जान जोखिम में डालकर भविष्य बनाने पर मजबूर उत्तराखंड के नौनिहाल देहरादून (उत्तराखंड): 'पढ़ेगा इंडिया, तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया' के स्लोगन के तहत देशभर की अलग-अलग प्रदेशों की सरकारें बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिला रही है. लेकिन उत्तराखंड में मॉनसून सीजन में बच्चे खतरनाक रास्तों, उफनती नदियों और टूटी हुई पगडंडियों के सहारे स्कूलों का सफर तय कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि हल्द्वानी जैसा विकसित शहर हो या बागेश्वर जैसा महत्वपूर्ण जिला, गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक के यही हालात हैं.
उत्तराखंड में आफत बनकर बरस रही बारिश. उत्तराखंड में मॉनसून की दस्तक के बाद लगातार हो रही भारी बारिश के कारण प्रदेश के तमाम क्षेत्रों में आपदा जैसे हालात बन गए हैं. आलम यह है कि प्रदेश के तमाम छोटे- बड़े पुल भी इस बारिश की चपेट में आकर क्षतिग्रस्त हुए है. इस कारण कई गावों का संपर्क मार्ग भी टूट गया है. यही नहीं, पर्वतीय जिलों में हालत यह है कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है. प्रदेश की तमाम क्षेत्रों से आई तस्वीरें किसी को भी विचलित कर सकती है.
पर्वतीय इलाकों में आपदा ने खड़ी की नौनिहालों के लिए चुनौती. मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र का हाल: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा क्षेत्र चंपावत में भी यही हाल है. चंपावत जिले के पाटी विकासखंड के ग्राम पंचायत खरही से भी कुछ ऐसी ही तस्वीरें सामने आई हैं. यहां पर स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल जाने के लिए अपनी जान हथेली में रखकर रास्ते में पड़ने वाले गधेरे को पार करना पड़ता है. दरअसल, इस गधेरे को पार करने के लिए पैदल पुल था, जो आपदा के चलते 2021 में बह गया था. इस गधेरे को पार करने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है. इस कारण ग्रामीणों ने गधेरे में पेड़ का तना डालकर गधेरे को पार करने का जरिया बनाया है.
जान हथेली पर रखकर स्कूलों के लिए जाने पर मजबूर बच्चे. समस्याओं पर गंभीर नहीं:उत्तराखंड सरकार, इस बात का दावा कर रही है कि प्रदेश के हर गांव में स्कूलों और सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, ताकि ग्रामीण इलाकों को सड़क से जोड़कर उनका विकास किया जा सके. साथ ही गांवों में स्कूल बनाकर वहां के बच्चों को शिक्षित किया जा सके. लेकिन ये तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं. प्रदेश में बनी आपदा जैसी स्थिति पर भले ही सरकार राहत बचाव पर विशेष जोर दे रही हो, लेकिन आपदा की स्थिति खत्म होने के बाद सरकार का ध्यान हट जाता है. जबकि ग्रामीणों की समस्याओं की स्थिति जस की तस बनी रहती है.
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ट्रॉली के सहारे जिंदगी: उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर बसा स्यूणा गांव की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. दरअसल, इस आधुनिक युग में भी स्यूणा गांव का जीवन, ट्रॉली के सहारे चल रहा है. यानी, इन ग्रामीणों को भागीरथी नदी को जर्जर हालत में मौजूद ट्रॉली के सहारे पार करना पड़ रहा है. हालांकि, स्थानीय ग्रामीण हर बार मॉनसून सीजन के बाद भागीरथी नदी पर लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर आवाजाही करते हैं. लेकिन भागीरथी नदी का जल स्तर बढ़ने और बहाव तेज होने से लकड़ी का पुल क्षतिग्रस्त हो जाता है. जिसके बाद ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डाल कर जर्जर ट्रॉली से रास्ता पार करना पड़ता है.
लोगों का कहना है कि हर मॉनसून सीजन के दौरान यह दिक्कतें देखने को मिलती है और प्रदेश के तमाम हिस्सों से इस तरह की तस्वीर सामने आती है. बावजूद इसके अभी तक उत्तराखंड सरकार कोई ऐसा मैकेनिज्म तैयार नहीं कर पाई है जिसके जरिए पर्वतीय क्षेत्र के ग्रामीणों की समस्याओं को दूर किया जा सके. उत्तराखंड सरकार भले ही यह दावा कर रही हो कि उत्तराखंड के गांव-गांव तक सड़क पहुंचा दी गई है, लेकिन ये तस्वीर सरकार की दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में उत्तराखंड सरकार प्रदेश की इस स्थिति पर भी गौर फरमाएगी.
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