कोलकाता : चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान अपने प्रक्षेपण के बाद से चंद्रमा की लगभग दो-तिहाई दूरी तय कर चुका है. शनिवार वह सफलतापूर्वक चंद्र कक्षा में प्रवेश कर गया, पूर्व इसरो वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने कहा कि चंद्र मिशन देश के अंतरिक्ष अन्वेषण में नए अध्याय जोड़ेगा. कोलकाता में समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए मिश्रा ने कहा कि हमारे रॉकेट (प्रक्षेपण वाहन) बहुत शक्तिशाली नहीं हैं. एक बार जब रॉकेट पृथ्वी की कक्षा से निकल जाता है तो उन्हें आगे बढ़ने के लिए 11.2 किमी/सेकंड की रफ्तार की जरूरत होती है. चूंकि हमारे रॉकेट इस गति को हासिल नहीं कर सकते हैं इसलिए हमने स्लिंग-स्लॉट तंत्र का सहारा लिया.
स्टैनफोर्ड विवि की एक बेवसाइट scienceinthecity.stanford.edu के मुताबिक स्लिंगशॉट भौतिकी में किसी चीज को तेज गति से प्रक्षेपित करने के लिए संग्रहीत इलेस्टिक एनर्जी के उपयोग की तकनीक है. गुगेल स्लिंगशॉट तकनीक का सबसे सरल उदाहरण है. यहां गुलेल की रबर में जो इलेस्टिक एनर्जी है उसका इस्तेमाल किया जाता है. गुलेल का इस्तेमाल करते हुए प्रारंभ में गुलेल संचालक की मांसपेशियों की ऊर्जा रबर में ट्रांसफर होती है और फिर रबर की इलेस्टिक एनर्जी गुलेल के माध्यम से प्रक्षेप्य को अधिकतम गति से लक्ष्य की ओर दागती है.
scienceinthecity.stanford.edu के मुताबिक स्लिंगशॉट तकनीक में किसी प्रक्षेपक की इलेस्टिसिटी का अधिकतम इस्तेमाल प्रक्षेप्य को अधिकतम गति देता है. यह मूलत: न्यूटन के तीसरे नियम पर आधारित है. आधुनिक भौतिकी में इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले कम शक्तिशाली रॉकेट को अधिकतम गति देने में किया जाता है.