नई दिल्ली :साल 1983 का जनवरी का महीना था जब युवा तुर्क कहे जाने वाले नेता चंद्रशेखर (Chandrashekhars) ने भारत यात्रा (bharat Yatra) की शुरुआत कन्याकुमारी से की थी. इस यात्रा में चंद्रशेखर के साथ शुरू से लेकर अंत तक रहे लोगों में क्रांति प्रकाश का भी नाम है. क्रांति प्रकाश पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बहुत नजदीकी लोगों में से हैं.
जनवरी 1983 में की उस यात्रा को याद करते हुए क्रांति प्रकाश कहते हैं 'जनवरी में कन्याकुमारी से चली वो यात्रा जून में खत्म हुई. उस यात्रा में शरद यादव, केसी त्यागी, मैं और सुबोधकांत सहाय सरीखे लोग थे. यात्रा के दौरान हम लोग रास्ते में पड़ने वाले स्कूलों में या किसी ऐसी जगह जहां गांवों में बारातें रुकवाईं जाती हों, रुक जाते थे. कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी के दरवाज़े पर ही हम लोग सो गए. हमारे पास मात्र एक गाड़ी यानी एक टेम्पो ट्रैवलर होती थी, जिसमें हम लोगों का सामान रखा रहता था. आधे हिस्से में सामान और आधे में ऑफिस चलता था. के. बाला सुब्रमण्यम उस ऑफिस के इंचार्ज होते थे और जो भी चंदा हमें मिलता था, उसका हिसाब रखते थे.'
ये पूछने पर कि चंद्रशेखर पूरे देश को पैदल क्यों नापना चाहते थे, क्रांति प्रकाश बताते हैं कि यात्रा का मूल उद्देश्य भारत के गांवों-कस्बों की समस्याओं से रूबरू होना था. खास तौर पर इस यात्रा के दौरान पानी को लेकर अध्ययन भी करना था. देश के बहुत से इलाके पानी की समस्या से दो-चार हो रहे थे. चंद्रशेखर जी कहते भी थे कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा. यात्रा को लेकर बड़ी आलोचना भी हुई कि चंद्रशेखर विनोबा भावे या महात्मा गांधी बनना चाहते हैं. अंदरूनी बात ये थी कि चंद्रशेखर उस समय इंदिरा गांधी के बराबर के नेता बनना चाहते थे. यात्रा सफल रही और उससे चंद्रशेखर जी की एक पहचान बनी.
एक घटना का ज़िक्र करते हुए क्रांति प्रकाश बताते हैं- 'एक दिन जब यात्रा महाराष्ट्र के बॉर्डर पर पहुंची तो गांव वालों ने आराम करने के लिए सड़क पर ही एक जगह बना दी. तभी पास के गांव की एक औरत आई, उनकी हथेली पर एक रुपये का सिक्का रख दिया और कहा कि तुम अच्छा काम कर रहे हो. उस महिला के जाने के बाद चंद्रशेखर जी ने कहा कि मेरी निगाह में बजाज या दूसरे किसी उद्योगपति से मिले पैसे से इस एक रुपये की कीमत बहुत ज्यादा है.'
क्रांति प्रकाश बताते हैं कि चंद्रशेखर की लोकप्रियता उस यात्रा से इतनी बढ़ गई थी कि 25 जून 1983 को जब दिल्ली में यात्रा की समाप्ति पर वे रामलीला मैदान पर रैली कर रहे थे, तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन पर बॉबी फिल्म चलवा दी थी, ताकि लोग फिल्म देखने के लिए घर पर ही रहें, रामलीला मैदान न जा पाएं.