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छत्तीसगढ़ : गांव के तालाब में तैयार हो रहे राष्ट्रीय स्तर के तैराक

दुर्ग के पुरई गांव को तैराकों का गांव कहें, तो गलत नहीं होगा. गांव के हर घर से एक तैराक निकल रहा है. यहां के बच्चे नेशनल खेल चुके हैं और ओलंपिक में खेलने का सपना है. गांव को प्रोत्साहन की जरूरत है, ताकि छत्तीसगढ़ का नाम पूरे देश में ऊंचा हो सके.

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Published : Mar 25, 2021, 9:34 AM IST

swimming training in a pond
swimming training in a pond

दुर्ग : छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुरई ग्राम पंचायत को आज तैराकों के गांव के नाम से जाना जाता है. इस गांव के हर घर से तैराक निकलते हैं. सुबह-शाम यहां के बच्चे तालाब में तैराकी सीखते हैं. यहां के नन्हे तैराकों ने प्रदेश के साथ देश में भी अपनी प्रतिभा का डंका बजाकर तैराकी को अपना करियर बनाया है.

गांव के डोंगिया तालाब में करीब 80 बच्चे तैराकी का करिश्मा दिखा रहे हैं. इनकी प्रतिभा देखकर भारतीय खेल प्राधिकरण की टीम भी अचंभित हो चुकी है. पुरई ग्राम के बच्चे तैराकी में राष्ट्रीय स्तर पर भी खेल चुके हैं.

पुरई गांव के तैराक

12 तैराकों का साईं अकादमी में चयन

गांव के बच्चों के इस जज्बे की जानकारी जब भारतीय खेल प्राधिकरण को हुई, तो उनकी टीम पुरई गांव पहुंची थी. टीम गांव के इन नन्हे तैराकों की प्रतिभा देखकर अचंभित हो गई. इसके बाद 12 बच्चों का चयन साईं अकादमी के लिए हुआ है. इसमें से 8 बालक और 4 बालिकाएं हैं. इनकी उम्र 10 से 15 साल के बीच है. तीन साल तक गुजरात के साईं एकेडमी में इन बच्चों ने स्वीमिंग की ट्रेनिंग ली. लॉकडाउन के बाद से सभी अपने गांव लौटकर तालाब में रोज प्रैक्टिस कर रहे हैं.

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ओलंपिक में मैडल लाने की तैयारी : चंद्रकला

गांव के तैराक गरीब घर से हैं. बोरे-बासी खाकर यहां के खिलाड़ियों ने स्वीमिंग में अपना लोहा मनवाया है. चंद्रकला ओझा बताती हैं कि वह पिछले 6 साल से स्वीमिंग कर रही हैं. साईं अकादमी में चयनित होने के बाद वो वहां ट्रेनिंग ले रही थीं. लेकिन लॉकडाउन के बाद वो वापस गांव लौट आईं और तालाब में फिर से अपनी प्रैक्टिस कर रही हैं. ये वही तालाब है, जहां से उनकी प्रतिभा के निखरने की शुरुआत हुई थी. वे कहती हैं कि यदि बेहतर सुविधा मिल जाए, तो वे ओलंपिक में भी मेडल ला सकती हैं.

तालाब में तैरते बच्चे

गांव के युवा से मिली प्रेरणा

स्वीमिंग के नेशनल प्लेयर डोमनलाल देवांगन कहते हैं कि गांव के बड़े भैया अक्सर स्वीमिंग किया करते थे. उनको स्वीमिंग करता देख हम लोगों में भी सीखने की ललक जागी. बड़े भैया ओम ओझा (कोच) ने उन्हें तैराकी की ट्रेनिंग दी. इससे पहले हमें स्वीमिंग की जानकारी भी नहीं थी. डोमनलाल पिछले 6 साल से स्वीमिंग कर रहे हैं. वो कहते हैं कि जब पहली बार गांव से बाहर शहर गए, तो थोड़ा अटपटा लगा. गांव और शहर के माहौल में जमीन-आसमान का फर्क होता है.

