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राजस्थान: शौर्य के गढ़ चित्तौड़ में लिखी जा रही कारोबारी गाथा, देश के सर्वाधिक 15 सीमेंट सीमेंट प्लांट बढ़ा रहे रोजगार और परिवार - Birla Cement Plant in Chanderia

मेवाड़ की धरती अपने शौर्य और स्वाभिमान के लिए खास पहचान रखती है. यहां चित्तौड़गढ़ की बात होने पर बरबस सभी के जुबान पर महाराणा प्रताप और उनकी वीरता के किस्से आ ही जाते हैं. शौर्यता से भरी चित्तौड़गढ़ कारोबार की दुनिया में भी अपना डंका बजा रहा है. चित्तौड़गढ़ को सीमेंट हब के रूप में जाना (Cement Hub Chittorgarh) जाता है. यहां 70 के दशक में पहली सीमेंट फैक्ट्री लगी. समय के साथ सीमेंट उद्योग ने ऐसी रफ्तार पकड़ी की कारोबार 15 हजार करोड़ की दहलीज पर पहुंच गया. पढ़िये आर्थिक रीढ़ मानी जाने वाली सीमेंट हब की कहानी...

Cement Industry of CHITTORGARH
Cement Industry of CHITTORGARH

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Published : Oct 10, 2022, 10:30 AM IST

चित्तौड़गढ़. आदम्य साहस और शौर्य गाथाओं से भरे चित्तौड़गढ़ का नाम जुबान पर आने के साथ ही मन में महाराणा प्रताप की वीरता के भाव उमड़ने लगते हैं. चित्तौड़गढ़ का इतिहास बहादुरी और स्वाभिमान की तमाम कहानियों से भरा हुआ है. यहां के जनमानस में महाराणा प्रताप के वीरता की गाथा आज भी गूंजती है. यहां आने वाला हर सैलानी मेवाड़ की वीरता का बखान करता मिल जाता है. लेकिन चित्तौड़गढ़ केवल अपने गौरवशाली इतिहास से ही नहीं लोगों को आकर्षित करता है, बल्कि ये भूमि सीमेंट हब के रूप में भी जानी जाती है. 70 के दशक में बीरला सीमेंट की आधारशिला यहां रखी गई थी. इसके बाद यहां एक के बाक एक 15 सीमेंट फैक्ट्रियां (cement factories in chittorgarh) स्थापित हो गई. जिनका सालाना टर्नओवर करीब 15 हजार करोड़ का है.

चित्तौड़गढ़ सीमेंट हब होने के साथ ही यहां की आर्थिक रीढ़ भी है. ये जिला सीमेंट इंडस्ट्रीज के रूप में अपनी खास पहचान बनाई है. सीमेंट इंडस्ट्रीज की शुरुआत 70 के दशक में हुई थी. जब पहली बार बिरला सीमेंट फैक्ट्री की आधारशिला यहां रखी गई. इस सीमेंट फैक्ट्री की तरक्की को देख यहां एक के बाद एक 15 प्लांट स्थापित (cement factories in chittorgarh) हो गए. इससे ना केवल लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है. बल्कि ये फैक्ट्रियां स्थानीय विकास में महत्वपुर्ण धुरी साबित हुई हैं. इस इंडस्ट्री ने शहर के विकास के साथ-साथ लोगों की जीवनचर्या को पूरी तरह बदल दिया है. शहर के विकास, व्यापार, रोजगार की इनके बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

शौर्य से भरे चित्तौड़गढ़ का कारोबार में भी डंका

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इसलिए चित्तौड़गढ़ बना सीमेंट हबः चंदेरिया सीमेंट प्लांट के रिटायर जॉइंट प्रेसिडेंट निरंजन नागोरी ने बताया कि चित्तौड़गढ़ और निंबाहेड़ा सहित आसपास के करीब 100 किलोमीटर के एरिया में लाइमस्टोन प्रचुर मात्रा में है. हालांकि ब्यावर, पाली, कोटा आदि में भी लाइमस्टोन के भंडार हैं, लेकिन चित्तौड़गढ़ में लाइमस्टोन का एक बड़ा क्लस्टर है. लाइमस्टोन के बड़े और विशाल भंडार ही एक के बाद एक बड़ी बड़ी सीमेंट कंपनियों को अपनी तरफ आकर्षित करने और यहां स्थापित होने का जरिया बने हैं.

सुखाड़िया ने रखी थी नींव- लाइम स्टोन की प्रचुरता को सबसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने पहचाना और चित्तौड़गढ़ को सीमेंट हब के रूप में पहचान दिलाने की नींव रखी. सुखाड़िया ने 1967 में चित्तौड़गढ़ के चंदेरिया में बिरला सीमेंट प्लांट की आधारशिला रखी और इस इंडस्ट्रीज के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर किया. उसी का नतीजा रहा कि चंदेरिया प्लांट में ही एक के बाद एक दो प्लांट और बन गए. उसके बाद निंबाहेड़ा में जेके द्वारा प्लांट स्थापित किए गए. धीरे धीरे अन्य कंपनियों की ओर से भी चित्तौड़गढ़ में इन्वेस्टमेंट किया गया.

