दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

छत्तीसगढ़ में कैंसर बना मरीजों का रेफरल रैकेट, तीन वर्ष में 3 हजार से ज्यादा मौतें

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले (Tribal majority districts of Chhattisgarh) जनजातीय महिलाओं के लिए कब्रगाह बन गए हैं. बीते 3 साल में 3 हजार से ज्यादा महिलाओं की मौत स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और वनांचल क्षेत्रों में लचर स्वास्थ्य सुविधाओं से हो गई. जबकि इसी दौरान 900 से ज्यादा गर्भवती महिलाओं ने (More than 900 pregnant women died) दम तोड़ दिया है.

Chhattisgarh
छत्तीसगढ़

By

Published : Feb 19, 2022, 4:09 PM IST

कोरबा :विशेष पिछड़ी जनजाति व राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा समुदाय की सुनी बाई कोरवा नाम की महिला की निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल में मौत के बाद हड़कंप मचा है. 56 वर्षीय सुनी बाई ग्राम पंचायत सतरेंगा की निवासी थी. इस महिला को मेडिकल कॉलेज अस्पताल से निजी अस्पताल भेज दिया गया था. हाथ के फ्रैक्चर के लिए ऑपरेशन के नाम पर महिला को 3 दिन तक भूखे प्यासे रखा गया. आखिरकार महिला ने दम तोड़ दिया.

महिला की मौत के बाद रेफरल रैकेट में शामिल 3 अस्थायी वार्डबॉय को बर्खास्त कर दिया गया है. निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल को सील कर दिया गया है. वहीं एक अन्य महिला राजकुमारी महंत की भी जिला अस्पताल में मौत हुई है. राजकुमारी महंत को निजी अस्पातल से मरणासन्न स्थिति में सरकारी अस्पताल भेज दिया गया था. इस मामले में निजी अस्पताल का संचालन करने वाली सरकार डॉक्टर कुजूर को नोटिस जारी करने की तैयारी की जा रही है.

आदिवासी महिलाओं का कब्रगाह

किस तरह काम करता है रेफरल रैकेट

निजी अस्पताल और डॉक्टर कम समय में ही अकूत संपत्ति बना लेते हैं. वे अपने एजेंट नियुक्त करते हैं. ये एजेंट सरकारी अस्पतालों के आसपास मौजूद रहते हैं. जैसे ही कोई जरूरतमंद मरीज सरकारी अस्पताल पहुंचता है, निजी अस्पताल के एजेंट उन्हें सस्ता और अच्छा इलाज का प्रलोभन लेकर सरकारी अस्पतालों में घटिया इलाज का भय दिखाते हैं. इस काम के लिए सरकारी अस्पतालों के वार्ड बॉय, सार्वजनिक परिवहन में लगे ऑटो चालकों से लेकर सरकारी चिकित्सक शामिल रहते हैं. सभी का कमीशन तय होता है.

सरकारी अस्पताल से जिस मरीज को भी निजी अस्पताल में शिफ्ट किया जाता है, उसका अनाप-शनाप इलाज कर गैरजरूरी दवाइयां देकर पैसे ऐंठे जाते हैं. जिससे रैकेट में शामिल सभी लोगों को कमीशन मिलता है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा हो या फिर अन्य सरकारी अस्पताल सभी सरकारी चिकित्सकों के कहीं ना कहीं निजी चिकित्सालय मौजूद हैं. या फिर वह किसी निजी चिकित्सालय में अपनी सेवाएं देते हैं. ऐसे सरकारी डॉक्टर भी सरकारी अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को निजी अस्पताल में आने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि वहां बेहतर इलाज मिलेगा. इस तरह वह मरीजों से अनैतिक कमाई करते हैं.

3 वर्ष में 3112 महिलाओं की मौत

जनजातीय मंत्रालय ने यह जानकारी दी है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिलों में बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जशपुर, कांकेर, कोंडागांव, कोरबा, कोरिया, नारायणपुर, सुकमा, सूरजपुर और सरगुजा शामिल हैं. यहां 3 वर्षों में किसी न किसी बीमारी की वजह से 3 हजार112 जनजातीय महिलाओं की मौत हुई है. जबकि 955 गर्भवती महिलाओं ने दम तोड़ दिया है. यह आंकड़े डराने वाले हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं की वनांचल क्षेत्र में क्या स्थिति है. इन आंकड़ों से यह भली-भांति पता चलता है.

अकेले दंतेवाड़ा में 17 सौ से अधिक मौत

प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में जनजाति महिलाओं की मौत के मामले में दंतेवाड़ा में स्थिति सबसे खराब है. अकेले दंतेवाड़ा जिले में 1753 महिलाओं ने बीते 3 साल में दम तोड़ दिया है, जबकि सूरजपुर, कोंडागांव, कांकेर जैसे जिलों में भी स्थिति ठीक नहीं है.

