मुंबई:बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के एक मामले में एक आरोपी को जमानत दे दी. आरोपी पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2019 में एक सात साल की बच्ची दोस्त के साथ खेल रही थी. दोपहर में जब वह लौट रही तो उसके साथ घटना हुई. दोस्त ने उसकी की मां को बताया कि दाढ़ी वाले व्यक्ति ने नाबालिग के कपड़े उतार दिए, उसकी गुदा फैला दी और उसमें लाल पानी डाल दिया. मां ने इसकी शिकायत पुलिस से की. पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. अगस्त 2020 में, एक सत्र अदालत ने आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया.
उच्च न्यायालय में आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि धारा 377 के तहत आरोप साबित नहीं हुआ है. न्यायमूर्ति भारती डांगरे इस दलील से सहमत दिखीं. उन्होंने कहा, 'हाथों से गुदा का विस्तार करने और उसमें कुछ पदार्थ डालने का कथित कार्य, प्रथम दृष्टया, 'शारीरिक संभोग' शब्द में शामिल नहीं किया जा सकता है, इसमें अनिवार्य रूप से मांस या कामुक आनंद शामिल होना चाहिए.'
न्यायाधीश ने कहा कि अप्राकृतिक अपराध को परिभाषित नहीं किया गया है, जैसा कि धारा 377 में संकेत दिया गया है, जो कोई भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ प्रकृति के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाता है, उसे आजीवन कारावास या 10 साल तक की सजा हो सकती है. धारा 377 शारीरिक संभोग और धारा 375 (बलात्कार) में यौन संभोग के रूप मे स्पष्ट रूप से अलग है.'