दूर-दूर से स्वीमिंग सीखने पहुंच रहे पुरई

दुर्ग का पुरई गांव अब खेल गांव के नाम से पहचान बना रहा है. खेल गांव होने की वजह इस गांव में अब अन्य गांव के साथ-साथ दूर-दूर से बच्चे ट्रेनिंग लेने पहुंच रहे हैं. रायपुर से स्वीमिंग की ट्रेनिंग लेने पुरई पहुंची खुशी निषाद बताती है कि वह पिछले 2 माह से यहां स्वीमिंग की ट्रेनिंग ले रही है. स्वीमिंग के लिए इस गांव का पता चला था. उसके बाद वह पुरई पहुंचीं.

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चाचा से मिली प्रेरणा

गांव के बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे कोच ओम ओझा बताते हैं कि उन्हें स्वीमिंग की प्रेरणा अपने चाचा से मिली है. घर में उनका कैप और चश्मा रखा था. चाचा से इसके बारे में जानकारी ली. उसके बाद से स्वीमिंग करना शुरू कर दिया. इस दौरान संसाधनों की कमी से जूझना भी पड़ा. फिर कुछ समय बाद गांव के बच्चों को ट्रेनिंग देने का फैसला लिया. इसकी शुरुआत घर के बच्चों से की. उसके बाद धीरे-धीरे पूरे गांव के बच्चे जुड़ते गए.

पुरई के बच्चे सभी स्टेप में करते हैं स्वीमिंग

तैराकी के चार मुख्य प्रकार होते हैं. जिन्हें इंटरनेशनल लेवल पर मान्यता मिली हुई है. इन बच्चों को चारों प्रकार की स्वीमिंग आती है. लक्की ओझा बताते हैं कि चार प्रमुख प्रकार में फ्री स्टाइल, बैक स्ट्रोक, ब्रेस्ट स्ट्रोक और बटरफ्लाई शामिल हैं.

  • फ्री स्टाइल स्वीमिंग में तैराक पहले दाहिनी भुजा और फिर बाईं भुजा को आगे पीछे करते हुए पानी को काटता है और शरीर को स्वीमिंग पूल में आगे बढ़ाता है.
  • बैक स्ट्रोक में तैराक पीठ के बल तैरता है और अपने लक्ष्य पर पहुंचता है.
  • ब्रेस्ट स्ट्रोक स्वीमिंग में छाती के बल पर तैरना होता है. स्वीमिंग के इस तरीके में तैराक दोनों हाथों को एक साथ चलाता हुआ छाती की सहायता से शरीर को आगे बढ़ाता है.
  • बटरफ्लाई का अर्थ होता है, जिस तरह तितली उड़ती है ठीक उसी प्रक्रिया को स्वीमिंग में अपनाया जाता है. इसमें तैराक अपने दोनों हाथों को पानी की सतह से ऊपर एक साथ आगे-पीछे चलाता है. तैरने पर सीना ऊपर और कंधे पैने और सतह पर संतुलित होते हैं. इसमें पैरों की क्रियाएं भी एक साथ होती हैं.

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स्वीमिंग सेंटर्स में पुरई के बच्चे

कोच ओम ओझा बताते हैं कि पुरई में स्वीमिंग की ट्रेनिंग लिए हुए ज्यादार बच्चे गरीब घर से आते हैं. ऐसे में उनकी शिक्षा किसी चुनौती से कम नहीं है. गर्मी के दिनों में हमारे यहां के बच्चे स्वीमिंग पूल में काम करते हैं. उससे कुछ आमदनी हो जाती है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ के तमाम स्वीमिंग पूल में पुरई के बच्चे लाइफ गार्ड या कोच के पद पर भी पदस्थ हैं.

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