नई दिल्ली :उत्तर प्रदेश. उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में 2022 के शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा ने आखिरी चुनाव बंगाल विधानसभा का लड़ा था जहां पार्टी की रणनीति बहुत हद तक फेल हो गई थी. उस चुनाव में पार्टी का प्रचार बहुत ही ज्यादा आक्रामक था.
भाजपा सूत्रों की माने तो इस चुनाव के बाद हुए मंथन में यह बात निकल कर सामने आई है कि वार-पलटवार की इस लड़ाई में कहीं ना कहीं पार्टी को इस आक्रामकता ने काफी नुकसान पहुंचाया है इसलिए पार्टी इस बार चुनावी रणनीति बनाने में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.
भाजपा अब किसी को खुश करने या नाराज करने की प्रक्रिया में नहीं पड़ना चाहती, बल्कि मौजूदा टीम के साथ ही अतिरिक्त बल संख्या बढ़ाना चाहती है. यही वजह है कि नए लोगों को बड़ी संख्या में चुनावी कार्यों से जोड़ा भी जा रहा है और इन बातों के बीच तालमेल बिठाते हुए ही चुनावी ताना-बाना भी बुना जा रहा है. अगर देखा जाए तो सबसे ज्यादा पार्टी जातीय समीकरण पर ध्यान देते हुए ही इन प्रदेशों में आगे बढ़ रही है. इसे लेकर कुछ जरूरी संगठनात्मक बदलाव भी किए गए हैं.
भाजपा खासतौर पर उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी स्तर पर नियुक्तियों के साथ-साथ बेहतर समन्वय पर भी जोर दे रही है. क्योंकि पार्टी को डर है कि यदि उत्तर प्रदेश में किसी भी पदाधिकारी को पद से हटाया गया तो उस गुट की नाराजगी बढ़ सकती है जिसका खतरा पार्टी अभी मोल नही लेना चाहती. वहीं, दूसरी तरफ अब नई नियुक्ति वाले लोग चुनाव तक बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएंगे. नेताओं के संपर्क कार्यक्रमों की तैयारियों में ज्यादा से ज्यादा भीड़ कैसे जुटाई जाए, इस रणनीति पर भी पार्टी में गहरा मंथन चल रहा है.
सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान
अगले महीने नवरात्र की शुरुआत के साथ पार्टी खासतौर पर उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नए चुनावी कार्यक्रम लेकर भी मैदान में उतरने जा रही है जिसमे संपर्क अभियान को केंद्रीय स्तर के नेताओं के साथ केंद्रित किया जाएगा. इसके अलावा यदि सूत्रों की माने तो उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन करने वाले भाजपा विधायकों के भी टिकट कटने तय हैं. उनकी जगह पर नए और कम उम्र के उम्मीदवारों को तरजीह दी जाएगी. पार्टी चुनाव प्रचार में माइक्रोमैनेजमेंट पर ध्यान देगी और इसके लिए सोशल इंजीनियरिंग पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है.