देहरादून(उत्तराखंड): उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के ग्राफ में लगातार इजाफा हो रहा है. इस संघर्ष में इंसानों के साथ जानवर भी जान गंवा रहे हैं. जान गंवाने वालों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है. क्योंकि, आधी आबादी आज भी पहाड़ों पर रहती है. महिलाएं ही चारा पत्ती, जलावन लकड़ी, मवेशी चराने आदि के लिए जंगल जाती हैं. जहां आए दिन उन पर जंगली जानवर हमला कर देते हैं, लेकिन पहाड़ी की महिलाएं बेहद साहसिक और निडर होती हैं. यही वजह है कि एक छोटी सी दरांती हो या कुदाल, इन्हीं से ये महिलाएं गुलदार और भालू तक से भिड़ जाती हैं.
पहाड़ की महिलाओं के साहसिक किस्से उत्तराखंड के अधिकतर गांवों में सुनने को मिल जाते हैं. ऐसे ही कुछ महिलाओं और बुजुर्गों से रूबरू कराते हैं. जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए खतरनाक जानवरों से मुकाबला किया. भले ही उनके शरीर पर गहरे घाव हो जाए या फिर उनकी जान जाते-जाते बची हो. ऐसे ही हकीकत से जुड़े किस्से हैं. जहां कोई दादी अपने पोते के लिए गुलदार से लड़ गईं तो कहीं सास अपनी बहू के लिए जान की बाजी लगा बैठी.
बहू के लिए गुलदार से भिड़ी और बचा ली जानः मामला ताजा है. बीती 7 जुलाई को रुद्रप्रयाग के फलई गांव की जानकी देवी और उनकी बहू पूनम जंगल में घास काटने जा रही थी. घास काटने के दौरान उन्हें कुछ हलचल दिखाई दी, लेकिन हवा से पेड़ों की टहनियों को हिलते देख उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया, लेकिन अगले ही पल जानकी देवी की बहू पूनम के ऊपर एक गुलदार ने हमला कर दिया.
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नई नवेली बहू के ऊपर गुलदार का हमला देखकर 62 वर्ष की जानकी देवी से रहा नहीं गया और अपनी जान की बिना परवाह किए वो गुलदार से भिड़ गईं. जानकी देवी ने ये भी नहीं सोचा कि जिस जानवर से वो भिड़ रही हैं, वो बेहद खतरनाक है. जानकी देवी का संघर्ष गुलदार से कुछ देर तक चलता रहा. गुलदार पूनम को निवाला इसलिए नहीं बना पाया, क्योंकि उसकी सास ने दरांती और पत्थरों से गुलदार पर हमला कर भागने पर मजबूर कर दिया.
गुलदार के हमले में जानकी देवी घायल आखिरकार गुलदार हमले से डरकर भाग गया. इस दौरान सास और बहू के शरीर पर गहरे घाल हो गए. हालांकि, बहू को प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिया गया, लेकिन जानकी देवी को हायर सेंटर में भर्ती कराया गया. जानकी के सिर समेत शरीर के अन्य हिस्सों पर घाव हो गए थे. फिलहाल, जानकी देवी सुरक्षित हैं, लेकिन उनकी बहादुरी को हर कोई सराह रहा है.
पोतियों के लिए गुलदार का काल बन गई थी टिहरी की चंद्रमा देवीः टिहरी के प्रताप नगर ब्लॉक के आबकी गांव की रहने वाली चंद्रमा देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 58 साल की चंद्रमा के साथ उनका भरा पूरा परिवार रहता है. बीती 24 जून को जिस वक्त चंद्रमा घर के अंदर थी, उसी वक्त अचानक से बच्चों के सीखने और पुकारने की आवाजें सुनाई दी. चंद्रमा देवी बाहर भागी तो पाया कि गुलदार उनकी दो पोतियों की तरफ झपट रहा है.
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चंद्रमा देवी ने बिना देरी किए डंडा लेकर गुलदार पर टूट पड़ी. गुलदार ने भी चंद्रमा पर अपने नाखूनों और दांत से वार कर दिया, लेकिन चंद्रमा देवी अपने पोतियों को बाहर से अंदर भगाने में कामयाब हो गईं. करीब 2 मिनट तक चले दोनों के बीच संघर्ष के दौरान चंद्रमा देवी को गंभीर चोटें आईं. जिसमें उनकी एक आंख के पास गहरी चोट और कमर के साथ पैरों में गुलदार ने दांतों से हमला कर दिया था. गनीमत रही कि चंद्रमा देवी लहूलुहान हालत में घर के अंदर आ गई. वहीं, परिजनों ने उन्हें तत्काल सीएचसी पहुंचाया. जिससे उनकी जान बच पाई.
कमला देवी ने गुलदार के हमले का जवाब ऐसे दियाः ऐसी ही संघर्ष की घटना कुमाऊं के रानीखेत स्थित ताड़ीखेत विकासखंड में 65 वर्षीया कमला देवी से हुई थी. बीती 24 जून को वो अपने गांव में घास काटने गई थी. तभी एक गुलदार ने पीछे से हमला कर दिया. गुलदार ने अपना पंजा सीधे उनके सिर पर मारा. जिसके बाद वो नीचे गिर गईं.
