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जेएनयू विरोध प्रदर्शन पर बनी फिल्म को सेंसर बोर्ड ने नहीं दी हरी झंडी - छात्रों के विरोध प्रदर्शन की पृष्ठभूमि

सीबीएफसी ने जेएनयू विश्वविद्यालय में हुए छात्रों के विरोध प्रदर्शन की पृष्ठभूमि पर आधारित मलयालम फिल्म को हरी झंडी देने से इनकार कर दिया है. फिल्म की कहानी केरल की एक महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जो शोध कार्य के लिए अपने गृह राज्य से जेएनयू परिसर जाती है.

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मलयालम फिल्म

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Published : Dec 29, 2020, 3:34 PM IST

Updated : Dec 29, 2020, 8:45 PM IST

तिरुवनंतपुरम : केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के यहां स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हुए छात्रों के विरोध प्रदर्शन की पृष्ठभूमि पर आधारित मलयालम फिल्म 'वर्तमानम्' को हरी झंडी देने से इनकार कर दिया है.

इस फिल्म का निर्देशन प्रतिष्ठित फिल्मकार सिद्धार्थ शिवा ने किया है और अभिनेत्री पार्वती तिरुवोत ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है. इस फिल्म की कहानी केरल की एक महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जो शोध कार्य के लिए अपने गृह राज्य से जेएनयू परिसर जाती है.

फिल्म निर्माता एवं पटकथा लेखक आर्यदान शौकत ने कहा कि सीबीएफसी के अधिकारियों ने प्रमाण पत्र नहीं देने का कोई कारण नहीं बताया है. उन्होंने कहा कि फिल्म को इसी सप्ताह प्रणाम पत्र के लिए मुंबई स्थित सेंसर बोर्ड की पुनरीक्षण समिति के पास भेजा जाएगा. शौकत कांग्रेस नेता भी हैं.

शौकत ने कहा, यहां सीबीएफसी अधिकारियों ने हमें अभी यह जानकारी दी कि फिल्म को पुनरीक्षण समिति के पास भेजा जाना है. उन्होंने कहा, हमें अभी तक यह नहीं पता कि फिल्म को प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया गया.

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पुरस्कार विजेता पटकथा लेखक ने कहा कि उन्होंने पटकथा लिखने के पहले कई महीने अध्ययन एवं शोध किया और जेएनयू परिसर की संस्कृति एवं जीवनशैली से रूबरू होने के लिए कई दिन दिल्ली में बिताए. उन्होंने कहा, यदि हमें 31 दिसंबर से पहले सेंसर बोर्ड की मंजूरी नहीं मिलती है, तो हम फिल्म को इस बार किसी पुरस्कार के लिए नहीं भेज सकते हैं.

शौकत ने संदेह जताया कि राजनीतिक कारणों से फिल्म दिखाने को मंजूरी नहीं दी गई. उन्होंने सेंसर बोर्ड के उस सदस्य के हालिया ट्वीट का भी जिक्र किया, जो भाजपा के एससी मोर्चा के राज्य उपाध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा, सेंसर बोर्ड के सदस्य एवं वकील वी संदीप कुमार ने हाल में ट्वीट किया था कि मंजूरी इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि आर्यदान शौकत इसके पटकथा लेखक एवं निर्माता हैं.

शौकत ने कहा, सेंसर बोर्ड में ऐसे कई राजनीतिक लोगों को नियुक्त किया गया है, जिन्हें सिनेमा की कोई समझ नहीं है. उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर क्षेत्रीय सेंसर बोर्ड सदस्य के विवादित ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी साझा किया था.

संदीप कुमार का यह ट्वीट बाद में हटा दिया गया. इसमें कुमार ने कहा था कि वह बोर्ड के सदस्य के तौर पर फिल्म को हरी झंडी दिए जाने के खिलाफ थे.

कुमार ने ट्वीट किया था, सेंसर बोर्ड के सदस्य के तौर पर, मैंने वर्तमानम् फिल्म देखी. फिल्म की विषयवस्तु जेएनयू में हुए विरोध प्रदर्शन में मुसलमानों और दलितों पर हुए (कथित) अत्याचारों पर आधारित थी. मैंने इसका विरोध किया.

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उन्होंने लिखा, क्योंकि शौकत इसके पटकथा लेखक एवं निर्माता हैं. फिल्म की विषय वस्तु निस्संदेह राष्ट्रविरोधी है.

शौकत ने कुमार की आलोचना करते हुए फेसबुक पोस्ट के जरिए सवाल किया कि यदि कोई फिल्म दिल्ली परिसर में छात्रों के विरोध का मामला उठाती है या देश के किसी लोकतांत्रिक आंदोलन की बात करती है, तो वह राष्ट्र विरोधी कैसे हुई.

फिल्म जगत के सूत्रों ने बताया कि फिल्म उद्योग से जुड़े सेंसर बोर्ड के दो सदस्यों ने फिल्म का समर्थन किया और वे इसे दिखाने की मंजूरी देना चाहते थे, लेकिन दो अन्य राजनीतिक सदस्यों ने इसका विरोध किया.

सेंसर बोर्ड के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन वे टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे.

Last Updated : Dec 29, 2020, 8:45 PM IST

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