Chandrayaan 3: इसरो के साथ काम करने को कई देश इच्छुक : खगोल वैज्ञानिक रमेश कपूर
इस मिशन और यात्रा के बारे में खगोल वैज्ञानिक और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर डॉ. रमेश कपूर ने ईटीवी भारत के सौरभ शर्मा से बात की. पढ़ें साक्षात्कार के अंश...
डॉ. रमेश कपूर
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Published : Jul 14, 2023, 7:21 AM IST
Q. चंद्रयान 3 की इस लॉन्चिंग का क्या महत्व है?
- यह न केवल वैज्ञानिक मिशनों के लिए, बल्कि अन्य मिशनों के लिए भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है. चंद्रयान ने हमारे दिल और दिमाग में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखा है क्योंकि चंद्रमा एक ऐसी जगह है जहां लोग वास्तव में जाना चाहते हैं. लोगों को उम्मीद थी कि भारत भी एक दिन वहां अपना मिशन लांच होगा. एक दिन भारतीय अंतरिक्ष यात्री भी चंद्रमा की सतह पर उतरेंगे. फिर 2019 में चंद्रयान 2 भी गया और दुर्भाग्य से, लेंडर में खराबी के कारण रोवर ठीक से काम नहीं कर सका. यह काफी निराशाजनक था. लेकिन, इसरो ने हिम्मत नहीं हारी. इस दौरान भारत सरकार से भी काफी सहयोग मिला. वे फिर आगे बढ़े और अक्टूबर 2019 में चंद्रयान 3 की योजना बनाई.
बीच में कोरोना काल के कारण मिशन के काम में कुछ रुकावटें आयी लेकिन आखिरकार, इसरो अपने रोवर को फिर से डिजाइन करने में सक्षम हो गया. नया रोवर अधिक मजबूत है और यह चंद्रमा की सतह पर बेहतर तरीके से काम करेगा.
Q. इस मिशन का भारत और उसके अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए क्या मतलब है?
- इसरो दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक रही है. नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, चीन और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसियों के बाद यह पांचवें स्थान पर है. यह स्थान इसरो को वर्षों की मेहनत के बाद मिला है. इसरो को पहली सफलता तब मिली जब 1994 में ध्रुवीय उपग्रह वाहन की पहली सफल उड़ान भरी. 1999 की शुरुआत में, इसरो ने भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों (जीएसएलवी) के बारे में सोचना शुरू किया.
जीएसएलवी एक बड़ा और बहुत शक्तिशाली रॉकेट है. यह इसरो का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है. जिसके माध्यम से चंद्रमा पर लैंडर और रोवर भेजा जा रहा है. इससे पहले, 1998 के परमाणु परीक्षणों के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इसरो के साथ सहयोग करने से अस्वीकार कर दिया था. लेकिन अब हाल के दिनों में इसरो के काम में जबरदस्त विकास हुआ है. कई अलग-अलग देशों की विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियां इसरो के साथ सहयोग करना चाहेंगी. जिससे एक बड़ा अंतरिक्ष क्षेत्र तैयार होगा. इसके साथ ही इस क्षेत्र में स्टार्ट-अप के रूस में निजी क्षेत्र भी प्रवेश कर रहा है.
Q. पिछली बार 2019 में भारत के विफल होने के बाद यह भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है?
- यह सबसे महत्वपूर्ण बात है. यह सिर्फ अंतरिक्ष में कुछ भेजने भर का मामला नहीं है. पृथ्वी का पलायन वेग 11.2 किमी प्रति सेकंड है और यदि आप इस गति से किसी वस्तु को लंबवत ऊपर भेज सकें तो वह पृथ्वी को हमेशा के लिए छोड़ देगी. चंद्रमा पर यह छह गुना कम है. अब, अगर आप चंद्रमा की सतह पर लगभग 2 किमी प्रति सेकंड की गति से कुछ छोड़ना चाहते हैं तो यह किसी भी चीज के लिए खतरनाक है. इसलिए, हमारा उद्देश्य उस स्थान के मुताबिक काम करने वाले उपकरण भेजना है. फास्ट लैंडिंग एक बहुत ही जटिल मामला है और इसमें बहुत सारी गणनाओं की आवश्यकता होती है.
ऑर्बिटल में एक हाई-रिजॉल्यूशन कैमरा है. इसने 30-सेंटीमीटर रिजॉल्यूशन जैसे उच्च रिजॉल्यूशन पर पूरे चंद्रमा की तस्वीरें ली हैं. यह छवि यहां पूर्णतः उपलब्ध है. उस छवि का उपयोग करके, अब हम यह समझने में सक्षम हैं कि उतरने के लिए कौन सी जगह बेहतर है. हमने लैंडिंग क्षेत्र को चौड़ा कर दिया है. चंद्रयान-2 होने का यह एक बड़ा फायदा है. चंद्रयान-2 ऑर्बिटर पर बहुत सारे उपकरण थे और वे सभी ठीक से काम कर रहे हैं. इसने चंद्रमा की रिमोट सेंसिंग तस्वीरें ली हैं और कई नए वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाले हैं. हमने 2019 की लैंडिंग की विफलता के दौरान बहुत सी चीजें सीखी हैं.
अंतरिक्ष के अध्ययन करने के बाद जो हम एक बात जानते हैं वह यह है कि वहां हम किसी भी चीज को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं. हम योजना बनाते हैं उसके अनुसार पूरी तैयारी करते हैं. कुछ चीजें होने की उम्मीद करते हैं. इसमें कई चीजें गलत भी हो सकती है. लेकिन गलतियां भी अभूतपूर्व परिणाम दे सकती हैं. हमें रुकना नहीं है, हमें इस क्षेत्र में काम करते रहना होगा.
Q. इस मिशन से हम किन दिलचस्प चीजों की उम्मीद कर सकते हैं?
- चंद्रमा का शरीर पिछले चार अरब वर्षों से उल्कापिंडों से प्रभावित हो रहा है. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि वहां पानी की संभावना है, जो भविष्य में रहने के लिए उपयोगी होगा. यह इसे जल संसाधनों और भविष्य के मानव मिशनों के लिए उनके निहितार्थों के अध्ययन के लिए एक दिलचस्प स्थान बनाता है. लेकिन, दक्षिणी ध्रुव की खोज इसके ऊबड़-खाबड़ और दुर्गम इलाकों के कारण चुनौतीपूर्ण है.