हैदराबाद: संपत्ति मिलने के बाद बच्चों द्वारा परिजनों को घर से निकलने के कई मामले आपने देखे और सुने होंगे. ऐसे ही एक मामले में पिछले हफ्ते पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 76 वर्षीय विधवा के बचाव में आया था. महिला के बेटे ने पहले मकान और दुकान को अपने नाम किया और फिर उसे घर से निकाल दिया.
न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति अशोक कुमार वर्मा की पीठ ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण- पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के उद्देश्य से उन वृद्ध माता-पिता के अधिकारों को सुरक्षित करने के उद्देश्य पर विचार किया, जिन्हें अक्सर उनके बच्चों द्वारा त्याग दिया जाता है.
कोर्ट ने कहा कि "अक्सर यह देखा जाता है कि अपने माता-पिता से संपत्ति मिलने के बाद, बच्चे उन्हें छोड़ देते हैं. ऐसी स्थिति में, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 ऐसे बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक जीवन रेखा है, जिनकी देखभाल बच्चे नहीं करते हैं और वो उपेक्षित हो जाते हैं" 2007 के अधिनियम की धारा 23 इसके लिए एक निवारक है और ऐसे बुजुर्ग वृद्ध लोगों के लिए फायदेमंद है जो अपने जीवन के अंतिम समय में खुद की देखभाल करने में असमर्थ हैं. बच्चों से अपने बुजुर्ग माता-पिता के देखभाल की अपेक्षा की जाती है. जो न केवल एक मूल्य आधारित सिद्धांत है, बल्कि एक बाध्य कर्तव्य है, जैसा कि 2007 के अधिनियम के जनादेश में निहित है"
क्या है मामला ?
इस मामले में प्रतिवादी एक बुजुर्ग विधवा है, जिसके मृत पति ने उसकी भलाई सुनिश्चित करने के लिए एक घर और एक दुकान छोड़ी थी. लेकिन पति की मौत के दो साल बाद, सबसे छोटे बेटे ने धोखे से घर को अपने नाम पर स्थानांतरित किया और फिर अपनी मां से मारपीट करके घर से बाहर निकाल दिया.
प्रतिवादी विधवा ने दो से तीन बार इस मामले को लेकर पंचायत का रुख किया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जिसके बाद उसने कोर्ट का रुख किया और घर के साथ दुकान की रजिस्ट्री अपने नाम करने की मांग की.
एसडीएम ने 19 अगस्त, 2019 को विधवा के नाम पर घर स्थानांतरित करने के साथ बेटे को आदेश दिया कि वह मां को हर महीने 2000 रुपये निर्वाह भत्ता भी दे. 4 सितंबर, 2015 को बेटे के नाम हुए संपत्ति के स्थानांतरण को भी रद्द करने का आदेश दिया गया.
इस आदेश के बाद बेटे ने जिला कलेक्टर फतेहाबाद की अध्यक्षता में अपीलीय न्यायाधिकरण (Appelate Tribunal) के समक्ष अपील दायर की थी. अपीलीय न्यायाधिकरण ने स्थानांतरण विलेख (transfer deed) को रद्द करके एसडीएम के निष्कर्षों को आंशिक रूप से उलट दिया, लेकिन यह सुनिश्चित किया कि विधवा को बेटे द्वारा भरण-पोषण भत्ता देना होगा. साथ ही महिला को उस घर में रहने की अनुमति भी दी.
जिसके बाद विधवा ने इस फैसले के खिलाफ रिट याचिका दायर की थी. जहां फैसला फिर से महिला के पक्ष में आया, जिसके तहत एसडीएम द्वारा पारित आदेश को पूरी तरह से बनाए रखने के निर्देश दिए गए. इस फैसले के बाद ने एकल न्यायाधीश के इस आदेश के विरुद्ध तत्काल पत्र पेटेंट अपील दायर की है.