नई दिल्ली :भारत का चंद्रयान 3, चंद्रमा के और करीब पहुंच गया है. 14 अगस्त को अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह के और निकट पहुंचा. हालांकि अगर इसकी तुलना 10 अगस्त को भेजे गए रूस के लूना 25 से की जाए तो वह दो पहले यानि 21 अगस्त को चंद्रमा पर उतर सकता है. वहीं, उम्मीद है कि 23 अगस्त को चंद्रयान-3 लैंडिंग का प्रयास करेगा (Chandrayaan 3 All eyes on Indian spacecraft).
इसरो ने ट्वीट कर दी जानकारी :भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि चंद्रयान-3 अब चंद्रमा की 'निकटवर्ती कक्षा' में पहुंच गया है. इसरो ने ट्वीट किया, 'चंद्रयान को चंद्रमा की सतह के नजदीक लाने की प्रक्रिया शुरू. आज की गई प्रक्रिया के बाद चंद्रयान-3 की कक्षा घटकर 150 किमी x 177 किमी रह गई है.' उसने बताया कि अगली प्रक्रिया को 16 अगस्त को सुबह करीब साढ़े आठ बजे अंजाम दिए जाने की योजना है.
इसरो के सूत्रों के अनुसार, अंतरिक्ष यान को 100 किमी की कक्षा तक पहुंचाने के लिए एक और प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा जिसके बाद लैंडर और रोवर से युक्त 'लैंडिंग मॉड्यूल' आगे की प्रक्रिया के तहत 'प्रॅपल्शन मॉड्यूल' से अलग हो जाएगा. लैंडर के 'डीबूस्ट' (धीमे होने की प्रक्रिया) से गुजरने और 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर 'सॉफ्ट लैंडिंग' करने की उम्मीद है.
जानिए चंद्रयान 3 का सफर :'चंद्रयान-3' का प्रक्षेपण 14 जुलाई को किया गया था. पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था. छह और नौ अगस्त को चंद्रयान को कक्षा में नीचे लाए जाने की दो प्रक्रियाओं को अंजाम दिया गया. इसरो ने अभियान के आगे बढ़ने पर चंद्रयान-3 की कक्षा धीरे-धीरे घटानी शुरू की तथा उसे चंद्र ध्रुव के समीप लाने की प्रक्रियाओं को अंजाम दिया.
इसका रखा जा रहा ध्यान :पिछले हफ्ते इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा था कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर की स्पीड को 30 किमी की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक लाने की प्रक्रिया है. अंतरिक्ष यान को होरिजेंटल से वर्टिकल दिशा (horizontal to vertical direction) में स्थानांतरित करने की क्षमता है. उन्होंने कहा, 'लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में वेग लगभग 1.68 किमी प्रति सेकंड है, लेकिन यह गति चंद्रमा की सतह के क्षैतिज है. यहां चंद्रयान 3 लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है, इसे ऊर्ध्वाधर बनना होगा. इसके लिए हमने बहुत सारे सिमुलेशन किए हैं. यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान 2) समस्या हुई थी.' इसके अलावा, यह सुनिश्चित करना होगा कि ईंधन की खपत कम हो, दूरी की गणना सही हो और सभी एल्गोरिदम ठीक से काम कर रहे हों.
भारत का मिशन पहुंचने में ज्यादा समय क्यों :भारतीय मिशनों को अन्य देशों के मिशनों की तुलना में गंतव्य तक पहुंचने में अधिक समय लगता है? इसका कारण उसकी टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि ईंधन है.
समान मिशनों की तुलना की जाए तो भारत काफी हद तक ईंधन लागत बचाने में सक्षम है. ऐसा 2013-2014 के मंगल ग्रह के प्रक्षेपण यान के दौरान भी देखा गया था. जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का मंगलयान 5 नवंबर, 2013 को लॉन्च हुआ और 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंच गया, जबकि नासा का एटलस वी (मंगल वायुमंडल और वाष्पशील विकास या MAVEN) 18 नवंबर, 2013 को लॉन्च किया गया और 21 सितंबर, 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया.
अंतरिक्ष में कुछ भी लॉन्च करते समय, पेलोड और रॉकेट दोनों का प्रत्येक एक ग्राम ईंधन की मात्रा को प्रभावित करता है जिसे उसे ले जाने की आवश्यकता होती है. अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों की तुलना में इसरो अपने सीमित बजट में यथासंभव कम लागत पर मिशनों को पूरा करने का प्रयास करता है.
पीएसएलवी (मंगलयान), जीएसएलवी और एलवीएम3 (चंद्रयान-2, 3) जैसे भारतीय प्रक्षेपण यान एटलस वी या रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के सोयुज (लूना मिशन) की तुलना में आकार और मात्रा में बहुत छोटे हैं.