वर्तमान स्थिति

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40 किलोमीटर के एरिया में 15 फैक्ट्रियांः चित्तौड़गढ़ से लेकर निंबाहेड़ा के बीच 40 किलोमीटर के एरिया में वर्तमान में 15 सीमेंट प्लांट चल रहे हैं. इनमें बिरला के चंदेरिया में 3 प्लांट चल रहे हैं. वहीं सावा में अल्ट्राटेक के दो प्लांट हैं. इसी प्रकार निंबाहेड़ा में जेके के चार तो वंडर के चार प्लांट काम कर रहे हैं और पांचवा निर्माणाधीन है. इसके अलावा नोवोका का भी एक प्लांट है. इसके अलावा डालमिया ग्रुप भी प्लांट डालने की कतार में है. इस प्रकार वर्तमान में चित्तौड़गढ़ में 15 प्लांट काम कर रहे हैं. इन बड़े प्लांटों के कारण चित्तौड़गढ़ को सीमेंट हब के रूप में पहचान मिली.

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करीब डेढ़ लाख लोगों को मिलता है रोजगारः उन्होंने बताया कि सीमेंट इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के अनुसार एक प्लांट से डायरेक्ट और इनडायरेक्ट में करीब 10,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है. हालांकि सीधे तौर पर पर प्लांट 1000 लोगों को एंप्लॉयमेंट मिलता है, लेकिन इससे जुड़े अन्य व्यवसाय के जरिए 8 से 9000 लोगों को रोजगार मिलता है. जिनमें ट्रांसपोर्ट उद्योग प्रमुख है. इससे जुड़े ऑटोमोबाइल, फूड, किराना, गैराज आदि क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं.

क्यों है सीमेंट हब

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गांव बन गए कस्बे, विकास की तरफ बढ़े कदमः इन सीमेंट प्लांट के आने से पहले चंदेरिया छोटे से गांव के रूप में बसा हुआ था, लेकिन बिरला सीमेंट प्लांट के आने के बाद लोग रोजगार की दृष्टि से यहां आने लगे. आज चंदेरिया एक उपनगरीय बस्ती क्षेत्र में तब्दील हो चुका है. जहां महाराष्ट्र से लेकर बंगाल और बिहार तथा यूपी से भी हजारों की संख्या में लोग अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं.

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इसी प्रकार सावा शंभूपुरा आज एक बड़े कस्बे का रूप ले चुके हैं. वहीं निंबाहेड़ा जेके ग्रुप की बदौलत शहर के रूप में तब्दील होता दिखाई दे रहा है. खास बात यह है कि इन ग्रुप्स की ओर से स्थानीय विकास को भी खासा महत्व दिया गया. लोगों की जरूरतों के अनुसार पब्लिक यूटिलिटी का डेवलपमेंट हुआ. शिक्षा के क्षेत्र में भी स्थानीय लोगों को लाभ मिला। चित्तौड़गढ़ की बात करें तो नगर परिषद क्षेत्र में शामिल चंदेरिया के साथ-साथ बिरला ग्रुप की ओर से कई बड़ी सौगातें दी गई. जिनमें एमपी बिरला हॉस्पिटल के साथ-साथ 13 करोड रुपए की लागत का इंदिरा प्रियदर्शनी ऑडिटोरियम भी शामिल है.

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बिरला ग्रुप चंदेरिया प्लांट के सीनियर जॉइंट प्रेसिडेंट के पद से रिटायर्ड निरंजन नागौरी ने बताया कि चित्तौड़गढ़ में सीमेंट इंडस्ट्रीज को लेकर अभी भी अपार संभावनाएं हैं. क्योंकि एकमात्र चित्तौड़गढ़ जिला ही ऐसा है, जहां अन्य जिलों के मुकाबले लाइमस्टोन के बड़े-बड़े कलस्टर हैं.

वर्तमान स्थिति

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इन चुनौतियों का सामनाः निरंजन नागौरी ने बताया कि चुनौती की बात करें तो माइनिंग को लेकर अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. बड़े-बड़े ब्लॉक पड़े हैं, लेकिन छोटी मोटी कमियों के चलते बरसों से उनका आवंटन नहीं हुआ. यदि ब्लॉक आवंटन हो जाए तो और भी कई ग्रुप यहां प्लांट डाल सकते हैं. जिले के हजारों लोगों को रोजगार नसीब हो सकता है. खासकर बेगू, पारसोली और निंबाहेड़ा में नए प्लांट की काफी संभावना है. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन और सरकार को इन संभावनाओं को टटोलना चाहिए.

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