कि चीनी सैनिकों ने अपने रहने के लिए बनाए गए शेल्टर (आश्रय) को नष्ट किया था.
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इससे पहले जुलाई, 2020 में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने वीडियो कॉल पर चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बातचीत की थी. बातचीत काफी सौहार्दपूर्ण रही थी. इससे संबंधित मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत और चीन की सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से थोड़ी पीछे हट गई हैं. जानकारी के अनुसार डोभाल और वांग यी के बीच बातचीत का मुख्य केंद्र शांति स्थापित करना और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए एक साथ काम करना था. हालांकि, सूत्रों ने कहा था कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिक अभी तक पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील और डेपसांग से पीछे नहीं हटे हैं. सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच सबसे विवादास्पद मुद्दा पैंगोंग झील के फिंगर-4 क्षेत्र और डेपसांग में चीनी सैनिकों का पीछे हटना लगभग नगण्य है.
नवंबर, 2020 में आई रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत और चीन की सेनाएं साल 2021 की शुरुआत या अप्रैल-मई में तय की गई समय सीमा से पहले अपने-अपने मोर्चे पर वापस लौट जाएंगी. समाचार एजेंसी एएनआई ने सैन्य सूत्रों के हवाले से विघटन की योजना की जानकारी दी थी. इसमें बताया गया है कि पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र में वार्ता से एक सप्ताह की अवधि में तीन चरणों में यह योजना लागू की जानी है.
बता दें कि भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर विवाद चल रहा है. एलएसी वह एरिया है जहां पर अभी तक किसी भी तरह से क्षेत्र को दो देशों के बीच न बांटा गया हो, जैसे कि भारत और चीन के बीच है. चीन के साथ लगी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल करीब 3,488 किलोमीटर की है, जबकि चीन मानता है कि यह बस 2,000 किलोमीटर तक ही है. यह सीमा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.
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एक तथ्य यह भी है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के 58 साल बीत चुके हैं, लेकिन अक्साइ चीन और लद्दाख में क्लियर डिमार्केशन नहीं हो सका है. मई, 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद पूर्वी लद्दाख में दोनों देश अप्रत्याशित तनाव बढ़ गया था. गलवान हिंसा के बाद एलएसी को लेकर गतिरोध के मुद्दे पर भारत और चीन के सैन्य अधिकारी कई दौर की वार्ता कर चुके हैं. दोनों ही देश एक-दूसरे को अपने-अपने क्षेत्र में रहने की हिदायत देते रहे हैं.
गलवान घाटी में पैंगोग त्सो झील के पास हुई हिंसक झड़पमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे. चीन के भी 40 से अधिक सैनिक मारे गए थे. पैंगोंग त्सो क्षेत्र में पांच मई की शाम भारत और चीन के लगभग 250 सैनिकों के बीच हिंसक टकराव हुआ. पैंगोंग त्सो के आसपास फिंगर क्षेत्र में भारत द्वारा एक महत्वपूर्ण सड़क बनाए जाने और गलवान घाटी में दारबुक-शयोक-दौलत बेग ओल्डी को जोड़ने वाली एक और महत्वपूर्ण सड़क के निर्माण पर चीन का कड़ा विरोध टकराव का कारण बना.
जून, 2020 में विदेश मंत्रालय ने भी पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी पर चीन के दावे को गलत करार दिया था. विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया में बीजिंग को याद दिलाया कि इस तरह के दावे दोनों पक्षों के बीच सीमा विवाद पर अब तक बनी सहमति के विपरीत हैं. विदेश मंत्रालय ने कहा था, भारत और चीन गत छह जून को वरिष्ठ कमांडरों के बीच हुई वार्ता में लद्दाख में तनावपूर्ण स्थिति को 'जिम्मेदार तरीके' से हल करने और वार्ता में बनी सहमति को लागू करने पर राजी हुए थे.
लद्दाख की गलवान घाटी हिंसा के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सितंबर, 2020 में भारत-चीन गतिरोध को लेकर संसद में बयान दिया था. लोक सभा में रक्षा मंत्री राजनाथ ने कहा कि हम शांति चाहते हैं, किंतु हमारी सेना हर चुनौती से निबटने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा था, भारत और चीन सीमा मुद्दा अभी भी अनसुलझा है. अब तक, पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान नहीं हुआ है. चीन ने एलएसी और आंतरिक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सेना की बटालियन और सेनाएं जुटाई हैं. पूर्वी लद्दाख, गोगरा, कोंगका ला, पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण में कई बिंदु हैं भारतीय सेना ने इन क्षेत्रों में काउंटर तैनाती की है.
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ऐसा नहीं है कि भारत और चीन के बीच बातचीत से विवाद सुलझे नहीं हैं. दोनों देशों के बीच 1987 में सनदोरंगचु रीजन विवाद, 2013 में देपसांग विवाद, 2013 में चुमार और साल 2017 में डोकलाम का गतिरोध बातचीत से ही खत्म हुआ था.
बता दें कि भारत के पूर्वी हिस्से में एलएसी और 1914 के मैकमोहन रेखा के संबंध में स्थितियों को लेकर भी चीन अड़ंगा डालता रहा है, अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र पर चीन अक्सर अपना हक जताता रहता है ,उसी तरह उत्तराखंड के बाड़ाहोती मैदानों के भू-भाग को लेकर भी चीन विवाद करता रहता है, वहीं भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है, इन्हीं सब चीजों को लेकर आज तक एलएसी पर विवाद चलता रहा है.
साल 1913-1914 में ब्रिटेन और तिब्बत के बीच शिमला समझौता हुआ था. चीन के साथ लगती तिब्बत की सीमा पर स्थिति स्पष्ट करने के मकसद से हुए इस समझौते में सर हेनरी मैकमोहन मुख्य वार्ताकार थे. इसी वजह से रेखा को मैकमोहन लाइन कहा जाता है. हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी. इसके तहत अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा माना गया.
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मैकमोहन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी का ग्रेट बैंड है, यारलूंग जांगबो नदी के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती थी, इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.