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पूर्वोत्तर में जातीय अल्पसंख्यक समुदायों की समस्याएं हल करने के लिए हो रहा अध्ययन

पूर्वोत्तर राज्यों में जातीय अल्पसंख्यक समुदायों (ethnic minority communities) की समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र सरकार गंभीर है. केंद्र सरकार बाकायदा इसके लिए अध्ययन भी करा रही है, जिसकी जिम्मेदारी ओकेडीआईएससीडी को सौंपी गई है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबराय की रिपोर्ट.

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Published : Oct 23, 2021, 7:35 PM IST

नई दिल्ली:पूर्वोत्तर राज्यों में जातीय अल्पसंख्यक समुदायों की समस्याओं और चिंताओं का विश्लेषण करने और नीतिगत परिप्रेक्ष्य में समस्याओं के समाधान का सुझाव देने के लिए केंद्र ने एक अध्ययन शुरू किया है.

ऐसा किया जाना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में कई जातीय समुदाय ने पड़ोसी देशों से लोगों के बड़े पैमाने पर अप्रवास के बाद अपनी चिंता व्यक्त की है. पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) के तहत पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) द्वारा संचालित अध्ययन का उद्देश्य ऐसे उपाय खोजना है जो जातीय अल्पसंख्यकों की चिंता को दूर कर सकें.

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'पूर्वोत्तर क्षेत्र के जातीय अल्पसंख्यकों की समस्याओं पर अध्ययन गुवाहाटी स्थित ओमियो कुमार दास सामाजिक परिवर्तन और विकास संस्थान (ओकेडीआईएससीडी) द्वारा किया जा रहा है.'

गौरतलब है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र की 12 लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार के लिए एनईसी ने पहले ही केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान-मैसूर, तेजपुर विश्वविद्यालय, सिक्किम विश्वविद्यालय और ईटानगर स्थित राजीव गांधी विश्वविद्यालय को जिम्मेदारी सौंपी है.

विकास परियोजनाओं पर खर्च की जा रही रकम
एनईसी ने पिछड़े ब्लॉकों के लिए 59.37 करोड़ रुपये की लागत वाली 17 परियोजनाओं को मंजूरी दी है. विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों के लिए 60.34 करोड़ रुपये की लागत वाली 14 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है.

स्वीकृत परियोजनाओं का उद्देश्य क्षेत्रों का समग्र विकास करना है. अधिकारी ने कहा, 'सरकार ने क्षेत्र की जनजातीय आबादी के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.'

विस्थापन के कारण आत्महत्या के मामले बढ़े
गृह मामलों की एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में सामने आया है कि अरुणाचल प्रदेश की इडु मिशिमी जनजाति को विशेष रूप से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. जबरन विस्थापन के कारण आत्महत्या के मामले सामने आए हैं. समिति ने कहा कि इन जनजातियों का संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि ये पूर्वोत्तर क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत और विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं.

एक अनुमान के अनुसार पूर्वोत्तर में करीब 220 जातीय समुदाय हैं. पहाड़ी राज्यों में मुख्य रूप से देशी जातीय समुदायों का निवास है, यहां तक ​​कि जातीय समूहों के भीतर भी विविधता है. इस क्षेत्र में 220 बोलियां हैं.

सीडीएफआई के संस्थापक ने उठाया सवाल
जब 'ईटीवी भारत' ने चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीडीएफआई) के संस्थापक सुहास चकमा से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि ऐसा अध्ययन किया जा रहा है, ये स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसे सरकार को या नीति आयोग जैसे उसके किसी भी संबद्ध संगठन द्वारा किया जाना चाहिए था. साथ ही सवाल उठाया कि क्या इससे जातीय समुदायों के संकट का समाधान हो पाएगा?

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हालांकि चकमा ने इस तरह के अध्ययन पर अपनी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि पूरी बहस इस बात पर केंद्रित है कि कौन बाहरी है और कौन अंदरूनी है. चकमा ने कहा, 'अध्ययन की सफलता सच बोलने की क्षमता पर भी निर्भर करेगी. ज्यादातर समय यह पाया जाता है कि इस तरह के अध्ययन समुदायों के कुछ समूहों को खुश करने के लिए किए जा रहे हैं.'

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