बेंगलुरु : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने गुरुवार को कहा कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान का लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर चिह्नित क्षेत्र के अंदर उतरा. सोमनाथ ने कहा, 'लैंडर चिह्नित स्थान पर सही से उतरा. लैंडिंग स्थल को 4.5 किमी गुणा 2.5 किमी के रूप में चिह्नित किया गया था. मुझे लगता है कि उस स्थान पर, और उसके सटीक केंद्र की पहचान उतरने के स्थल के रूप में की गई थी. यह उस बिंदु से 300 मीटर के दायरे में उतरा. इसका मतलब है कि यह लैंडिंग के लिए चिह्नित क्षेत्र के अंदर है.' इसरो ने लैंडिंग की एक और तस्वीर जारी की है.
इसरो ने बुधवार को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से लैस एलएम की सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिग कराई. भारतीय समयानुसार शाम करीब छह बजकर चार मिनट पर इसने चांद की सतह को छुआ. इसरो प्रमुख ने एक सवाल के जवाब में कहा कि रोवर अब अच्छी तरह काम कर रहा है.
चंद्रयान-3 से चंद्रमा पर जीवन की संभावना और सौर मंडल के रहस्यों को जानने में मिलेगी मदद- वैज्ञानिकों का कहना है कि अब सबसे महत्वपूर्ण चुनौती चांद के दुर्गम दक्षिणी ध्रुवीय इलाके में पानी की मौजूदगी की संभावना की पुष्टि और खानिज एवं धातुओं की उपलब्धता का पता लगाने की होगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन अध्ययनों से चंद्रमा पर जीवन की संभावना एवं सौर मंडल की उत्पत्ति के रहस्यों से परदा हटाने में भी मदद मिलेगी.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर शांतब्रत दास ने को बताया, 'चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बेहद दुर्गम और कठिन क्षेत्र है. इसमें 30 किलोमीटर तक गहरी घाटियां और 6-7 किलोमीटर तक ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र आते हैं. इस इलाके में लैंडिंग करना ही अपने आप में काफी चुनौतिपूर्ण कार्य था.' उन्होंने बताया कि चंद्रमा के इस हिस्से में कई इलाके ऐसे हैं जहां सूर्य की किरणें पड़ी ही नहीं हैं. ऐसे में यहां जमे हुए पानी के महत्वपूर्ण भंडार हो सकते हैं. चंद्रयान-1 से इस बारे में संकेत भी मिले थे.
प्रो. दास ने बताया कि प्रज्ञान रोवर पर दो पेलोड लगे हैं. इसमें पहला लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप है जो चांद की सतह पर मौजूद रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता का अध्ययन करने के साथ ही खनिजों की खोज करेगा. दूसरा पेलोड अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है जो तत्वों एवं अवयवों की बनावट का अध्ययन करेगा और मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकान, पोटैशियम, कैल्शियम, टिन, लोहे के बारे में पता लगायेगा.
चंद्रमा पर धातुओं एवं खनिजों की उपलब्धता के बारे में एक सवाल के जवाब में आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर दास ने कहा, 'मैं वहां धातुओं एवं खनिजों की मौजूदगी से इंकार नहीं कर रहा. लेकिन यह कितनी मात्रा में होगी, यह महत्वपूर्ण विषय है.'
उन्होंने बताया कि चंद्रमा की मिट्टी की संरचना का अध्ययन करने से यह बात सामने आई है कि इसका औसत घनत्व 3.2 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर है जो पृथ्वी के औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर से करीब करीब आधा है. चंद्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के बाद हुई है, ऐसे में वहां भारी धातुओं की मौजूदगी की मात्रा अध्ययन का विषय होगी. प्रो. दास ने बताया कि चंद्रमा पर आगे अध्ययन से निश्चित रूप से भविष्य के अभियान, वहां जल की मौजूदगी आदि के बारे में जानने में काफी मदद मिलेगी.