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बदल नहीं बिगड़ रहा मौसम का मिजाज, मॉनसून की देर से विदाई बजा रही खतरे की घंटी ?

इस साल भी मॉनसून की विदाई देर से हो रही है और मौसम का ये बदलता ट्रेंड खतरे की घंटी बजा रहा है. आखिर क्या है मॉनसून का बदलता ट्रेंड ? मौसम के बदलते पैटर्न से क्या नुकसान है ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)

मॉनसून
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Published : Oct 6, 2021, 4:38 PM IST

हैदराबाद: इस साल मॉनसून की विदाई होने लगी है, मौसम विभाग के मुताबिक 6 अक्टूबर से उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों से दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून की वापसी की शुरुआत हो जाएगी. लौटता हुआ मानसून कुछ राज्यों को आने वाले दिनों में और भिगाएगा. लेकिन इस बार जिस तरह से मानसून की चाल रही है, वो डरा रही है. और मॉनसून की इस चाल-ढाल में आए बदलाव ने भविष्य के लिए चिंताएं बढ़ी दी हैं. आखिर क्यों खतरे की घंटी बजा रही है मॉनसून की चाल ? इसका क्या हो रहा है असर ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)

देर से हो रही मॉनसून की वापसी

मौसम विभाग के अधिकारियों की मानें तो साल 1960 के बाद ये दूसरा मौका है जब दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून की इतनी देर से वापसी हो रही है. इससे पहले साल 2019 में उत्तर-पश्चिम भारत से मॉनसून की वापसी 9 अक्टूबर को शुरू हुई थी. जबकि साल 2020 में ये 28 सितंबर से मॉनसून की वापसी शुरू हुई थी. वैसे आमतौर पर उत्तर-पश्चिम भारत से मॉनसून की वापसी 17 सितंबर से शुरू हो जाती थी, जिसकी शुरुआत इस बार 6 अक्टूबर से होने की संभावना है. साल 1961 में मॉनसून 1 अक्टूबर से वापस लौटना शुरू हुआ था.

बदल नहीं बिगड़ रहा है मौसम का मिजाज

देर से आया, देर से वापसी पर सामान्य बारिश

मॉनसून का आगमन हर साल एक जून को केरल से होती है. इस बार मॉनसून दो दिन की देरी से 3 जून को केरल पहुंचा था. इस बार मॉनसून की विदाई भले देर से हो रही है लेकिन बारिश का स्तर सामान्य ही रहा. मौसम विभाग के मुताबिक जून से सितंबर तक के चार महीने के दौरान मॉनसून के मौसम में देश में सामान्य वर्षा हुई. एक जून से 30 सितंबर तक देशभर में 87 सेमी. मानसूनी बारिश हुई जबकि 1961 से लकेर 2010 के दौरान इसका औसत 88 सेमी. रहा. ये लगातार तीसरा साल है जब देश में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई. 2019 और 2020 में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई थी.

देर से विदा हो रहा मॉनसून

कुल मिलाकर देशभर में बारिश जून में 110 फीसदी, जुलाई में 93 प्रतिशत और अगस्त में 76 फीसदी हुई. इन महीनों में सबसे ज्यादा बारिश होती है हालांकि जुलाई और अगस्त में बारिश कम हुई, लेकिन इसकी कमी सितंबर में पूरी हो गई जब एलपीए की 135 फीसदी बारिश रिकॉर्ड की गई.

किन क्षेत्रों में अधिक और कहां कम हुई बारिश

मौसम विभाग के मुताबिक नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और लक्षद्वीप में कम बारिश हुई है. वहीं पश्चिम राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर अंदरूनी कर्नाटक, पश्चिम बंगाल का गंगा का क्षेत्र, कोंकण और गोवा, मराठवाड़ा और अंडमान और निकोबार में मॉनसून के मौसम में अधिक वर्षा दर्ज की गई.

3 महीने में 435 लोगों की मौत

मौसम विभाग के मुताबिक दक्षिण पश्चिमी मॉनसून के कारण विषम मौसम की घटनाओं में पिछले 3 महीने में देशभर में कम से कम 435 लोगों की मौत हुई है. आंकड़ों के अनुसार कुल मौतों में से 50 फीसदी से अधिक मौतें आकाशीय बिजली गिरने से हुई है. जून से अगस्त के दौरान 240 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने से हुई है. तीन महीनों में विषम मौसम से हुई कुल मौतों में से एक तिहाई मौत अकेले महाराष्ट्र में हुई है.

बाढ़, भूस्खलन, जलभराव, बिजली गिरने से जान-माल का नुकसान

आंकड़ों के मुताबिक विषम मौसमी घटनाओं में आकाशीय बिजली गिरना, भारी बारिश या बाढ़ और अन्य घटनाएं शामिल हैं. जिनमें जून में 109, जुलाई में 301 और अगस्त में 25 लोगों की मौत हुई है.

क्यों डरा रहा है मॉनसून ?

1) खेती के लिए घातक है मानसून की विदाई में देरी

जानकार मानते हैं कि मानसून की तारीखों में बार-बार बदलाव सबसे ज्यादा कृषि के लिए घातक साबित होगा. दरअसल मानसून की तारीखों में हो रहे बदलाव के कारण किसान बुआई-रोपाई का वक्त तय नहीं कर पाते. आज भी देश की अधिकतर कृषि मौसम पर निर्भर करती है. बारिश के वक्त के साथ मात्रा में भी लगातार बदलाव किसानों की मुश्किल बढ़ा रहा है. कम बारिश से फसलें सूख रही हैं और अधिक बारिश होने से भी फसलें बर्बाद हो रही हैं.

