जयपुर: पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) ने शुक्रवार को कहा कि कोरोना महामारी से जंग के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना बहुत जरूरी है. कहा कि सार्वभौम टीकाकरण व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही इस महामारी का मुकाबला किया जा सकता है. इसके साथ ही चिदंबरम ने 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' (Vaccine Nationalism) पर चिंता जताते हुए कहा कि इसने महामारी से लड़ने की वैश्विक भागीदारी की भावना को चोट पहुंचाई है.
चिदंबरम शुक्रवार को राजस्थान विधानसभा में 'वैश्विक महामारी तथा लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां' विषय पर संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. कहा कि इस महामारी ने बच्चों को शिक्षा से वंचित कर दिया है. लोगों का रोजगार चला गया है और लोगों के बीच असमानता की खाई को और भी गहरी हो गई है. उन्होंने कहा कि इस महामारी के दो चिंताजनक पहलू हैं, पहला तो स्वयं यह महामारी और दूसरा लोकतंत्र पर इसका प्रभाव.
लोकतंत्र में आलोचना स्वाभाविक
कहा कि इस महामारी ने दुनिया के हर देश की शासन प्रणाली पर चाहे वह लोकतंत्र हो, राजतंत्र या फिर तानाशाही, सभी को प्रभावित किया है. चिदंबरम ने कहा कि लोकतंत्र में आलोचना होना स्वाभाविक है. इसीलिए यह दूसरे प्रकार की शासन प्रणालियों से अलग है. उन्होंने कहा कि देशों में 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' का अनोखा चलन सामने आया है.
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यानी कि जो वैक्सीन मैंने बनाई या मैं खरीद सकता हूं, वह मेरी है या अपनी वैक्सीन प्रमोट करने के लिए मैं दूसरे की वैक्सीन को अनुमति नहीं दूंगा. चिदंबरम के अनुसार इस चलन ने महामारी से लड़ने के वैश्विक सहयोग की भावना को नुकसान पहुंचाया है. सक्षम देशों द्वारा आबादी के मुकाबले दो या तीन गुना टीके की खरीद की वजह से कई छोटे और गरीब देश टीके की उपलब्धता के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
हमारी हुईं कमजोरियां जाहिर
कोरोना के समय में हमारे देश में भी केंद्रीकरण, टीकाकरण कार्यक्रम की सही योजना और क्रियान्वयन, शिक्षा और हेल्थकेयर संसाधन, सामाजिक और आर्थिक असमानता, विधि के शासन और वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में सामने आई हैं. इस महामारी से लड़ने में हमारी कमजोरियां जाहिर हुई हैं, जिनका हमारे पास कोई जवाब नहीं है.
महामारी ने हर शासन पद्धति की कमियों को सामने ला दिया है. कोई भी लोकतंत्र तभी सही मायनों में लोकतंत्र है, जब उसका प्रधानमंत्री हर दिन और अपने हर कार्य में संसद के प्रति जवाबदेह हो और उस लोकतंत्र में एक जागरूक संसद और लोगों के प्रश्न पूछने वाली मीडिया भी मौजूद हो.
नहीं बच सकते जवाबदेही से
उन्होंने कहा कि यह जानने और समझने की जरूरत है कि हमारे देश में 'रूल ऑफ लॉ' है न कि 'रूल बाय लॉ'. लोकतंत्र में जवाबदेही से बचने वालों को भी आखिरकार तो जवाब देना ही होता है. उन्होंने कहा कि इस कोरोना के समय में केन्द्रीकरण का खात्मा हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गया. केंद्रीकरण हमारे देश जैसी संघीय व्यवस्था में घातक है, जहां हर राज्य इतिहास, भाषा और सांस्कृतिक रूप से बिल्कुल भिन्न है.
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