नई दिल्ली : गुजरात विधानसभा 2022 की मतगणना के रुझान तेजी से परिणामों में बदलने लगे हैं. गुजरात में एकबार फिर से भाजपा की नयी सरकार बनने का रास्ता साफ होता दिखायी दे रहा है. सरकार के गठन के पहले ही भाजपा के खेमे में खुशी का माहौल देखा जा रहा है. मध्य गुजरात में भाजपा भारी जनादेश मिलता दिख रहा है.
मध्य गुजरात में इस बार सभी दल के राजनेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंकने की कोशिश की थी. सभी पार्टियों ने वोटरों को लुभाने के लिए जमकर प्रचार किया था. मध्य गुजरात की 61 सीटों के परिणाम इस बात का संकेत दे रहे हैं कि गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है. गुजरात की जनता ने भाजपा के हाथ में अगले 5 सालों तक सत्ता की चाबी देने का फैसला किया है.
मध्य गुजरात सबसे अहम
मध्य गुजरात की राजनीति गुजरात विधानसभा चुनाव खास मायने रखती है. यहां के नतीजों से ही गुजरात की राजनीति की दशा व दिशा तय होगी. मध्य गुजरात की 61 सीटों पर इस बार भी राजनीतिक दलों की पैनी नजर रहेगी. हालांकि, बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मध्य गुजरात में समर्थकों को अपने पक्ष में करने का दृढ़ प्रयास किया है. मध्य गुजरात में, ग्रामीण क्षेत्रों में इन सीटों को जीतना महत्वपूर्ण माना जाता है. इस संदर्भ में, आदिवासी मतदाताओं को ट्रेंड सेटर के रूप में देखा जाता है.
61 सीटों पर पैनी नजर
गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम मध्य गुजरात क्षेत्र की सीटों से काफी प्रभावित हुए हैं. मध्य गुजरात की 61 सीटों पर इस बार भी राजनीतिक दलों की पैनी नजर रहेगी. हालांकि, बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मध्य गुजरात में समर्थकों को अपने पक्ष में करने का दृढ़ प्रयास किया है. मध्य गुजरात में, ग्रामीण क्षेत्रों में इन सीटों को जीतना महत्वपूर्ण माना जाता है. इस मामले में आदिवासी वोटरों को ट्रेंड सेटर के तौर पर देखा जाता है. अहमदाबाद, वडोदरा और आणंद जैसे विविध आबादी वाले शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ एक बड़ी जनजातीय आबादी वाले जिलों को मध्य गुजरात को आवंटित 61 सीटों में शामिल किया गया है. गुजरात विधानसभा के लिए अहमदाबाद में 21 सीटों के अलावा वडोदरा में 10, दाहोद में 6, आणंद में 7, खेड़ा में 6, महिसागर में 3, पंचमहल में 5 और छोटाउदेपुर में 3 सीटें हैं. इनमें से भाजपा के पास वर्तमान में 38 सीटें और कांग्रेस के पास 22 सीटें हैं, जबकि 1 सीट पर निर्दलीय का कब्जा है.
मतदाताओं की संख्या
गुजरात के मध्य क्षेत्र की चर्चा राज्य के विधानसभा चुनावों के दौरान अधिक होती है, क्योंकि अहमदाबाद और वड़ोदरा को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक दल अक्सर आदिवासी, ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को लुभाते हैं. इस अवधि में, जनजातीय क्षेत्रों ने गाँव-गाँव प्रचार प्रसार के साथ-साथ सार्वजनिक सभाओं और सड़क प्रदर्शनों को देखा. चुनाव आयोग द्वारा सार्वजनिक की गई अंतिम मतदाता सूची में बताए गए आंकड़ों के अनुसार, मध्य गुजरात में 80,17,000 महिला मतदाता और कुल 84,51,000 पुरुष मतदाता हैं.
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जाति समीकरण पर एक नजर
गुजरात के विधानसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर जाति का मुद्दा है. मध्य गुजरात के सभी 8 जिलों में ओबीसी जाति बहुसंख्यक के रूप में जानी जाती है. जिससे 28 सीटों तक का असर पड़ सकता है. मध्य गुजरात में, अनुसूचित जाति अभी भी 15 सीटों पर नियंत्रण रखती है. इसके साथ साथ अनुसूचित जनजाति भी विभिन्न इलाके की 5 सीटों पर अपना प्रभाव दिखाती है. मध्य गुजरात में बीजेपी जाति आधारित अंकगणित के हिसाब से ज्यादा कुछ नहीं खो सकती है. मध्य गुजरात में मुख्य रूप से ओबीसी आबादी वाली सीटें हैं, जिन पर भाजपा को अधिक भरोसा है. कुछ सीटों पर आदिवासी जातियां भी काफी हद तक निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं. कहा जा रहा है कि छोटा उदेपुर, पावी जेतपुर, पंचमहल, दाहोद और लिमखेड़ा जैसी सीटों पर बीजेपी को ज्यादा मुश्किल नहीं आने वाली है.
प्रमुख चुनावी मुद्दे
अहमदाबाद, वड़ोदरा और आणंद जैसे शहरों की वजह से 61 सीटों वाले मध्य गुजरात क्षेत्र में काफी आबादी मौजूद है. यहां नागरिक सुविधाएं एक ऐसा मुद्दा बन जाती हैं, जो सभी नागरिकों को समान रूप से प्रभावित करतीं हैं. हाल ही में, अच्छी सड़कों को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री को काम करने के लिए नरेंद्र मोदी ने कहा था. लोग अक्सर सड़क मरम्मत की मांग करते हैं, क्योंकि मानसून की बारिश ने सड़कों की स्थिति को और खराब कर दिया है. जब कुछ स्थानों पर बहुत अधिक ट्रैफिक होता है, तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है. घर-घर पानी भी एक बड़ी चिंता का विषय है. नर्मदा प्रणाली से पानी मिलने के बावजूद जनता को भी उम्मीद है कि औद्योगिक और घरेलू पानी के आवंटन में असमानता दूर हो जाएगी. आदिवासी बहुल समुदायों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण संस्थानों और आवश्यक सेवाओं की कमी मध्य गुजरात में एक और चुनौती है.
सभी पार्टियों का चुनाव प्रचार
बीजेपी के साथ साथ सभी दलों ने इन इलाकों में जमकर प्रचार किया है. सरकार लोगों को फायदे गिना रही थी तो कांग्रेस उन पर सवाल उठा रही थी. वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने दोनों दलों को कठघरे में खड़ा करके अपना अभियान नौकरी, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर चलाया है. तीनों दलों ने व्यक्तिगत समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित किया है, ताकि लोगों को रिझाया जा सके.