नई दिल्ली : केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में लोगों को किसी खास धर्म में धर्मांतरित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र की यह प्रतिक्रिया अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका के संबंध में आई है, जिसमें कहा गया है कि धोखे से, धमकाकर, उपहार और मौद्रिक लाभ प्रदान कर धर्म परिवर्तन संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है.
याचिका में दावा किया गया है कि अगर इस तरह के धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो भारत में हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे. एक हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में धोखाधड़ी, जबरदस्ती, लालच या ऐसे अन्य माध्यमों से अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी, जबरदस्ती, प्रलोभन या ऐसे अन्य माध्यमों से देश में कमजोर नागरिकों के धर्मांतरण के मामलों पर प्रकाश डाला है.
केंद्र ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत आने वाले 'प्रचार' शब्द के अर्थ और तात्पर्य पर संविधान सभा में विस्तार से चर्चा और बहस हुई थी और उक्त शब्द को शामिल करने को संविधान सभा ने स्पष्टीकरण के बाद ही पारित किया था कि अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं होगा. केंद्र ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना है कि 'प्रचार' शब्द किसी व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार की परिकल्पना नहीं करता है, बल्कि यह अपने सिद्धांतों की व्याख्या द्वारा धर्म को फैलाने का सकारात्मक अधिकार है.