नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट को केंद्र ने बताया कि उसने राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श बैठकें की हैं और अब तक 14 राज्यों ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं. केंद्र ने मंगलवार को कहा कि शेष 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की टिप्पणियां प्राप्त नहीं हुई हैं और चूंकि मामला 'संवेदनशील प्रकृति' का है और इसके 'दूरगामी प्रभाव' होंगे, इसलिए उन्हें अपने विचारों को अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय दिया जाना चाहिए. जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस ए. एस. ओका की पीठ ने केंद्र को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए छह सप्ताह का समय दिया.
शीर्ष अदालत ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट का अवलोकन किया जिसमें कहा गया है कि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस मुद्दे पर अपनी राय बनाने से पहले सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करने के लिए अतिरिक्त समय देने का अनुरोध किया है. स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों ने अपनी टिप्पणी दी है. शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. इसमें दलील दी गई है कि हिंदू 10 राज्यों में अल्पसंख्यक हैं.
उपाध्याय ने सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग अधिनियम, 2004 की धारा 2(एफ) की वैधता को चुनौती दी है. केंद्र को भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने का अधिकार देने वाली अधिनियम की धारा 2 (एफ) को 'स्पष्टतः मनमाना, तर्कहीन और अपमानजनक' करार देते हुए उनकी याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह केंद्र को निरंकुश शक्ति देता है. केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि मंत्रालय ने 31 अक्टूबर को एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है. पीठ ने कहा, "आपने कहा है कि 14 राज्यों ने टिप्पणियां दी हैं." शीर्ष अदालत ने कहा कि इन मुद्दों पर सावधानीपूर्वक गौर करने की आवश्यकता है और इस पर अचानक निर्णय नहीं किया जा सकता.