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बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश: सीनियर सिटीजन एक्ट में बहू का जिक्र नहीं, गुजारा भत्ते का निर्देश नहीं दे सकते - बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट की धारा 2 (ए) में ‘बच्चों’ के रूप में बेटा, बेटी, पोता और पोती शामिल हैं, लेकिन बहू का उल्लेख नहीं है. इसलिए, सास-ससुर के लिए गुजारा भत्ता देने का निर्देश बहू को नहीं दिया जा सकता. वह भी तब, जब बहू के पास आय का साधन नहीं हो या उसकी आय का कोई प्रमाण कोर्ट में दाखिल नहीं हो.

बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश:
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Published : May 21, 2022, 8:56 AM IST

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट की धारा 2 (ए) में ‘बच्चों’ के रूप में बेटा, बेटी, पोता और पोती शामिल हैं, लेकिन बहू का उल्लेख नहीं है. इसलिए, सास-ससुर के लिए गुजारा भत्ता देने का निर्देश बहू को नहीं दिया जा सकता. वह भी तब, जब बहू के पास आय का साधन नहीं हो या उसकी आय का कोई प्रमाण कोर्ट में दाखिल नहीं हो. हाईकोर्ट ने कहा कि हमें बहू को सास को मेंटेनेंस अमाउंट का भुगतान करने के लिए इस तरह के निर्देश के बारे में आपत्ति है. मूल रिकॉर्ड को देखने पर हमें एक भी दस्तावेज नहीं मिलता है जिसमें दिखाया गया हो बहू की आय का कोई साधन है. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस माधव जामदार की पीठ ने माता-पिता और सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल के भरण-पोषण और कल्याण के आदेश को रद्द कर दिया.

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हालांकि अदालत ने बेटे और बहू को मां की शिकायत के आधार पर आलीशान जुहू बंगला खाली करने के निर्देश को बरकरार रखा. बेंच ने बेटे को निर्देश दिया कि वह ट्रिब्यूनल द्वारा तय की गई 25,000 रुपये की पूरी राशि अपनी मां को हर महीने दे. हाईकोर्ट ने बहू को किसी भी मौद्रिक दायित्व से मुक्त कर दिया. अदालत ने हीरा व्यापारी पति को अपनी पत्नी और बच्चों के परिवार के घर के बाहर रहने की व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि बेटा, दो बेटों का पिता और अभिभावक होने के नाते कानूनी रूप से उन्हें अपनी स्थिति, आय और संपत्ति के अनुरूप आवास प्रदान करने के लिए बाध्य है.

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साथ ही बेटे को इस संपत्ति से बेदखल करने की अपील भी स्वीकार कर ली. केस में 79 और 77 वर्ष की आयु के सीनियर सिटीजन दंपती ने ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया था. ट्रिब्यूनल ने बेटे और बहू को पैतृक बंगला खाली करने और संयुक्त रूप से 25,000 रुपए प्रतिमाह भुगतान का आदेश दिया था. बहू ने 2019 के इस आदेश का विरोध करते अपनी कोई आय नहीं होने के आधार पर गुजारा भत्ता देने में असमर्थता जताते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी. कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि बुजुर्ग महिला की दैनिक जरूरतों पर ध्यान देना बेटे-बहू की जिम्मेदारी है. वृद्ध माता-पिता को शांति का जीवन नहीं देना, उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न है.

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