बदलते मॉनसून का सबसे ज्यादा असर खेती पर

2) कम वक्त में ज्यादा बारिश

बीते कुछ सालों के अलावा इस साल भी कई शहरों में कम वक्त में ज्यादा बारिश का ट्रेंड देखा गया है. जिससे कई इलाकों में बाढ़, जल जमाव जैसी स्थिति पैदा होती है. इस बार मानसून के दौरान देश में 874.6 मिमी बारिश हुई है. 3 जून से 30 सितंबर तक के मानसून सीजन में होने वाली बारिश का 99% है, लेकिन देश के 22 प्रमुख शहरों में मानसून की करीब 95% बारिश सिर्फ 3 से 27 दिनों हो गई थी. दिल्ली में लगभग 95% बारिश सिर्फ चार से पांच दिन में और मुंबई में आधी बारिश करीब 6 दिन में ही हो गई.

जानकार मानते हैं कि बीते 3 दशक में मौसम की चाल बिगड़ गई है. जिससे तेज बारिश वाले दिन तो बढ़े हैं लेकिन फिर भी कई बार मानसून की बारिश सामान्य से कम होती है. बाढ तो आती है लेकिन सिंचाई नहीं हो पाती, लोगों की जान जा रही है और हर साल लाखों लोग बेघर हो जाते हैं. सूखे इलाकों में बाढ और अच्छी बरसात वाले इलाकों में सूखे जैसे हालात देखे जा सकते हैं.

कई शहरों में कुछ घंटो की बारिश से ये होता है हाल

3) भू-जल और जलाशयों में पानी की कमी

मॉनसून के दौरान बारिश के ट्रेंड में आए बदलाव से भू-जल स्तर और जलाशयों में पानी की कमी भी देखी जा रही है. जानकार मानते हैं कि मौसम के तेवर में जो बदलाव आए हैं उससे कुछ वक्त में ही ज्यादा बारिश होने से बाढ़ या जल जमाव जैसे हालात तो बनते हैं लेकिन उसका फायदा भू-जल स्तर में नहीं हो रहा है. दो से तीन दशक पहले जितनी बारिश पूरे मानसून के 4 महीने में होती थी उतनी बारिश कुछ इलाकों में चंद दिनों में हो रही है. जिसके चलते ज्यादातर पानी बहकर समुद्र में पहुंच रहा है.

4) जानलेवा होता मॉनसून

बीते कुछ सालों में मानसून देश के कई हिस्सों में आफत बनकर टूटा है. बाढ़ से लेकर भू-स्खलन तक के मामले हिमाचल, उत्तराखंड से लेकर महाराष्ट्र और बंगाल समेत करीब-करीब हर राज्य से सामने आते हैं. जिसमें जान-माल का बहुत अधिक नुकसान होता है.

देर से विदा होता मॉनसून बजा रहा खतरे की घंटी

बदल नहीं बिगड़ रहा है मौसम का मिजाज

जानकार मानते हैं कि मौसम के पैटर्न में जो ये बदलाव खासकर मानसून में देखा गया है वो आने वाले दो से तीन साल तक जारी रह सकता है. दरअसल बीते कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन से मौसम का मिजाज बदला नहीं बल्कि बिगड़ा है, जो आगे भी जारी रहेगा. मौसम के बिगड़े मिजाज के कारण मॉनसून के आने, बारिश की मात्रा, समय और मॉनसून के जाने का अंदाजा लगाना लगातार मुश्किल हो रहा है. जो सबसे ज्यादा खेती-बाड़ी के लिए नुकसानदायक साबित होगा.

मौसम का बिगड़ा मिजाज आने वाले दो से तीन साल तक ऐसे ही बने रहने के अनुमान हैं. जानकार मानते हैं कि मॉनसून में बेतरतीब बारिश के ट्रेंड से फसलों और जान-माल को होने वाला नुकसान आने वाले सालों में और भी बढ़ सकता है. जो डराने वाली बात है.

बदल नहीं बिगड़ रहा है मौसम का मिजाज

ग्लोबल वार्मिंग है इसकी वजह

ग्लोबल वार्मिंग और दूसरे कारणों से प्रकृति में बदलाव की दस्तक दशकों पहले सुनाई देने लगी थी. अब यह खतरे की घंटी बजा रहा है. बारिश का ट्रेंड और पैटर्न दोनों ही खेती को प्रभावित करता है. मौसम वैज्ञानिकों ने पिछले पांच दशकों में जो अध्ययन किया है, उसके आधार पर पता चलता है कि मार्च से मई के बीच बारिश की मात्रा बढ़ रही है और जून से सितंबर-अक्तूबर तक मानसून में बादल अपेक्षा से कम बरस रहे हैं.

गर्मियों के मौसम में बारिश बढ़ने से गर्मी से राहत तो मिलती है लेकिन किसानों की मेहनत पानी-पानी हो रही है. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, क्योंकि देश की जीडीपी अब भी कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों पर बहुत अधिक निर्भर है. यह उन जलाशयों को भरने के लिए महत्वपूर्ण है जिनका उपयोग पीने के पानी की आपूर्ति और सिंचाई के लिए किया जाता है. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम लगातार बदल रहा है और खेती के दिनों ऐसे जलाशयों में पानी की कमी देखी जा रही है.

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