अकेले कोरबा में 3 साल में 103 महिलाओं की मौत

बीते 3 साल में कोरबा जिला में 103 आदिवासी समुदाय से आने वाली महिलाओं की मौत हुई है. सेप्सिस और गर्भपात के दौरान महिलाओं की मौत हुई है. ज्यादातर मौतें तब हुई हैं, जब उनका इलाज निजी अस्पतालों में रेफर कर किया गया था. जितनी भी मौतें सरकारी से निजी अस्पतालों में रेफर के दौरान हुई हैं, इन सभी में रेफरल रैकेट के संलिप्तता की पूरी संभावना है.

वनांचल क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं बद से बदतर

कोरबा जिले का नाम ही पहाड़ी कोरवा समुदाय के नाम पर पड़ा है. कोरवा से कोरबा आया. कोरवा ही जिले के मूल निवासी हैं. यह छत्तीसगढ़ की 5 विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल है. इन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है. 3 हफ्ते पहले कोरबा जिले के ग्राम पंचायत लेमरू के आश्रित ग्राम सरईबहरा का भी एक मामला सामने आया था. यहां के निवासी टिकैत राम की दो बेटियों को 12 साल पहले बुखार हुआ था. जिसका उन्हें इलाज नहीं मिला और उनकी दोनों बेटियां पोलियोग्रस्त हो गईं.

टिकैत राम जड़ी बूटियों से बेटी का इलाज कर रहा था. किसी तरह यह बात मीडिया के जरिए प्रशासन तक पहुंची. जिसके बाद उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाकर उनका इलाज कराया गया. आदिवासी बहुल जिलों में आदिवासी समुदाय को किस स्तर की स्वास्थ सुविधा मिल रही हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सामान्य बुखार से ही कोरवा आदिवासी युवतियों की तबीयत खराब हो गई थी. जिसका इलाज आदिवासी जड़ी-बूटियों से ही करते रहे और बेटियों की हालत यह हो गई कि वह अपने पैरों पर खड़े तक हो पाने के लायक नहीं रहीं.

निरंकुश हुआ रेफरल रैकेट

वनांचल क्षेत्र में आदिवासियों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता. धरातल पर सरकारी स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से ध्वस्त हैं. इसके बाद आदिवासी जब इलाज कराने शहर के सरकारी अस्पताल पहुंचते हैं, तब रेफरल रैकेट के जरिए उन्हें पैसे ऐंठने के लिए बिना लाइसेंस चल रहे निजी अस्पताल में पहुंचा दिया जाता है, जहां उनकी मौत हो जाती है. ऐसा भी नहीं है कि इस रेफरल रैकेट की जानकारी अधिकारियों को नहीं है. रेफरल रैकेट जिले में पिछले कई वर्षों से काम कर रहे हैं.

विभाग के अफसरों पर कब होगी कार्रवाई?

कोरवा निवासी महिला की मौत से रेफरल रैकेट की पुष्टि हो चुकी है. खुद मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन ने इसमें संलिप्त तीन अस्थाई कर्मचारियों को बर्खास्त किया है. जानकारी के मुताबिक जिले में 22 ऐसे अस्पताल हैं, जो बिना लाइसेंस के चल रहे हैं. हालांकि कलेक्टर रानू साहू ने इस विषय में जांच बिठाई है.

केंद्रीय सचिव ने झाड़ा पल्ला

आकांक्षी जिलों के लिए कोरबा जिले के प्रभारी अधिकारी केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव रघुराज माधव राजेंद्रन 2 दिनों तक जिले के प्रवास पर रहे. जिले में पहाड़ी कोरवा समुदाय की महिला की मौत के सवाल पर उन्होंने कहा कि ''फिलहाल मैं सिर्फ व्यवस्थाओं का जायजा लेने आया हूं. सरकारी योजनाओं का संचालन किस तरह किया जा रहा है, इसकी जानकारी लेकर सीखने का प्रयास है. इस विषय में कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा.''

यह भी पढ़ें- हैदराबाद में कस्तूरबा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट से फरार हुई 14 युवतियां

रैकेट पर लगाम लगाना चाहिए

अधिवक्ता नूतन सिंह ठाकुर का कहना है कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पहले से ही विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति है, लेकिन यहां रेफरल रैकेट का काम करना संदेह को जन्म देता है. सरकारी चिकित्सक निजी चिकित्सालय में जाकर सेवाएं देते हैं. यह भी बेहद आपत्तिजनक है. इसमें कलेक्टर का रोल सबसे अहम है. उन्हें इस तरह के मामले को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए. कुछ दिन पहले ही पहाड़ी कोरवा महिला की मौत हुई, फिर दूसरी महिला की भी मौत हो जाती है. प्रशासन को बेहद संवेदनशीलता और गंभीरता के साथ रेफरल रैकेट पर पूरी तरह से लगाम लगाना चाहिए.

ABOUT THE AUTHOR

...view details