पटना:वैसे तो छठ पूजा का मुख्य व्रत कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को किया जाता है. लेकिन इसकी शुरुआत दो दिन पहले से शुरू हो जाती है और इसकी समाप्ति सप्तमी तिथि को सूर्योदय होने के समय अर्घ्य देकर की जाती है. 2 दिन पहले नहाए खाए किया जाता है. यह छठ का पहला दिन होता है.
नहाय खाय का महत्व:आपको बता दें कि जो श्रद्धालु इस व्रत को करते हैं इस दिन से पूरी शुद्धता का ख्याल रखते हैं. पहले दिन व्रती आम के दातुन से मुंह साफ करते हैं. उसके बाद गंगा स्नान कर गंगा की पूजा करते हैं या फिर उनके आसपास में जो नदी तालाब होता है वहां स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं.
नहाय खाय का प्रसाद: नहाय खाय के दिन कद्दू की सब्जी, लौकी चने का दाल और चावल खाया जाता है. नहाय खाय के दिन बनाया गया खाना सबसे पहले व्रत रखने वाली महिलाओं को दिया जाता है. इसके बाद ही परिवार के दूसरे लोग भोजन ग्रहण करते हैं.
छठ में प्रकृति की पूजा :इस पूजा में प्रकृति को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है. इसमें किसी भी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है. यह पहला पर्व है जिसमें डूबते हुए सूर्य और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसमें सूर्य का जितना महत्व है उतना ही जल का महत्व है.
छठी मईया को अति प्रिय हैं ये चीजें: अर्घ्य देने के लिए इस व्रत में शामिल व्रती तालाब या नदी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसमें शामिल होने वाला प्रसाद भी पूरी तरह से प्रकृति द्वारा उपजाए गए पदार्थ से बनाए जाते है, जो छठी मईया को अति प्रित होते हैं. इस त्यौहार में नए अनाज, नया गुड़, नया चावल, नया गेहूं, गाय का घी, मौसमी फल, हरे बांस के बनाये हुए सुप से अर्घ्य दिया जाता है.
पूरा परिवार करता है छठी मईया की आराधना: यह एकमात्र पहला त्यौहार है, जिसमें किसी पुरोहित यानी की पुजारी की जरूरत नहीं होती है. परिवार के लोग ही व्रती को अर्घ्य दिलाते हैं. गाय के दूध और गंगाजल से अर्घ्य दिलाया जाता है.
18 नवम्बर- दूसरा दिन, खरना या लोहंडा:18 नवंबर को खरना या लोहंडा है. जो श्रद्धालु छठ व्रत करते हैं वह पूरे दिन व्रत में रहकर खरना करते हैं. खरना की एक विधि है. शाम को व्रती खुद से नए चावल, नया गुड़ और गाय की दूध से खीर बनाती हैं. इसके साथ नए गेहूं के आटे की रोटी तैयार की जाती है.
खीर और रोटी का प्रसाद:व्रती शाम में खीर, फल, रोटी का भोग छठी मईया को लगाती हैं. इसमें केले के पत्ते का उपयोग किया जाता है. जब व्रती प्रसाद ग्रहण कर लेती हैं. उसके बाद बाकी परिजन और इष्ट मित्र प्रसाद ग्रहण करते हैं. खरना का उत्साह लोगों में काफी होता है. लोग काफी श्रद्धा से खरना के प्रसाद के तौर पर खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते है. इसके साथ ही व्रती का 36 घंटे का उपवास शुरू हो जाता है.