हैदराबाद : किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बदलाव आते ही घरेलू कीमतों पर उसका असर पड़ना तय है. लेकिन कई बार कीमतें भी राजनीति के हिसाब से ऊपर और नीचे होती हैं. जैसे चुनाव नजदीक आते ही कीमतें बढ़नी बंद हो जाती हैं. हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान इसे देखा गया. एक बार जब चुनाव परिणाम आ गए, तो फिर से कीमतें बढ़ने लगीं.
पिछले एक महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 10 बार बढ़ चुकी हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर 100 रुपये से अधिक के भाव में तेल बेचा जा रहा है. तेल कंपनियों का रटा-रटाया सा जवाब होता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से कच्चा तेल आयात करने की वजह से हम यह फैसला लेते हैं.
2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल कीमत थी. उस समय पेट्रोल की कीमत 71 रुपये प्रति लीटर थी. डीजल का भाव 57 रुपये प्रति लीटर था. लेकिन आज का हाल देखिए क्या है.
प्रधानमंत्री जब यह कहते हैं कि पिछली सरकारों की नीतियों की वजह से ऊर्जा आयात पर निर्भरता खत्म नहीं हई, तो वह आधा सच ही बताते हैं.
कोविड के पहले पेट्रोल पर उत्पाद कर 19.98 रुपये था. अब प्रति लीटर 32.98 रुपये वसूले जा रहे हैं. कोविड के पहले डीजल पर 15.83 रुपये उत्पाद कर लिए जा रहे थे, अब 31.83 रु प्रति लीटर के हिसाब से चार्ज किया जा रहा है. ऊपर से राज्य सरकारों का वैट अलग है. आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर इसे जीएसटी के दायरे में ले आया जाए, तो इसकी कीमत 75 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. डीजल की कीमत 68 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. फिर भी सरकार इस सलाह पर काम नहीं कर रही है.