Chandrayaan 3 : चंद्रमा की सैर पर निकला प्रज्ञान, जानें क्यों इसपर ही है मिशन की पूरी जिम्मेदारी - चंद्रयान 3 की चांद पर लैंडिंग
इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि भारत के चंद्रयान-3 का चंद्रमा रोवर अज्ञात चंद्र सतह की खोज शुरू करने के लिए गुरुवार सुबह अंतरिक्ष यान से बाहर निकला. आइये जानते हैं क्या है इस रोवर की जिम्मेदारी और क्यों इस मिशन के लिए यह बेहद खास है. पढ़ें पूरी खबर...
नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़े सूत्रों ने गुरुवार को बताया कि रोवर 'प्रज्ञान' लैंडर 'विक्रम' से बाहर निकल आया है. रोवर्स छोटे मोबाइल खोजकर्ता होते हैं. जैसा की प्रज्ञान है. यह चंद्रमा की कठोर परिस्थितियों में थोड़े समय तक रहने के लिए तैयार किया गया है. जो चंद्रमा की सतह पर 'घूम-घूम' कर डेटा जुटायेगा. जो चंद्रयान -3 के मिशन उद्देश्यों में से एक है. पिछले चंद्रयान मिशन में भारत के चंद्र रोवर को अपना काम करने का मौका ही नहीं मिला था.
रोवर किसी ग्रह या चंद्रमा की सतह की खोज के लिए तैयार किया गया एक विशेष वाहन होता है. इससे पहले भी नासा के कई रोवर चांद की सतह पर जा चुके हैं. चंद्रयान तीन के साथ भेजा गया रोवर प्रज्ञान है. जिसकी चांद की सतह से पहली तस्वीर गुरुवार को जारी की है. रोवर का नाम 'प्रज्ञान' संस्कृत में ज्ञान के अर्थ में इस्तेमाल होता है. यह छह पहियों वाला, 26 किलोग्राम का रोवर है जिसे लैंडर मॉड्यूल के भीतर रख कर भेजा गया था. इसका संचार पृथ्वी से लैंडर के जरिए होगा.
इसरो से मिली ताजा जानकारी के मुताबिक, प्रज्ञान ने चंद्रमा पर अपनी सैर शुरू कर दी है. प्रज्ञान को चंद्रमा की सतह का रासायनिक विश्लेषण करने का काम सौंपा गया है क्योंकि यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ऊंचे इलाकों की सैर करेगा. यह वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए दो पेलोड से सुसज्जित है, अर्थात् अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) और लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस).
एपीएक्सएस लैंडिंग स्थल के आसपास मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना को निर्धारित करने का प्रयास करेगा. एलआईबीएस गुणात्मक और मात्रात्मक मौलिक विश्लेषण, रासायनिक संरचना प्राप्त करने और खनिज संरचना का अनुमान लगाने के लिए जिम्मेदार होगा. एलआईबीएस लेजर का उपयोग चंद्रमा की सतह से निकलने वाली गैसों के स्पेक्ट्रोस्कोपिक अध्ययन के काम में लायेगा.
दूसरी ओर, एपीएक्सएस के साथ काम में चंद्रमा की सतह पर अल्फा कणों की शूटिंग और उत्सर्जन पैदा करना और फिर रासायनिक संरचना का अध्ययन करना शामिल होगा. रोवर विशेष रूप से मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और आयरन तत्वों की तलाश करेगा.
लैंडर और रोवर करेंगे कौन से मुख्य प्रयोग
चंद्रमा की सतह के पास इलेक्ट्रॉनों और आयनों का अध्ययन करेगा. वह यह पहचानने की कोशिश करेगा कि समय के साथ वे कैसे बदलते हैं।
चंद्रमा का सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट करेगा अर्थात यह चंद्रमा के सतह के थर्मल गुणों का अध्ययन करेगा.
चंद्र भूकंपीय गतिविधि उपकरण (आईएलएसए) लैंडिंग स्थल के पास चंद्र भूकंप को मापेगा और चंद्रमा की परत और मेंटल की संरचना का अध्ययन करेगा.
लेजर रेट्रोरेफ्लेक्टर ऐरे (एलआरए) नासा द्वारा भेजा गया एक निष्क्रिय प्रयोग है जो भविष्य के मिशनों के लिए बहुत सटीक माप के लिए लेजर के लिए एक लक्ष्य के रूप में काम करेगा.
लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) चंद्र सतह की रासायनिक और खनिज संरचना का अध्ययन करेगा.
अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों में मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और लौह जैसे तत्वों के बारे में अध्ययन करेगा.
प्रज्ञान चंद्रमा के वातावरण का भी अध्ययन करेगा. अक्सर यह कहा जाता है कि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है, लेकिन यह बिल्कुल सही नहीं है. चंद्रमा की सतह के पास थोड़ा सा वातावरण है. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने 10 जुलाई को भारत अंतरिक्ष कांग्रेस 2023 के मौके पर मीडिया को बताया था कि चंद्रमा में गैसों का उत्सर्जन होता है. वे आयनित होकर सतह के बहुत करीब रहती हैं. यह दिन और रात के साथ बदलता रहता है. इसलिए हम दिन-रात अध्ययन करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस सतह से लगे हुए वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानना रोचक होगा.
प्रज्ञान का मिशन जीवन 1 चंद्र दिवस यनी लगभग पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है. यह वह अवधि होगी जिसमें भारतीय रोवर अपने उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयास करेगा. रोवर के संचालन की अवधि उसके ऊर्जा स्रोत सूर्य पर निर्भर है. जबतक वहां सूर्य का प्रभाव रहेगा रोवर काम करता रहेगा. लेकिन सूर्यास्त होने के बाद वह कोई भी चहलकदमी नहीं कर पायेगा. बल्कि उसे बहुत ठंडे वातावरण को झेलना पड़ेगा. हालांकि, एक बहुत छोटी सी संभावना यह भी है कि दोबारा सूर्योदय होने पर यह फिर से काम करने लगे.