कोलकाता : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विशाल प्रतिमा लगवाने की घोषणा की. पीएम ने कहा कि जब तक नेताजी की ग्रेनाइट की प्रतिमा बनकर तैयार नहीं हो जाती, तब तक उस स्थान पर उनकी एक होलोग्राम प्रतिमा वहां लगाई जाएगी. उन्होंने कहा कि इस होलोग्राम प्रतिमा का वह 23 जनवरी को नेताजी की जयंती के अवसर पर लोकार्पण करेंगे.
ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में नेताजी के प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह एक अच्छा निर्णय है, साथ ही सरकार को नेताजी के उन विचारों को भी अमल में लाना चाहिए जिसमें वह सभी धर्मों के प्रति सम्मान रखते थे. आपको बता दें कि बोस भाजपा के काफी करीब रहे हैं. 2019 में उन्होंने भाजपा की टिकट पर द. कोलकाता से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था.
बोस ने कहा कि नेताजी की प्रतिमा स्थापित करवाने का सरकार का फैसला एक सराहनीय कदम है, लेकिन सरकार को नेताजी के सर्वसमावेशी विचारों, जो उनका सभी धर्मों के प्रति था, को भी प्रतिबिंबित करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि नेताजी ने जिन संस्थाओं को स्थापित किया, यानी आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद सरकार, इसमें वह इसी नीति पर चलते थे. हमें उनके कदम का अनुसरण करना चाहिए. वर्तमान में जिस तरह की सांप्रदायिक राजनीति और बेमेल बात की जा रही है, उसके खिलाफ लड़ने की जरूरत है.
चंद्र बोस ने बताया कि नेताजी ने हमेशा से देश को पहले रखा था. अगर देश की युवा पीढ़ी को उन दिशाओं की ओर नहीं मोड़ा गया, तो देश एक और विभाजन की ओर बढ़ जाएगा. पीएम को सर्वसमावेशी राजनीति अपनानी चाहिए, यह नेताजी के प्रति असली श्रद्धांजलि होगी. उन्होंने कहा कि अगर नेताजी भारत लौटे होते, तो देश का विभाजन नहीं होता. न ही बंगाल का विभाजन होता.
नेताजी के आजाद हिंद फौज के शीर्ष कमांडरों में से एक मुस्लिम, शाह नवाज खान थे. दरअसल, 16 जनवरी 1941 को जेल से छूटने के बाद कोलकाता में अपने एल्गिन रोड स्थित घर में नजरबंद नेताजी ने अंग्रेजों के चंगुल से मुसलमान का भेष धारण कर भागने में कामयाबी पाई. वह आखिरी दिन था जब भारत ने नेताजी को अपनी धरती पर देखा था. उनकी योजना अपने भतीजे सिसिर बोस की मदद से अफगानिस्तान और रूस के रास्ते जर्मनी भागने की थी. बड़ी सावधानी से योजना बनाकर, नेताजी ने महान पलायन से कई दिन पहले दाढ़ी भी बढ़ा ली थी. उस दिन, नेताजी, एक काल्पनिक बीमा एजेंट, मोहम्मद जियाउद्दीन के वेश में, सिसिर द्वारा संचालित किया गया था. काले कपड़े पहने नेताजी पीछे की सीट पर बैठे लेकिन दरवाज़ा बंद नहीं किया. इसके बाद सिसिर ने ड्राइवर का दरवाजा पटक दिया ताकि नेताजी को देखने वालों को लगे कि वाहन में केवल एक ही व्यक्ति सवार है.
द्वितीय विश्व युद्ध के चयन के दौरान, नेताजी जर्मनी से चले गए और एक जर्मन पनडुब्बी के माध्यम से जापान की यात्रा की. उस जोखिम भरे सफर में उनका सहयोगी फिर से एक मुसलमान आबिद हसन था. अंत में, मई 1945 में साइगॉन हवाई अड्डे से अंतिम रहस्यमय उड़ान में, जिसके बाद वह गायब हो गया या उस उड़ान दुर्घटना में यकीनन मारा गया, नेताजी के साथी फिर से एक मुस्लिम, हबीबुर रहमान थै. उन्होंने यह भी कहा कि नेताजी ने देश को सिखाया कि सभी पहले भारतीय हैं. "यदि देश के युवा वर्गों को इस दिशा में आगे नहीं बढ़ाया गया तो देश में एक और विभाजन अपरिहार्य है. प्रधानमंत्री को समावेशी राजनीति अपनानी चाहिए और यही नेताजी को सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी.
उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है ताकि भाजपा इस धर्म को समावेशी राजनीति को अपनाए और देश में इसका प्रभावी ढंग से पालन करे. “नहीं तो 1947 में जो हुआ वो दोहराया जाएगा. अगर नेताजी भारत वापस आ जाते तो राष्ट्रीय और बंगाल विभाजन नहीं होता. इसलिए देश को एक रखने के लिए नेताजी की विचारधारा को अपनाना ही एकमात्र रास्ता है.
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