लखनऊ : प्रदेश के नेताओं में लग्जरी गाड़ियों में चलकर भौकाल गांठने का चस्का पुराना है. इस ठसक को पूरा करने के लिए कभी-कभी लोग गलत रास्ता भी अख्तियार कर लेते हैं. कुछ इसी तरह का एक सनसनीखेज मामला पिछले दिनों हमारी पड़ताल में सामने आया. राजधानी के एक वर्कशॉप पर एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त संदिग्ध फॉर्च्यूनर गाड़ी बनने के लिए पहुंची. इस गाड़ी का बीमा न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से था और वाहन स्वामी की ओर से क्लेम मांगा गया था. इस गाड़ी पर दोनों ओर मोटे अक्षरों में 'विधान परिषद सदस्य' लिखा था और विधान भवन का पास भी लगा था. क्लेम का सर्वे करने पहुंचे सर्वेयर को पड़ताल के दौरान चेचिस में गड़बड़ी नजर आई और जब उन्होंने पत्राचार किया, तो पता चला कि चेचिस किसी और गाड़ी की है. इसके बाद ईटीवी भारत की पड़ताल में कई और सनसनीखेज खुलासे हुए.
एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त कार वर्कशाॅप में आई थी बनने :विगत 08 सितंबर 2023 को चिनहट स्थित एक वर्कशॉप में एक फॉर्च्यूनर गाड़ी बनने के लिए आई. 2014 मॉडल की इस गाड़ी का नंबर था UP 15 CL 9394 और मालिक का नाम फैसल बताया गया. गाड़ी की चेचिस नंबर MBJ11JV6104024897-0114 था. वाहन स्वामी की ओर से जब क्लेम किया गया, तो उसका सर्वे अलॉट हुआ वरिष्ठ सर्वेयर ओमवीर सिंह को. ओमवीर सिंह ने जब मौके का मुआयना किया, तो उन्हें कुछ कागजों की जरूरत महसूस हुई. साथ में ही उन्हें यह भी आभास हुआ कि गाड़ी में कहीं कोई गड़बड़ी जरूर है. इसके बाद ओमवीर सिंह ने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) में दर्ज वाहन स्वामी के पते पर एक पत्र भेजा.
इसके जवाब में वाहन मालिक फैसल ने चौंकाने वाला जवाब दिया. ओमवीर सिंह बताते हैं 'जब हमारी फैसल से बात हुई, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. फैसल ने उन्हें बताया कि उनकी गाड़ी मेरठ में है और वह तो लखनऊ गए ही नहीं. उनकी गाड़ी का कोई एक्सीडेंट भी नहीं हुआ है. ओमवीर सिंह ने जब फैसल से गाड़ी के कागज मंगाए और तस्दीक की तो पता चला कि गाड़ी की आरसी से भी छेड़छाड़ कर कई बदलाव किए गए हैं. यही नहीं फैसल के आधार से भी छेड़छाड़ हुई है.'
गाड़ी की चेचिस में मिली गड़बड़ी :ओमवीर सिंह बताते हैं कि 'इसके बाद उन्होंने बीमा करने वाली न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के वाराणसी कार्यालय से डॉकेट की कॉपी मांगी, जिसका मेल भी कंपनी की ओर से वाराणसी कार्यालय में प्रबंधक विजय यादव को किया गया है. वाराणसी कार्यालय ने डॉकेट (वह दस्तावेज, जो बीमा करते समय लिए जाते हैं, जैसे चेचिस का इंप्रेशन और फोटो आदि) ढूढ़े मिल नहीं रहा है और मिलते ही भेजा जाएगा. उन्होंने बताया कि बीमा की कॉपी में जो चेचिस नंबर दर्ज है वह वास्तविक गाड़ी का है, जो गाड़ी मेरठ में फैसल के पास है, लेकिन लखनऊ में एक वर्कशॉप में खड़ी गाड़ी में चेचिस दूसरी लगी थी, जो साफ तौर पर टेंपर की हुई पता चलती है. इसके बाद उन्होंने पूरे मामले की सूचना बीमा कंपनी को दी. वह कहते हैं कि यह एक अजीब तरह का मामला है. एक ही नंबर की दो गाड़ियां चल रही हैं और दोनों के चेचिस नंबर भी अलग-अलग हैं. इसका मतलब कि एक गाड़ी संदिग्ध है और उसमें किसी और गाड़ी की चेचिस काट कर लगाई गई है. उन्होंने बताया कि लखनऊ में जिसने भी गाड़ी बनाने डाली उसने गाड़ी के वास्तविक मालिक के नाम से ही डाली. उनके आधार और आरसी की टेंपर की हुई कॉपी भी लगाई. जब मामला खुलने लगा, तो उसने क्लेम छोड़ दो लाख रुपये नकद जमा किए और 1,89,681 रुपये चेक से देकर गाड़ी उठा ली.'
दस्तावेजों के आधार किया गाड़ी का इंश्योरेंस :ईटीवी के वरिष्ठ संवाददाता गोपाल मिश्रा मामले की पड़ताल करते हुए वाराणसी स्थित न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिस पहुंचे और शाखा प्रबंधक विजय यादव और एजेंट विजय दुबे से मामले की पड़ताल की. शाखा प्रबंधक विजय यादव ने बताया कि 'उन्होंने गाड़ी का इंश्योरेंस दस्तावेजों के आधार पर किया है, हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें 'प्री इंस्पैक्शन यानी पीआई' के कागज नहीं मिल रहे हैं. यदि कागज मिल जाएं, तो वह ज्यादा बताने की स्थिति में होंगे. अब यह आश्चर्य की बात है कि जिस गाड़ी में ऐसा मामला सामने आया है, उसकी पीआई के कागज कहां, कैसे और कितने गुम कर दिए? शाखा प्रबंधक विजय यादव मानते हैं कि यह हो सकता है कि चेसिस का नंबर पीआई में गलत आया हो, लेकिन उसके बजाय चेचिस नंबर आरसी से दर्ज कर दिया गया हो. जिसकी वजह से गड़बड़ी पकड़ में नहीं आई, वहीं बीमा करने वाले एजेंट विजय दुबे बताते हैं कि स्नातक निर्वाचन के विधायक उमेश द्विवेदी की सारी गाड़ियों का इंश्योरेंस यहीं से होता है. इस गाड़ी का इंश्योरेंस करने के लिए भी उनकी ओर से कहा गया था. इस पर हमने उन्हें बताया कि गाड़ी की फोटो स्थानीय स्तर पर करानी होगी. मैं अस्पताल में था इस कारण उनको कागज भेज दिए. वहां फोटो होने के बाद मैंने बीमा कर दिया.'