नई दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की नालियां खंगालने वाली एजेंसी की छवि के कारण उसकी आलोचना की जाती रही है. एजेंसी ज्यादातर 'छोटी मछलियों' को पकड़ने पर ध्यान देती है जबकि बड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच प्रवर्तन निदेशालय करता है, जो धन शोधन निवारण अधिनियम से लैस है. सीबीआई को कभी देश की प्रमुख भ्रष्टाचार-रोधी एजेंसी माना जाता था, अब इसे प्रवर्तन निदेशालय के एक कमजोर चचेरे भाई के रूप में जाना जाता है. जैसे-जैसे मामले आगे बढ़ते हैं, सीबीआई की जांच में गुणवत्ता की कमी पाई जाती है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उसके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अक्सर कमजोर होते हैं.
आलोचकों का तर्क है कि हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार के मामलों से प्रभावी ढंग से निपटने में असमर्थता के कारण सीबीआई की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है. एजेंसी पर बहुत अधिक राजनीतिक होने का आरोप लगता रहा है. स्वायत्तता की कथित कमी के कारण इसका नेतृत्व संवीक्षा के दायरे में आ गया है. इसके विपरीत, हाई-प्रोफाइल मामलों, विशेष रूप से मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों को निपटाने में इसकी सफलता के लिए प्रवर्तन निदेशालय की प्रशंसा हुई है. एजेंसी वित्तीय गड़बड़ी के लिए दोषी पाए गए व्यक्तियों और कंपनियों के खिलाफ मजबूत सजा और भारी जुर्माना लगाने के फैसले अपने पक्ष में हासिल करने में सफल रही है.
सीबीआई की प्रतिष्ठा में गिरावट भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि देश में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है. एक मजबूत और स्वायत्त भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी के बिना, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़खड़ा सकती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था तथा प्रतिष्ठा को और अधिक नुकसान हो सकता है. केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की अगस्त 2022 में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2021 तक सीबीआई द्वारा जांच किए गए भ्रष्टाचार के 6,697 मामले विभिन्न अदालतों में लंबित थे, जिनमें से 275 मामले तो 20 साल से ज्यादा पुराने हैं.