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असम-त्रिपुरा सीमा पर मेघालय की सस्ती शराब औऱ पेट्रोल की तस्करी - पेट्रोलियम तेल की कीमतों में बढ़ोतरी

असम के करीमगंज जिले के चुरैबाड़ी इलाके में माल की तस्करी पैसे कमाने का धंधा बनता जा रहा है. यहां से तस्कर को मोटी कमाई होती है. जानकारी के मुताबिक, कालाबाजारी करने वाले ड्राइवरों की मदद से टैंकरों से तेल चुराते हैं.

सस्ती शराब और पेट्रोल की तस्करी
सस्ती शराब और पेट्रोल की तस्करी

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Published : Sep 12, 2021, 2:14 PM IST

अगरतला : असम के करीमगंज जिले के चुरैबाड़ी इलाके (Churaibari Area) में माल तस्करी पैसे कमाने का एक धंधा बनता जा रहा है. चुरैबाड़ी त्रिपुरा के अंतर्देशीय व्यापार ( Tripura’s inland trade) के लिए एक गलियारा माना जाता है.

सूत्रों की मानें तो पेट्रोलियम तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद तस्कर तेल की कालाबाजारी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. अधिकांश तेल ले जाने वाले टैंकर इस मार्ग से त्रिपुरा में प्रवेश करते हैं और कालाबाजारी करने वाले ड्राइवरों की मदद से टैंकरों से तेल चुराते हैं.

चुरैबाड़ी चेक पोस्ट (Chraibari check post) के माध्यम से प्रवेश करने के बाद, ट्रक प्रेमतला क्षेत्र (Premtala area) में इकट्ठा होते हैं जहां पहले तेल टैंकों को एक निश्चित हिस्से में खाली किया जाता था और मिट्टी के तेल से भर दिया जाता था. सीलबंद टैंकरों से तेल निकालने के लिए पानी के पंपों का इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि, सब कुछ जानने के बावजूद पुलिस ने इस चोरी पर लगाम लगाने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया. यही नहीं बल्कि, पुलिस भी कभी-कभार उन जगहों पर गश्त के लिए जाने से बचती है.

इसी तरह विदेशी शराब को भी मेघालय से यहां ले जाया जा रहा था. बता दें, मेघालय में शराब त्रिपुरा की तुलना में बहुत सस्ती है. इसका फायदा उठाने और इससे पैसा बनाने के लिए, तस्करों ने मेघालय की शराब को त्रिपुरा के अंदर लाने के लिए कुछ अवैध चैनल तैयार किए हैं. तस्करी के इन सभी सामानों को बाद में खुले बाजार में बेच दिया जाता हैं, जिससे तस्करी का सामान से कालाबाजारी का ठप्पा हट जाता है. हालांकि पुलिस इस पूरे मामले में मनी ट्रेल को फॉलो कर तस्करों का आसानी से पता लगा सकती है.

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बता दें, इसके अलावा कोयला, ड्रग्स जैसे याबा और अन्य साइकोट्रोपिक ड्रग्स की भी उसी रास्ते से तस्करी की जा रही है. आबकारी विभाग ( Excise department) के सूत्रों ने बताया कि इस चोरी और भ्रष्टाचार से राज्य को हर साल 25 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में को तस्करी को ना रोके जाने की पुलिस की निष्क्रिय भूमिका वाकई सवाल खड़े करती है.

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