नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बलात्कार पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय के फैसले के खिलाफ आदेश पारित करने पर गुजरात उच्च न्यायालय की आलोचना की और इसे संवैधानिक दर्शन (constitutional philosophy) के खिलाफ बताया. न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि अदालत अपने आदेशों पर उच्च न्यायालय के जवाबी हमले की सराहना नहीं करती है.
पीठ ने कहा, 'गुजरात हाईकोर्ट में क्या हो रहा है? क्या न्यायाधीश शीर्ष न्यायालय के आदेश पर इस तरह उत्तर देते हैं?' अदालत ने उच्च न्यायालय से 19 अगस्त को स्वत: संज्ञान आदेश पारित करने की आवश्यकता पूछते हुए यह टिप्पणी की. 'गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को राहत देने से इनकार कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे दी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी अदालत के किसी भी न्यायाधीश को अपने आदेश को उचित ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है और साथ ही एक बलात्कार पीड़िता पर अन्यायपूर्ण स्थिति थोपने, उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर करने के उच्च न्यायालय के आदेश की भी आलोचना की और इस बात पर जोर दिया कि, यह संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है ?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के जवाबी फैसले को कैसे नजरअंदाज कर सकती है और कहा, 'कोई भी न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जवाब नहीं दे सकता' और फिर पूछा कि ऐसा आदेश पारित करने की क्या जरूरत थी? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया कि वह उच्च न्यायालय के उक्त न्यायाधीश के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी न करें और टिप्पणियां हतोत्साहित करने वाली हो सकती हैं. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि टिप्पणी किसी विशेष न्यायाधीश के खिलाफ नहीं थी, बल्कि मामले से निपटने के तरीके पर थी.