क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी और साइबर एक्सपर्ट कोरबा/रायपुर: साइबर अपराध साल दर साल तेजी से बढ़ रहा है. छत्तीसगढ़ के सभी 33 जिलों में साइबर ठग सक्रिय हैं. अक्सर साइबर ठग कम पढ़े लिखे लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. हालांकि कई बार पढ़े लिखे लोग भी इनके झांसे में आ जाते हैं. मौजूदा समय में गूगल प्ले स्टोर पर कई ऐप फटाफट लोन देते हैं. साइबर ठग फटाफट लोन देकर डाटा हैक करने से लेकर ओटीपी के जरिए बैंक खाते से पैसे पार कर लेते हैं.
केस 01 लोन का झांसा देकर डाका हैक: कोरबा जिले के मानिकपुर निवासी किरण कुमार को तुरंत पैसे की जरूरत थी. सोशल मीडिया पर किरण ने एक विज्ञापन देखा और लोन के लिए अप्लाई किया. गूगल प्ले स्टोर पर एक ऐप के जरिए ₹3000 का लोन लिया. आधार कार्ड और पैन कार्ड से लोन मिल गया. किरण कहते हैं कि " लोन देने वालों ने मेरे मोबाइल का डाटा हैक कर लिया. मेरे कांटेक्ट नंबर में परिवार वाले और अन्य करीबी के नंबर थे. उन्हें फोन कर पैसे वसूली की बात कहने लगे. गालीगलौज तक करने लगे. लोन के पैसे नहीं लौटाये तो डाटा हैक कर लिया. यह तो अपराध की श्रेणी में भी आता है. हालांकि मैंने इसकी शिकायत नहीं की थी.''
केस 02 बिजली बिल का झांसा देकर ठगी: कोरबा के बांकीमोंगरा क्षेत्र में रहने वाले पीड़ित कलेश्वर सिंह कंवर से भारी भरकम रकम की ठगी की गई. कालेश्वर सिंह के फोन पर एक मैसेज आया. मैसेज में घर के बिजली बिल जमा न होने के कारण शाम तक कनेक्शन काट दिए जाने की बात का जिक्र था. कलेश्वर सिंह कंवर ने मैसेज वाले नंबर पर फोन किया. इसके बाद ठगों ने क्विक सपोर्ट एप्लीकेशन डाउनलोड करवा कर मोबाइल का रिमोट एक्सेस हासिल कर लिया. कलेश्वर सिंह कंवर कुछ समझ पाते तब तक उनके खाते से 76,827 रुपए का ट्रांजेक्शन कर लिया गया. जैसे ही पीड़ित को समझ आया, उसने पुलिस से संपर्क किया.
केस 03 केबीसी में लॉटरी के नाम पर ठगी: कोरबा के एक शख्स से केबीसी लॉटरी के नाम पर 5 लाख की ठगी हुई. प्रकाश गुप्ता नाम के शख्स ने पुलिस को बताया कि "वाट्सएप पर लॉटरी का मैसेज आया. मैसेज मिलने के बाद नंबर को एक व्हाट्सएप ग्रुप में ऐड किया गया. इसी ग्रुप के एडमिन ने कहा कि 25 लाख रुपए की लॉटरी लगी है. एक ऑडियो मैसेज भी आया. इस ग्रुप का एडमिन खुद को केबीसी का प्रतिनिधि बता रहा था. एडमिन ने कहा कि "खाते में ₹25 लाख ट्रांसफर करना है. जिसके लिए ₹5 लाख देने होंगे ताकि पैसे प्रोसेस करने में आसानी हो. यही बात सुनकर उसके झांसे में आ गए. अलग अलग ट्रांजेक्शन कर कुल ₹5 लाख ठगों ने खाते से निकाल लिए. ट्रू कॉलर में नंबर चेक करने पर यह पाकिस्तान का नंबर आ रहा था. अब पुलिस मामले की जांच कर रही है."
केस 04:24 दिसंबर 2022 को रायपुर की चुन्नी गजेंद्र के साथ ₹50000 की ऑनलाइन ठगी हुई. पीड़ित महिला ने गूगल पर कोरियर सर्विस का नंबर सर्च कर कॉल किया. उन्हें किसी दूसरे नंबर से एक कॉल आया. 24 घंटे के अंदर कोरियर पहुंचाने के लिए ₹2 ऑनलाइन ट्रांसफर करने कहा गया. एक लिंक भी भेजा गया. महिला ने यूपीआई के जरिए ₹2 का भुगतान किया. इसके 24 घंटे के बाद दोपहर को महिला के खाते से ₹50000 रुपए ट्रांसफर कर लिए गए.
केस 05:23 मार्च 2022 को नर्मदा पारा निवासी एक शख्स ने ओएलएक्स पर सोफा बेचने के लिए एक ऐड डाला. ऑनलाइन ठग ने उन्हें कॉल कर पहले उनके अकाउंट में ₹5000 रुपए के लिए एक क्यूआर स्कैनर भेजा. स्कैन करने के बाद पीड़ित के अकाउंट से ₹99099 निकाल लिए गए.
