रूस का यूक्रेन पर हमले को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? क्या आप मानते हैं कि यूक्रेन अमेरिका के हाथों की कठपुतली बन गया है और उनकी वजह से युद्ध हुआ ?
नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता है. यह बात सही है कि सोवियत संघ कभी दुनिया का सुपरपावर हुआ करता था. लेकिन अब उसकी वैसी स्थिति नहीं है. पुतिन अलोकतांत्रिक तरीके के काम कर रहे हैं. उन्होंने तो कहा था कि हम तीन दिनों में ही युद्ध समाप्त कर देंगे, लेकिन यह 34वें दिन में प्रवेश कर चुका है. अमेरिका और उनके सहयोगी देश उनकी मदद कर रहे हैं. अब तो यूक्रेन के प्रति सहानुभूति पूरी दुनिया से आ रही है. वे बहुत ही बहादुरी से लड़ाई लड़ रहे हैं. रूस उनकी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है. वे आम नागरिकों को भी अपना निशाना बना रहे हैं.
लेकिन रूस तो यह दावा कर रहा है कि उन पर सुरक्षा का खतरा उत्पन्न हो गया है ?
देखिए अब तो यू्क्रेन ने साफ तौर पर घोषणा कर दी है कि वह नाटो में शामिल नहीं होगा. और यूक्रेन ने रूस के किसी भूभाग पर आक्रमण भी नहीं किया. 1992 तक वे दोनों एक साथ थे. उसके बाद वे अलग-अलग देश बनने पर सहमत हुए. दोनों संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं. पुतिन ने यूक्रेन की ताकत को लेकर गलत अनुमान लगाया, अब उन पर अधिक दबाव बनता जा रहा है.
क्या संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल नहीं उठ रहे हैं ?
देखिए संयुक्त राष्ट्र तो सिर्फ बहस करने वाली जगह है. शांति सेना भेजने तक उनकी भूमिका ठीक है. लेकिन जब भी पी-5 के देश युद्ध में शामिल होते हैं, तो यूएन निष्प्रभावी हो जाता है. यूएन में तो आज भी रूस नहीं, यूएसएसआर ही लिखा हुआ है.
नई दिल्ली ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर जिस तरह से प्रतिक्रिया दी है, उस पर आप क्या कहेंगे ?
हम रूस से हथियार खरीदते रहे हैं. यह सही है. लेकिन यह अफवाह फैलाना कि रूस हमेशा ही भारत का साथ देता रहा है, गलत है. यूक्रेन को पाकिस्तान का साथी बताना भी गलत है. 1992 से पहले तो भारत का साथ यूएसएसआर देता था. उस समय यूक्रेन भी उसका ही हिस्सा था.
लेकिन यूक्रेन ने भारत के परमाणु परीक्षण का विरोध किया था.
ऐसा है तो अमेरिका ने भी विरोध किया था, यूके ने भी विरोध किया था, दुनिया के दूसरे देशों ने भी भारत का विरोध किया था. लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है. आज इन देशों से हमारा अच्छा संबंध है. हमें यूक्रेन के साथ खड़ा होना चाहिए. उन्हें मदद करनी चाहिए.
अभी चीन के विदेश मंत्री भारत आए थे. इस पर आप क्या कहना चाहेंगे, क्योंकि वे यहां आने से पहले अफगानिस्तान भी गए थे ?
हां, चीन के विदेश मंत्री ने तो हक्कानी से भी मुलाकात की. वह अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हैं. वह तो यूएन द्वारा चिन्हित आतंकी है. उसके बाद चीन के विदेश मंत्री दिल्ली आए. चीन ने हक्कानी को आश्वस्त किया है कि वह बीआरआई को पीओके के रास्ते से ले जाएंगे. इसलिए मेरा मानना है कि उन्हें भारत आने के लिए नहीं कहना चाहिए था. लेकिन यहां तो विदेश मंत्री और एनएसए दोनों उनसे मिलने चले गए. चीन के विदेश मंत्री ने फिलीस्तीन और कश्मीर को एक जैसा माना. चीन ने हमारे चार हजार किलोमीटर की जमीन पर कब्जा किया हुआ है. एलएसी पर सहमति के दौरान तय हुआ था कि जब तक स्थिति नहीं सुधरती है, तब तक ऑक्साई चीन पाकिस्तान के हिस्से में रहेगा. इसके बावजूद चीन ने इसका उल्लंघन किया. इस लाइन को क्रॉस किया. देपसांग तक आ पहुंचे. उसे ले लिया. डेमचॉक पर खतरा उत्पन्न हो गया है. हमारे विदेश मंत्री की भाषा आत्म समर्पण वाली है.
चीन भी तो कह रहा है कि क्वाड नाटो जैसा है ?
चीन इस तरह की बात बोल रहा है तो फिर बताइए कि हम ब्रिक्स का हिस्सा हैं या नहीं. आप भी उससे बाहर निकल आइए.
चीन से लगी सीमा पर रेजॉल्यूशन कैसे होगा ?
चीन को पहले वापस लौटना होगा. भारत को ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेना चाहिए. मोदी ने मुझे ब्रिक्स बैंक का अध्यक्ष बनने का ऑफर भी दिया था. लेकिन हमने रिजेक्ट कर दिया.
अफगानिस्तान को लेकर भारत की क्या स्थिति है ?
हमारे पास कोई नीति नहीं है. जैसे ही अमेरिका वहां से बाहर निकला, हम निकल पड़े. हमने जो भी कुछ बनाया, सब गया. भारत के लिए खतरे वाली स्थिति है.
चीन के राष्ट्रपति ने कहा है कि हम द. एशिया में भारत के पारंपरिक रोल का सम्मान करते हैं.