चंचल हथनी की तबीयत हुई खराब जबलपुर।मध्यप्रदेश में इन दिनों प्रचंड गर्मी और लू से लोग क्या जानवरों का हाल भी बेहाल है. जबलपुर में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री के आयोजन में 1 महीने पहले छतरपुर से चंचल नाम की हथिनी आई थी. लंबी यात्रा और झुलसाने वाली गर्मी की वजह से चंचल की तबीयत खराब हो गई. शुरुआत में चंचल के महावत गोविंद को लगा कि हथनी धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चंचल की तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ने लगी. तब उसे जबलपुर के स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ के डॉक्टरों की मदद लेनी पड़ी.
गर्मी की वजह से इन्फेक्शन:स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ के प्रभारी डॉ आरके शर्मा का कहना है कि चंचल का इलाज बीते 1 सप्ताह से चल रहा है. शुरुआत में उन्होंने चंचल के ब्लड सैंपल लिए और उसके मर्ज को समझा तो पता चला कि उसे यूरिनरी इनफेक्शन है. इसी की वजह से वह बीमार है. डॉक्टरों का कहना है कि इंफेक्शन की एक बड़ी वजह तेज गर्मी है. इसलिए डॉक्टर उसकी फ्लूट थेरेपी कर रहे हैं. चंचल को 35 लीटर के करीब ग्लूकोस पिलाया गया है, जो सामान्य तौर पर लू की शिकायत में इलाज के दौरान दिया जाता है. इसके साथ ही लगभग 9 लीटर एंटीबायोटिक हथिनी को दिया गया है. चंचल के महावत गोविंद का कहना है कि अब चंचल की हालत ठीक हो रही है और उसकी चंचलता लौट रही है. डॉक्टरों का कहना है कि हाथी का शरीर बहुत बड़ा होता है, इसलिए उसमें दवा का असर होने में भी बहुत समय लगता है. इसी वजह से चंचल का इलाज अभी आने वाले 15 दिनों तक और चलेगा.
हाथी पालना बच्चों का खेल नहीं: चंचल के महावत गोविंद बीते 25 सालों से उसके साथ हैं. उनका कहना है कि जब उनके गुरु इसे बिहार से खरीद कर लाए थे तो यह एक छोटी बच्ची थी, उन्होंने उसे धीरे-धीरे बड़ा किया और बीते 25 सालों में शायद ही कोई दिन गया होगा, जब चंचल भूखी रही हो. वे पहले चंचल के खाने का इंतजाम करते हैं. उसके बाद अपने बारे में सोचते हैं. चंचल दिन भर में 1 क्विंटल के लगभग राशन घास फूस या फिर पत्तियां खा जाती है. शहरी इलाकों में राशन के नाम पर कुछ नहीं मिलता, लेकिन लोग हाथी को देखकर दान पुण्य जरूर करते हैं और शहर में उन्हें अनाज और हरी घास खरीद करके लानी पड़ती है. वही गोविंद का कहना है कि इस मामले में गांव के लोग कुछ ज्यादा दिलदार होते हैं और हाथी की पूजा गणपति मानकर की जाती है. इसलिए वे जब भी गांव से गुजरते हैं तो गांव के लोग भरपूर अनाज और दान दक्षिणा देते हैं. गोविंद का कहना है कि उनके जीने का सहारा चंचल है और इसी के भरोसे वे और उनके दो और साथी साल भर घूमते फिरते रहते हैं.
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हाथी पालने का चलन मेनका गांधी की वजह से खत्म हुआ: गोविंद का कहना है कि हाथी पालने का चलन धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. उसकी एक बड़ी वजह मेनका गांधी का आंदोलन है, उनकी वजह से अब हाथी पालने की नई अनुमति नहीं मिल रही है. अभी जिन लोगों के पास हाथी हैं, उनके पास पुरानी वन विभाग की अनुमतिया हैं. अब गिने-चुने लोगों के पास ही निजी हाथी हैं, हालांकि अभी भी सरकारी महकमें में खासतौर पर वन विभाग में हाथी पाले जाते हैं और उनकी सेवाएं ली जाती हैं, लेकिन निजी हाथी पालकों को धीरे-धीरे अनुमति मिलना बंद हो गई है, डॉक्टरों का कहना है कि हाथी को पाला जा सकता है, क्योंकि उसमें सीखने के गुण होते हैं और वह कभी कभार ही आक्रामक होता है. चंचल इन दिनों जबलपुर के कांच घर के पास जीसीएफ के क्वार्टर में डेरा डाले हुए हैं यहां कुछ पुराने पेड़ हैं, जिनकी पत्तियों के भरोसे चंचल को भरपूर भोजन मिल जाता है. गोविंद को उम्मीद है कि जल्द ही उसकी हथिनी स्वस्थ हो जाएगी और वह अपने अगले सफर पर निकल पड़ेंगे. हथनी का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि इससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है जो आगे भी उनके अनुभव के लिए बहुत जरूरी है.