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हाथों में घास काटने का औजार लिए कमला देवी ने अपनी जान की परवाह किए बगैर गुलदार पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. गुलदार की आवाज और कमला देवी की चीख पुकार जैसे ही आस पास के लोगों ने सुनी, वो भी घटनास्थल की तरफ भागे. जब वो मौके पर पहुंचे तो कमला देवी के साथ गुलदार भी लहूलुहान मिला. इसके बाद लोगों ने गुलदार को किसी तरह से वहां से भगाया. आस पास के लोग उन्हें अब फौलादी कमला देवी भी कहते हैं.
51 साल की सावित्री देवी के लिए उठी थी पुरस्कार देने की मांगः पौड़ी में भी इसी तरह से सावित्री नाम की महिला ने गुलदार को नाकों चने चबवा दिया था. करीब 2 साल पहले 51 वर्षीया सावित्री देवी अपने खेतों में काम कर रही थीं. तभी घात लगाकर बैठे गुलदार ने उनके ऊपर हमला कर दिया. सावित्री देवी ने हिम्मत दिखाते हुए दरांती से गुलदार के कमर पर वार किया.
हालांकि, तब तक गुलदार ने उनके शरीर पर काफी चोट पहुंचा दी थी, लेकिन एक के बाद एक सावित्री देवी ने भी गुलदार पर वार कर दिए. ऐसे में गुलदार को अपनी जान बचाने के लाले पड़ गए. सावित्री देवी को घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां उनकी जान बच पाई. अब सावित्री देवी को पुरस्कार देने की मांग हो रही है.
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भालू के लिए काल बन गई थी जलमा देवीः ऐसा नहीं है कि सिर्फ उत्तराखंड में महिलाओं के किस्से गुलदार से लड़ने से जुड़े हैं. बल्कि, भालुओं से भिड़ी हैं. ऐसा ही मामला उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लॉक से सामने आया. जहां जलमा देवी भालू से भी लड़ गई थीं. जलमा देवी सुबह करीब 6:30 बजे जब अपने खेतों में काम कर रही थी, तभी एक भालू ने उनके ऊपर हमला कर दिया.
विशालकाय भालू के लिए जलमा देवी ने मानो मां दुर्गा का रूप धारण कर लिया हो. जलमा देवी पर जब भालू ने हमला किया, तब उन्होंने समझ लिया था कि अब शायद ही जान बच पाए, लेकिन 45 साल की इस महिला ने भालू से दो-दो हाथ करके न केवल अपनी जान बचाई, बल्कि अपने खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे भालू को दूर भगाया. इस भालू की वजह से कई महिलाओं ने सुबह खेतों में जाने का काम बिल्कुल बंद कर दिया. इस हमले में महिला ने न केवल भालू को घायल किया. बल्कि, उसे अपनी सीमा से भी बाहर तक खदेड़ दिया.
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महिला ही नहीं बुजुर्ग पुरुष भी जानवरों से भिड़ेः उत्तराखंड में बुजुर्ग महिलाएं ही नहीं, बल्कि बुजुर्ग पुरुष भी कई बार जंगली जानवरों से लोहा ले चुके हैं. ऐसे ही कहानी कोटद्वार के रहने वाले मनवर सिंह की है. बीते 8 जून को जब बुजुर्ग अपने खेत में फसल बोने का काम कर रहे थे. एक हाथ में कुदाल लिए मनवर सिंह सुबह करीब 7:30 पर अपनी ही धुन में थे और फसल के साथ-साथ कुछ पौधे लगाने के लिए गड्ढा खोद रहे थे. तभी दो गुलदारों ने उन्हें घेर लिया.
मनवर सिंह कुछ समझ पाते इतने में ही दोनों ने उनके ऊपर झपट्टा मार दिया. मनवर सिंह ने अपने हाथों में कुदाल लेकर एक गुलदार के ऊपर हमला कर दिया और वहां से भागने लगे. मनवर बताते हैं कि भागते हुए उन्होंने देखा की एक गुलदार तो रुक गया, लेकिन एक पीछे आ रहा था. तभी उन्होंने उस गुलदार के ऊपर हमला किया और शोर मचाया. इस हमले में मनवर के पैर में छोटी सी चोट आई, लेकिन वो सुरक्षित नीचे तक आ गए. इसके बाद से अब तक इस क्षेत्र में फिलहाल गुलदार नहीं दिखा.
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क्या कहते हैं जानकारः राजाजी नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक सनातन सोनकर कहते हैं कि उत्तराखंड में गढ़वाल हो या कुमाऊं या फिर तराई के इलाके, अमूमन हर जगह वन्यजीवों के हमले के मामले देखने को मिलते हैं. जिसमें जंगली जानवरों को ही अपनी जान बचाना भारी पड़ जाता है. पहाड़ों पर रहने वाले लोग जानते हैं कि उनका सामना कभी भी किसी भी जानवर से पड़ सकता है. राज्य की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी ही है.
अगर यहां पर रहना है तो इन सब बातों को ध्यान में रखना होगा. सभी महिलाएं या पुरुष इतने खुश नसीब नहीं होते. गुलदार घर के आंगन से बच्चों को उठाकर भी ले जाता है. कई बार इन हमलों में लोगों की जान भी गई है. पहाड़ों में रहने वाले लोगों को सरकार प्रोत्साहित करें और ऐसे लोगों को सम्मान दें. तभी उत्तराखंड में पलायन जैसी समस्या का समाधान हो सकता है. क्योंकि, कई लोग सिर्फ इसलिए ही मैदानी इलाकों में आ जाते हैं. क्योंकि, उन्हें लगता है कि यहां उनका जीवन सुरक्षित नहीं है.
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