नई दिल्ली :उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि बिहार में आंगनबाड़ी सेविका के पद पर चयन (Selection of Anganwadi Sevika) के लिए दिशानिर्देशों के अनुसार पात्रता पर विचार के लिए विवाहित और अविवाहित बेटी के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता.
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी (Justice R Subhash Reddy) और जस्टिस हृषिकेश रॉय (Justice Hrishikesh Roy) की पीठ ने मुजफ्फरपुर जिले के ब्लॉक मुरौल में पंचायत केंद्र में आंगनवाड़ी सेविका की नियुक्ति के मुद्दे पर विचार करते हुए यह बात कही.
पीठ ने कहा कि दिशानिर्देशों के अनुसार, पात्रता पर विचार करने के उद्देश्य से विवाहित बेटी और अविवाहित बेटी के बीच कोई भेद नहीं किया जा सकता है. ग्रामीण इलाकों में यह काफी आम है कि पैतृक घर और मातृ गृह कभी-कभी एक ही गांव में हो सकते हैं. संबंधित मामले में 2006 में मुखिया/पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत मीरापुर (कुमरपाकर) पंचायत द्वारा एक विज्ञापन जारी कर ग्राम पंचायत मीरापुर, ब्लॉक मुरौल, जिला मुजफ्फरपुर के एक पंचायत केंद्र में आंगनवाड़ी सेविका की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गए थे.
वाद के पहले दौर में, जब याचिकाकर्ता कुमारी रेखा भारती की नियुक्ति हुई, तो एक शिकायत में सवाल उठाए गए. शिकायत के आधार पर जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा अपीलकर्ता (भारती) की नियुक्ति निरस्त कर दी गई. जब नियुक्ति निरस्त करने के फैसले को चुनौती दी गई तो पटना उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता (भारती) की बर्खास्तगी को खारिज करते हुए जिलाधिकारी को दोनों पक्षों को सुनने के बाद उचित आदेश पारित करने का निर्देश जारी किया.
उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, जिलाधिकारी, मुजफ्फरपुर ने दिशानिर्देशों के आधार पर आदेश पारित किया कि शिकायतकर्ता नियुक्ति के लिए इस आधार पर अपात्र थी कि उसके पिता उस समय वैशाली में सरकारी शिक्षक थे. अपीलीय प्राधिकारी अर्थात आयुक्त द्वारा जिलाधिकारी मुजफ्फरपुर के आदेश की पुष्टि की गई. नियुक्ति रद्द करने (जिसकी पुष्टि अपीलीय प्राधिकारी ने की थी) के आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की, जिसकी खंडपीठ ने पुष्टि की.