मुंबई :राष्ट्रीय ध्वज संहिता में हाल ही में किए गए संशोधन में मशीन से बने पॉलिएस्टर झंडे के उपयोग की अनुमति दी गई है. निर्णय के पीछे मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए विपक्षी दलों ने इसकी आलोचना की है. अब भारतीय झंडा संहिता, 2002 के भाग-दो के पैरा 2.2 के खंड (11) को अब इस तरह पढ़ा जाएगा कि जहां झंडा खुले में प्रदर्शित किया जाता है या किसी नागरिक के घर पर प्रदर्शित किया जाता है, इसे दिन-रात फहराया जा सकता है. इससे पहले, तिरंगे को केवल सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराने की अनुमति थी.
इसी तरह, झंडा संहिता के एक अन्य प्रावधान में बदलाव करते हुए कहा गया, ‘राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काता और हाथ से बुना हुआ या मशीन से बना होगा. यह कपास/पॉलिएस्टर/ऊन/ रेशमी खादी से बना होगा. इससे पहले, मशीन से बने और पॉलिएस्टर से बने राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग की अनुमति नहीं थी. माकपा के राज्यसभा सांसद डॉ. वी. शिवदासन ने हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर मशीन से बने पॉलिएस्टर के झंडों को अनुमति देने पर चिंता जताई थी और कहा था कि जो पारिस्थितिकी और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं. चूंकि बड़े पैमाने पर उत्पादित पॉलिएस्टर मशीन से बने झंडे सूती या हाथ से बुने हुए झंडों की तुलना में सस्ते होते हैं, इसलिए वे बाजार में आगे निकल जाएंगे. कपास और रेशम के झंडे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और जब वे हाथ से काते जाते हैं तो वे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं.
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सिबदासन ने गृह मंत्री को लिखे अपने पत्र में लिखा है कि नए संशोधन के कारण हमारा देश विदेशों के मशीन पर बने गैर-बायोडिग्रेडेबल झंडों से भर जाएगा. यह कदम न तो पर्यावरण के अनुकूल है और न ही कुटीर उद्योगों के अनुकूल. सांसद ने आगे गृह मंत्री से हस्तक्षेप कर ध्वज संहिता-2002 में संशोधन को रद्द करने का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह कदम पर्यावरण के साथ-साथ देश में कुटीर उद्योगों के लिए हानिकारक साबित होगा.