हैदराबाद :कैप्टन लक्ष्मी सहगल (Captain Lakshmi Sehgal) शेर दिल वाली महिलाओं में से एक थीं, उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के लिए बंदूक उठाई थी. वर्ष 1998 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित कैप्टन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता से पहले और बाद में महिलाओं की आवाज काे बुलंद करने वाली महिलाओं में से एक थीं.
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कैप्टन लक्ष्मी सहगल के रूप में लोकप्रिय लक्ष्मी स्वामीनाथन का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को एक सामाजिक कार्यकर्ता अम्मू स्वामीनाथन और चेन्नई के प्रसिद्ध वकील डॉ. एस स्वामीनाथन के घर हुआ था. 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सिंगापुर में एक चिकित्सक के रूप में काम किया.
1941 में स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस द्वारा गठित इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (Indian Independence League) में शामिल हो गईं. उन्होंने आईएनए की सभी महिला पैदल सेना रेजिमेंट के गठन में सक्रिय भूमिका निभाई, जिसका नाम प्रसिद्ध 'झांसी की रानी' के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1857 में ब्रिटिश राज से लड़ाई लड़ी थी. इसके बाद, डॉ लक्ष्मी स्वामीनाथन कैप्टन लक्ष्मी बन गईं.
वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद की Provisional government की कैबिनेट की एकमात्र महिला सदस्य थीं. 1945 में गिरफ्तारी के बाद उन्हें भारत वापस लाया गया. 1947 में उन्होंने कर्नल प्रेम कुमार सहगल (Colonel Prem Kumar Sahgal) से शादी की, जिन्होंने उनके साथ INA में काम किया.
जीवन की उपब्धियां
1998 में सहगल को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.
1971 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा बन गईं, जो उच्च सदन में पार्टी का प्रतिनिधित्व करती थी. कलकत्ता में शरणार्थियों के लिए बांग्लादेश संकट के दौरान उनके द्वारा राहत शिविरों का आयोजन किया गया था. उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
लक्ष्मी सहगल ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद शांति बहाल करने के लिए भी काम किया. बैंगलोर में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के खिलाफ एक अभियान में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. वह 1981 में अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की संस्थापक सदस्यों में से एक बनीं. वह 1984 की गैस त्रासदी के बाद भोपाल में राहत कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल थीं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों के दौरान उन्हें सिख विरोधी भीड़ का सामना करना पड़ा.
2002 में सहगल को चार वामपंथी दलों - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी द्वारा राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में चुना गया था. कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ( Dr APJ Abdul Kalam) के खिलाफ चुनाव लड़ा.
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कैप्टन लक्ष्मी सहगल का जीवन महिला और पुरुष दाेनाें के लिए प्रेरणादायक बना. उन्हाेंने हमेशा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से ऊपर उठकर समाज के लिए कार्य किया. 23 जुलाई, 2012 को कार्डियक अरेस्ट के बाद 97 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.