लखनऊ :उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे 2022 विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, उसी गति से राजनीतिक दलों की सक्रियता भी बढ़ती जा रही है. सभी दल मतदाताओं का रुख अपनी ओर मोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में परंपरागत रूप से किसी दल विशेष के लिए वोट करने वाले मतदाताओं के विषय में भी चर्चा हो रही है कि क्या इस बार भी मतदाता पुराने दलों के साथ ही रहेंगे या अपने रुख में बदलाव लाएंगे. ऐसे परंपरागत मतदाताओं में सबसे पहला नाम आता है बहुजन समाज पार्टी का. ऐसा माना जाता है कि दलित मतदाता की पहली पसंद बहुजन समाज पार्टी रही है. दलितों में भी बड़ी संख्या में जाटव मतदाता मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि इस बार सूरतेहाल में बदलाव देखने को मिल सकता है.
सत्ता के गलियारों में बीते साढ़े चार साल में ऐसे कई मौके आए हैं, जब मायावती की बहुजन समाज पार्टी पर भारतीय जनता पार्टी के साथ साठगांठ करने के आरोप लगे. उत्तर प्रदेश में राज्यसभा के चुनाव रहे हों या विधान परिषद के. समाजवादी पार्टी ने कई बार बसपा पर भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगाए हैं. बहुजन समाज पार्टी ने नए कृषि कानूनों को लेकर भी भाजपा के खिलाफ कभी आक्रामक तेवर नहीं दिखाए. बसपा ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिराने के प्रयास में भी भाजपा का साथ दिया. यही नहीं साढ़े चार साल में भाजपा सरकार को लेकर मायावती की अप्रत्याशित नरमी देखने को मिली. विपक्षी दल सपा और कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी को भाजपा की 'बी' टीम कहते रहे हैं. कहीं न कहीं भाजपा की सरकार से असंतुष्ट दलित मतदाता को लगता है कि बसपा के साथ रहकर भी वह भाजपा के खिलाफ नहीं हो पाएंगे, क्योंकि मायावती की भाजपा के प्रति नरमी से आभास होता है कि चुनाव बाद भाजपा-बसपा की गठबंधन सरकार बन सकती है. ऐसे में स्वाभाविक है कि बसपा का वह परंपरागत वोटर जो भाजपा के खिलाफ है, बसपा को वोट करने से बचेगा. इसका स्वाभाविक फायदा समाजवादी पार्टी को मिल सकता है, क्योंकि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को यही पार्टी सबसे कड़ी टक्कर देती दिखाई दे रही है.
यूपी में है 20 फीसद से ज्यादा है दलित आबादी
उत्तर प्रदेश को 24 करोड़ की आबादी में 20.7 फीसद से ज्यादा दलित हैं. इनके लिए राज्य की 14 लोकसभा और 86 विधानसभा की सीटें आरक्षित रखी गई हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 76 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल दलित आबादी का 55 फीसद जाटव मतदाता हैं. वहीं पश्चिमी यूपी में यह संख्या 68 फीसद हो जाती है. स्वाभाविक है कि प्रदेश की तमाम ऐसी सीटें हैं, जहां इस वर्ग के मतदाता का रुझान किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.
सपा ने कहा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं बसपा और भाजपा
इस संबंध में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा कहते हैं कि मायावती ने खुद कहा था कि सपा को सत्ता में नहीं आने देंगे. अखिलेश को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे. मायावती जो कर रही हैं, वह भाजपा की ताकत बढ़ाने के लिए कर रही हैं. जनता को यह मालूम हो गया है. मायावती का जो जनाधार था वह सपा में आ गया है. रोज तमाम बसपाई नेता अखिलेश से मिलते हैं सपा में शामिल होने के लिए, क्योंकि बसपा भाजपा को जिताना चाहती है और हम लोग भाजपा को हराने के लिए काम करते हैं. जो भाजपा चाहती है, वही बसपा का मकसद है. दोनों ही सपा को रोकना चाहते हैं. दोनों की एक ही नीति है.