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असम में विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल हैं बीटीसी चुनाव

बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) के लिए हुए चुनावों को अगले साल होने वाले असम विधानसभा चुनावों के लिए सेमीफाइनल के रूप मे देखा जा रहा है. यह ही वजह है कि बीटीसी चुनाव के दौरान बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट और भाजपा के बीच खटास पैदा हुई है. इस दौरान दोनों सहयोगी दलों ने एक दूसरे को जमकर कोसा.

बीटीसी चुनाव
बीटीसी चुनाव

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Published : Dec 10, 2020, 8:18 PM IST

गुवाहाटी : बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) के लिए हुए चुनाव इस बार बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) के लिए मतपत्रों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह अगले साल की शुरुआत में असम में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सेमीफाइनल है. इसके अलावा यह चुनाव अगले साल के चुनावों से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों और राजनीतिक गठबंधनों के लिए एक टेस्ट के रूप में भी देखा जा रहा है.

40 सीटों पर हो रहे बीटीसी चुनाव के पहले चरण में 21 सीटों पर सात दिसंबर को चुनाव आयोजित किया गया था, जबकि गुरुवार को 19 सीटों के लिए दूसरे चरण के चुनाव हुए. इस बीच अगर कही दोबारा मतदान की जरूरत हुई तो, वह 11 दिसंबर को होगा. वहीं चुनाव परिणाम के लिए मतों की गिनती 12 दिसंबर होगी.

काउंसिल में कुल सदस्य की कुल संख्या 46 है, जबकि हर पांच साल में 40 चुने जाते हैं और छह सदस्य नामित होते हैं. बीटीसी चुनावों ने असम में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार और उसके साथी बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) के बीच रिश्तों में खटास देखने को मिली है, जो 2003 में अपने गठन के बाद से बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल पर शासन कर रहा है.

हालांकि, भाजपा और बीपीएफ अभी भी दिसपुर में मिलकर शासन कर रहे हैं. लेकिन दोनों दल अलग-अलग बीटीसी चुनाव लड़े हैं और संकेत हैं कि दोनों दलों के बीच गठबंधन लंबे समय तक नहीं चलेगा. वो भी सब जब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में ज्यादा समय नहीं बचा है.

बीजेपी और बीपीएफ दोनों ने बीटीसी चुनावों के दौरान अपने रिश्तों में खटास पैदा की. यहां तक कि भगवा पार्टी के नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने बीपीएफ प्रमुख और पूर्व विद्रोही हगामा मोहिलरी को जेल में डालने की धमकी तक दे डाली.

वहीं, मोहिलरी ने सरमा पर लुईस बर्जर से लेकर शारदा चिट फंड घोटाला और रोज वैली चिट फंड घोटाले तक राज्य के सभी वित्त घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया. 2020 में तीसरे बोडो शांति समझौते की सफलता पर सवार भगवा पार्टी को यहां एक विस्तार मोड पर भी देखा जा रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा-बीपीएफ गठबंधन के बीच कड़वाहट, बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) में अपने आधार को मजबूत करने के बीजेपी के प्रयास के कारण है, जहां शुरुआत से ही बीपीएफ का वर्चस्व था.

इस क्षेत्र में बीपीएफ अपनी सीमा में भगवा चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने बोडो हृदयभूमि में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है ताकि यह बीटीआर के तहत आने वाले 12 विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित कर सके.

भाजपा को लगता है कि तीसरे बोडो समझौते के हिस्से के रूप में बीटीआर के गठन से कई विधानसभा क्षेत्रों में इसका फायदा मिलेगा, जहां बोडो निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

बीटीसी चुनाव में भाजपा और असोम गण परिषद (एजीपी) के बीच संबंधों को प्रभावित होने की संभावना है. भगवा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि बीटीसी चुनाव में जीत उनके बोडो मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकती है. हालांकि एजीपी के साथ गठबंधन जारी है, भगवा पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि क्षेत्रीय पार्टी के साथ सीट का बंटवारा पार्टी की ताकत के अनुसार किया जाएगा.

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इस बीच, कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने भी आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए BTC चुनावों का उपयोग किया है.

एआईयूडीएफ के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल और कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा दोनों को बीटीआर में रैलियों को संबोधित करने के लिए एक साथ मंच साझा करते हुए देखा गया, जिसे न केवल लोगों के मूड को भांपने के लिए बल्कि विपक्षी दलों के प्रस्तावित महागठबंधन को रोकने के रूप में देखा जा रहा है.

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