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Chandrayaan 3 : हर हाल में 23 या 24 अगस्त को करनी होगी सॉफ्ट लैंडिंग, नहीं तो करना पड़ेगा 29 दिन और इंतजार - Chandrayaan 3 update

चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) चंद्रमा के और करीब पहुंच गया है. इसके 23 अगस्त को सॉफ्ट-लैंडिंग करने की उम्मीद है. 23 को सफलता नहीं मिली तो अगला प्रयास ये 24 अगस्त को करेगा. हालांकि उसे हर हाल में 24 से पहले सॉफ्ट लैंडिंग करनी पड़ेगी जानिए क्यों?

Chandrayaan 3
चंद्रयान 3

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Published : Aug 19, 2023, 4:18 PM IST

नई दिल्ली :भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने ऐतिहासिक मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) पर नए अपडेट साझा किए हैं. अंतरिक्ष यान धीरे-धीरे चंद्रमा के करीब पहुंच रहा है. चंद्रयान-3, 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में अपना पहला सॉफ्ट-लैंडिंग प्रयास करेगा.

चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल, जिसमें विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर शामिल हैं. उसने सफल डीबूस्टिंग के बाद अपनी कक्षा को घटाकर 113 किमी x 157 किमी कर दिया है. यानि भारत का चंद्रयान 3 चंद्रमा से सिर्फ 113 किलोमीटर की दूरी पर है. इसका दूसरा डीबूस्टिंग ऑपरेशन 20 अगस्त, 2023 को दोपहर 2 बजे के आसपास निर्धारित है.

वहीं, चंद्रयान 3 को लेकर एक बात और भी सामने आ रही है कि यह 23 अगस्त से पहले उतर नहीं सकता और 24 अगस्त के बाद उतरना भी नहीं चाहेगा. दरअसल अवलोकनों और प्रयोगों के लिए अधिकतम समय प्राप्त करने के लिए चंद्रयान-3 का चंद्र दिवस की शुरुआत में उतरना महत्वपूर्ण है. यदि किसी कारण से, यह 23 अगस्त को लैंडिंग का प्रयास करने में असमर्थ रहता है तो अगले दिन एक और प्रयास किया जाएगा. अगर तब भी लैंडिंग संभव नहीं हो पाई तो चंद्र दिवस और चंद्र रात्रि समाप्त होने के लिए पूरे एक महीने यानि लगभग 29 दिन तक इंतजार करना होगा.

इसरो ने 23 अगस्त को ही लैंडिंग के लिए क्यों चुना :इसरो ने 23 अगस्त का दिन ही सॉफ्ट लैंडिंग के लिए क्यों चुना इसके पीछे एक खास वजह है. 23 अगस्त को चंद्रमा पर दिन की शुरुआत होगी. जब सूर्य का प्रकाश लगातार उपलब्ध रहता है. एक चंद्र दिवस पृथ्वी पर लगभग 14 दिनों के बराबर होता है. चंद्रयान-3 के उपकरणों का जीवन केवल एक चंद्र दिवस या 14 पृथ्वी दिवस का है.

दिन के समय सॉफ्ट लैंडिंग की बड़ी वजह ये भी है क्योंकि इसमें सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण हैं और उन्हें चालू रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है. रात के समय चंद्रमा अत्यधिक ठंडा हो जाता है. उसका तापमान शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है. ऐसे कम तापमान पर काम करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन नहीं किए गए इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण जम सकते हैं और काम करना बंद कर सकते हैं. यही वजह है कि इसरो ने दिन के समय सूर्य की रोशनी में चंद्रयान उतारने का फैसला किया है.

रूस के लूना 25 के साथ ये बात लागू नहीं होती :अब अगर बात करें रूस के लूना 25 की तो उसके लिए चंद्रमा पर उतरने के लिए दिन और रात कोई मायने नहीं रखती. लूना 25 भी भारत के चंद्रयान 3 की तरह सोलर एनर्जी से संचालित है. लेकिन उसके पास एक खास सुविधा मौजूद है जो भारत के पास नहीं है. और वह है इसमें रात के समय उपकरणों को गर्मी और बिजली प्रदान करने के लिए एक ऑनबोर्ड जनरेटर भी है. इसका जीवन एक वर्ष है, और इसकी लैंडिंग तिथि का चुनाव इस बात से तय नहीं होता है कि चंद्रमा पर सूर्य कितना चमक रहा है.

चंद्रयान 3 और लूना 25 दोनों हैं चंद्रमा की कक्षा में :भारत का चंद्रयान-3 और रूस का लूना 25 दोनों चंद्रमा की कक्षा में हैं. दोनों ही अगले सप्ताह चंद्रमा पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं. लूना 25 के 21 अगस्त को उतरने की उम्मीद है, जबकि चंद्रयान-3 की बात करें तो उसके दो दिन बाद यानि 23 अगस्त को उतरने की संभावना है.

दोनों मिशनों का लक्ष्य दक्षिणी ध्रुव के पास एक ऐसे क्षेत्र में उतरना है, जहां चांद पर पहले कोई अंतरिक्ष यान नहीं गया है. 1976 में तत्कालीन सोवियत संघ के लूना 24 की लैंडिंग के बाद से, केवल चीन चंद्रमा पर 2013 और 2018 में अंतरिक्ष यान उतारने में सक्षम रहा है, ये सभी उत्तरी ध्रुव पर उतरे हैं. भारत और रूस दोनों अपनी पहली सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि यह कहा जा रहा है कि दोनों की लैंडिंग दक्षिणी ध्रुव के पास होगी, लेकिन लैंडिंग स्थल चंद्रमा पर बिल्कुल ध्रुवीय क्षेत्र में नहीं हैं. चंद्रयान-3 के लिए चयनित स्थल लगभग 68 डिग्री दक्षिण अक्षांश है जबकि लूना 25 का स्थान 70 डिग्री दक्षिण के करीब है.

लूना 25 इस वजह से पहले उतर रहा चांद पर :10 अगस्त को लॉन्च हुआ लूना 25 प्रक्षेपण के बाद केवल छह दिनों में चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया. वहीं, चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च होने के बाद 23 दिन लग गए. इसकी वजह ये है कि लूना 25 का रॉकेट भारत के चंद्रयान 3 से ज्यादा शक्तिशाली है. इसरो के पास अभी भी चंद्रमा की कक्षा में सीधे जाने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली रॉकेट नहीं है. हालांकि, चंद्रयान-3 के घुमावदार मार्ग ने ऊर्जा और लागत बचाने में मदद की है.

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