बंध जाते हैं पुलिस के हाथ: सामान्य तौर पर पुलिस किसी भी संदिग्ध वित्तीय लेनदेन के ट्रांजेक्शन के बाद एनसीसीआर पोर्टल पर ईमेल भेजती है. यह भारत सरकार का साइबर अपराध को नियंत्रित करने के लिए खास पोर्टल है. यहां से तत्काल संदिग्ध लेनदेन वाले खातों को ब्लॉक कर दिया जाता है. जिससे कि राशि निकल नहीं पाती. पुलिस के पास साइबर क्राइम के खिलाफ कार्रवाई के लिए यह सबसे बड़ा हथियार है. यदि समय रहते मेल कर दिया गया और वहां से रिप्लाई आ गया, तब तो ठीक है. लेकिन ठगों ने यदि ट्रांजेक्शन के बाद पैसों का उपयोग कर लिया, इसे खाते से ट्रांसफर कर लिया. तब पैसे फंस जाते हैं. पुलिस अपराध दर्ज कर जांच करती रहती है लेकिन पीड़ित के पैसे वापस नहीं हो पाते.
क्या कहती है पुलिस: पुलिस कहती है कि साइबर अपराध से लड़ने के लिए हमारी एक विशेष शाखा है, जिसे तत्काल साइबर क्राइम की सूचना दी जाती है. कई मामलों में तुरंत जानकारी पर कार्रवाई भी तुरंत होती है. कई बार जब सूचना देने में देर होती है तो मुश्किल होती है. कोरबा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा कहते हैं कि "हमारे पास बहुत से ऐसे मामले हैं, जिसमें हमने पैसे वापस करवाए हैं. कई केस अभी पेंडिंग हैं, जिसमें हम सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं और पैसे वापस कराएंगे."
रायपुर में साइबर क्राइम ब्रांच के एएसपी अभिषेक माहेश्वरी के मुताबिक ''अकेले रायपुर जिले में हमारे पास रोजाना सात से आठ कंप्लेन साइबर केस से रिलेटेड आती है. कभी यू ट्यूब में वीडियो लाइक करने के जरिए, कभी वीडियो कॉल के जरिए, कभी ओटीपी के जरिए साइबर फ्रॉड होते रहते हैं. कंप्लेन आने पर साइबर पोर्टल में अपलोड करते हैं और बैंक से बात करके उस अकाउंट को होल्ड कराने की कोशिश करते हैं. यदि अकाउंट होल्डर नहीं हो पाता तो हम केस रजिस्टर्ड कर नियमानुसार अकाउंट को बंद करवाते हैं.''
पुलिस की क्या है परेशानी: पुलिस के पास साइबर सेल का एक अलग विंग तो है लेकिन यहां कोई डोमेन एक्सपर्ट नहीं है. कई बार फर्जी वेबसाइट या पोर्टल और ऐप बनाकर भी ठगी को अंजाम दिया जाता है. डोमेन कहां से संचालित हो रहे हैं? इसका मालिक कौन है? यह पता कर पाना पुलिस के लिए अब भी टेढ़ी खीर है. संदिग्ध डोमेन के ब्लॉक होने के बाद साइबर ठग तत्काल दूसरे डोमेन नेम से अपनी दुकानदारी चलाते रहते हैं.
पुलिस को और एक्सपर्ट की जरूरत: साइबर एक्सपर्ट मोनाली गुहा कहती है, "कई बार पुलिस पर दोहरा दबाव होता है. इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर ही साइबर क्राइम के मामले को डील करते हैं. लेकिन इनके पास काम का ज्यादा लोड होता है, जिसके कारण ये डील नहीं कर पाते. इनके पास साइबर वर्ल्ड की जानकारी की भी कमी होती है. इसके लिए बेहद एक्सपर्ट और मजबूत होने की जरूरत है. केवल नॉर्मल ट्रेनिंग से बात नहीं बनेगी. किसी डोमेन एक्सपर्ट को भी डिपार्टमेंट ज्वाइन करना चाहिए, इसके लिए लेटरल एंट्री का प्रावधान भी बना सकते हैं. अपराधियों को पकड़ना है और अपराध को कम करना है तो तैयारी उनसे दो कदम आगे की होनी चाहिए."
आप साइबर फ्रॉड से कैसे बचें: किसी भी अनजान लिंक को क्लिक ना करें. रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर जो ओटीपी आता है, उसे किसी के साथ शेयर ना करें. लोगों को जागरूक होना पड़ेगा. समय समय पर अपने पासवर्ड भी बदलते रहें. साइबर अपराधी 3 तरीके से अपराध को अंजाम देते हैं. कोई एप्लीकेशन डाउनलोड कराते हैं या कोई लिंक देते हैं या आप से ओटीपी पूछते हैं या फिर ऑनलाइन फॉर्म भरने को कहते हैं. यह किसी ऐसे लिंक पर आप को ले जाते हैं, जहां से आप का बेसिक डिटेल उन्हें मिल जाए. आपको सावधान रहें. डर, लालच और पैनिक इन तीनों चीजों से बचें. इन तीनों चीजों में यदि एक चीज भी आपको समझ आ जाती है तो आप वहां पर अपना कम्युनिकेशन स्टॉप कर दे. कहीं ना कहीं आपको कमांड देकर ही फंसाते हैं. सबसे ज्यादा ठगी के मामले ऑनलाइन बैंकिंग में आते हैं, इसलिए बार बार अपना पिन नंबर बदलते रहें.
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