नई दिल्ली :केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून (sedition law) पर अचानक यू टर्न ने सबको हैरत में डाल दिया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में सरकार ने कहा कि उसने आईपीसी की धारा 124 ए पर पुनर्विचार करने और इस पर गंभीरता से मंथन करने का निर्णय लिया है. इससे पहले केंद्र सरकार इस बात पर अड़ी थी कि राजद्रोह कानून में वह कोई बदलाव नहीं चाहती है. पिछले शनिवार को ही सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह जवाब दिया था कि वह इस कानून में किसी भी तरह का फेरबदल नहीं करना चाहती और कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए.
सरकार की ओर कहा गया कि राजद्रोह कानून राजनीतिक अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने और असंतोष को रोकने के लिए औपनिवेशिक युग की मानसिकता को दर्शाता है. बड़े पैमाने पर इसके दुरुपयोग को देखते हुए सरकार ने अब इस पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है. हाल ही में कई गैर बीजेपी शासित राज्य में भाजपा और एनडीए के नेताओं पर भी राजद्रोह के कानून लगाए गए. माना जा रहा है कि इस कारण केंद्र सरकार ने अपने फैसले पर यू-टर्न ले लिया.
वरिष्ठ अधिवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम इसे सरकार का यू-टर्न नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि कुछ लोगों ने यह भ्रम फैला दिया था कि यह अंग्रेजों के समय का कानून है. सच यह है कि अंग्रेजों के जमाने में बने इस कानून में काफी बदलाव हो चुका है. पहले इस कानून में प्रावधान था कि यदि कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलेगा तो उस पर राजद्रोह का मुकदमा लगा दिया जाएगा. 1962 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने जब इस पर निर्णय दिया, तब इस कानून में काफी बदलाव हो गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ बोलने की इजाजत मिल गई, मगर हिंसा भड़काने की कोशिश करने पर राजद्रोह का कानून लागू करने का रास्ता साफ हो गया. उदाहरण के लिए नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद के जरिये हिंसा भड़काने पर राजद्रोह का कानून लगाया जा सकता है.