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सेंथिल बालाजी के बिना पोर्टफोलियो मंत्री बने रहने पर कोर्ट ने कहा- हस्तक्षेप नहीं कर सकते

तमिलनाडु के कैबिनेट मंत्री सेंथिल बालाजी (Senthil Balaji) के पद पर बने रहने को लेकर दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में जब तक गवर्नर कोई निर्देश नहीं देते अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.

HC
मद्रास उच्च न्यायालय

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Published : Jun 26, 2023, 9:46 PM IST

चेन्नई :मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि वह तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी के बिना पोर्टफोलियो के कैबिनेट मंत्री बने रहने के मामले में राज्यपाल के किसी निर्देश के अभाव में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया है.

न्यायिक हिरासत में चल रहे सेंथिल बालाजी दिल की सर्जरी के बाद एक निजी अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं.

ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बावजूद बिना विभाग के मंत्री पद पर बने रहने वाले सेंथिल बालाजी को पद से हटाने का निर्देश देने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाते हुए, मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि वह गवर्नर के विशिष्ट निर्देश के अभाव में ऐसा कोई आदेश पारित नहीं कर सकता है.

समान प्रार्थना वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसवी गंगापुरवाला ने न्यायमूर्ति पीडी औडिकेसावुलु की पीठ का नेतृत्व करते हुए पूछा कि क्या कोई संवैधानिक प्रावधान है जो राज्यपाल को किसी मंत्री को बर्खास्त करने का अधिकार देता है और क्या राजभवन द्वारा ऐसा स्पष्ट आदेश पारित किया गया है. उन्होंने याचिकाकर्ता के वकील से यह भी कहा कि मुख्यमंत्री की सलाह पर ही राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 164(1) के अनुसार मंत्री की नियुक्ति की थी.

मुख्य न्यायाधीश का हस्तक्षेप तब आया जब वकील ने संविधान के अनुच्छेद 164 पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि एक मंत्री केवल राज्यपाल की इच्छा पर ही पद पर बना रह सकता है.

पीठ देसिया मक्कल शक्ति काची के एमएल रवि और चेन्नई के उपनगर कोलाथुर के एस रामचंद्रन द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ताओं ने सरकार के कार्यकारी आदेश को चुनौती दी है, जिसमें बालाजी द्वारा रखे गए विभागों को वित्त मंत्री थंगम थेनारासु और आवास मंत्री एस मुथुसामी को फिर से आवंटित किया गया था, जबकि उन्हें बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में रखा गया था.

याचिकाकर्ताओं के एक वकील ने कहा कि राज्यपाल आरएन रवि ने मंत्री की गिरफ्तारी और रिमांड के परिणामस्वरूप उनके पद पर बने रहने पर अपनी असहमति व्यक्त की थी. समर्थन में उन्होंने बेंच को बताया कि राजभवन ने एक प्रेस नोट जारी किया था जिसमें स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था कि बालाजी के मंत्री बनने पर राज्यपाल की असहमति है.

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'क्या राज्यपाल ने मंत्री के रूप में उनकी नियुक्ति रद्द कर दी है? राज्यपाल किस शक्ति के तहत किसी मंत्री को हटा सकता है? उनके कैबिनेट में बने रहने से सहमत नहीं होने और उनके बने रहने के खिलाफ सकारात्मक आदेश पारित करने के बीच अंतर है.' यह पूछते हुए कि क्या ऐसा कोई आदेश पारित किया गया है, सीजे ने जानना चाहा कि क्या मुख्यमंत्री ने बालाजी को कैबिनेट में बने रहने की अनुमति देने के लिए राज्यपाल से कोई विशेष अनुरोध किया था.

अगर ऐसा कोई अनुरोध है तो अदालत के समक्ष रखें. सीजे ने दोपहर तक का समय दिया. जब सुनवाई दोबारा शुरू हुई तो याचिकाकर्ताओं ने मुख्यमंत्री और राजभवन के बीच हुए पत्राचार को गोपनीय होने के कारण पेश करने में असमर्थता जताई. इस पर सीजे ने आश्चर्य जताया, 'अदालत संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आदेश कैसे पारित कर सकती है जब राज्यपाल द्वारा उन्हें हटाने के लिए कोई विशेष आदेश नहीं हैं.' पीठ यह भी पता लगाना चाहती थी कि क्या राज्यपाल के पास ऐसा करने की शक्तियां हैं और मामले को 7 जुलाई के लिए पोस्ट कर दिया.

एआईएडीएमके के पूर्व सांसद जे जयवर्धन द्वारा मंत्रालय में बालाजी के बने रहने की वैधता पर सवाल उठाने वाली क्वो वारंटो याचिका को भी पहले की दो याचिकाओं के साथ जोड़ दिया गया है और इस पर 7 जुलाई को सुनवाई होगी.

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कल :इस बीच, जैसा कि बालाजी की पत्नी मेगाला की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका कल सुनवाई के लिए आ रही है, उन्होंने एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि ईडी के पास सीआरपीएफ की सहायता लेने का अधिकार नहीं है, जबकि उनके पति को 14 जून को गिरफ्तार किया गया था.

उनका कहना है कि यह सीआरपीएफ का कर्तव्य भी नहीं है, क्योंकि इसकी भूमिका नागरिक शक्ति की सहायता करना थी. सीआरपीएफ राज्य पुलिस की शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती और राज्य पुलिस की ओर से कोई अनुरोध नहीं किया गया था. इसलिए, इसने बालाजी की पूरी हिरासत को ख़राब कर दिया है, जिसे 24 घंटे के भीतर न्यायिक अदालत के सामने पेश नहीं किया गया, जो पीएमएलए अधिनियम की धारा 19 का उल्लंघन है.

यह दोहराते हुए कि पुलिस नहीं होने के कारण ईडी हिरासत की मांग नहीं कर सकती, हलफनामे में यह भी तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 50 और संविधान के अनुच्छेद 22(1) पर विचार नहीं करने के कारण प्रधान सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित न्यायिक हिरासत का आदेश यांत्रिक और अवैध था.

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