दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

छठ पूजा 2022 : ऐसी हैं लोक आस्था के महापर्व छठ को मनाए जाने की पौराणिक कथाएं

छठ पूजा का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को खास तौर पर मनाया जाता है, जिसमें अस्ताचल और उदयाचल भगवान भाष्कर की खासतौर पर पूजा की जाती है. Chhath Puja

Chhath Puja 2022 Mythological Stories Related to Chhath Puja
छठ पूजा 2022

By

Published : Oct 26, 2022, 5:19 PM IST

नई दिल्ली : देशभर में लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल व बिहार व झारखंड समेत कई राज्यों में इस बड़े आयोजन के रुप में मनाया जाता है. दरअसल कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की खास परंपरा है, जिसके चलते करोड़ों लोगों की आस्था छठ पर्व हर साल धूमधाम व पवित्रता के साथ मनाया जाता है. इसे कार्तिक शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को खास तौर पर मनाया जाता है, जिसमें अस्ताचल और उदयाचल भगवान भाष्कर की खासतौर पर पूजा की जाती है. बड़े से विधि विधान व कठोर नियमों के पालन के साथ मनाया जाने वाला यह त्योहार 28 अक्टूबर 2022 से 31 अक्टूबर 2022 के बीच मनाया जाएगा.

छठ मुख्य रूप से चार दिवसीय पर्व के रुप में जाना जाता है. नहाय खाय से शुरू होकर यह पर्व उदयाचल भगवान भाष्कर की पूजा और अर्घ्य के साथ संपन्न होगा. इस महापर्व के तीसरे दिन की शाम को नदियों व तालाबों के किनारे डूबते हुए सूर्य को और चौथे दिन के सुबह उदयाचल भगवान भाष्कर को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद छठ पूजा का समापन हो जाता है.

छठ पूजा 2022

आज यह छठ पूजा भले ही मुख्य रूप से बिहार और झारखण्ड से हुई थी, लेकिन अब यह देश-विदेश तक फैल चुकी है. दरअसल अंग देश के महाराज कर्ण सूर्यदेव के उपासक थे, ऐसे में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव परंपरा के रूप में इस इलाके पर दिखता है.

छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं और किस्से चर्चा में हैं, जिसमें इस लोक आस्था के पर्व को मनाए जाने की जानकारी व कथा मिलती है.

रामायण काल में छठ पूजा
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की थी. फिर सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था.

महाभारत काल में छठ पूजा
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की. कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया करते थे. सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है.

कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है. वह अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं.

संबंधित खबर..Chhath Puja 2022: कब है छठ पूजा? जानिए नहाय खाय और खरना से अर्घ्य तक की पूरी विधि

पुराणों में छठ पूजा की कथा
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी. इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ, परन्तु वह मृत पैदा हुआ था. उसके बाद प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे. तभी ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं. हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें. राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ABOUT THE AUTHOR

...view details