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MP: सिंधिया व तोमर की गुटबाजी और कुप्रबंधन से ग्वालियर में हारी BJP, अब विधानसभा चुनाव की राह कठिन - कुप्रबंधन का शिकार रहा मेयर का चुनाव

मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में सबसे हॉट सीट कही जाने वाली ग्वालियर नगर निगम के परिणाम को लेकर बीजेपी अचंभित है. ग्वालियर में कांग्रेस ने इतिहास को बदल दिया है. पिछले 57 साल से यहां बीजेपी का महापौर काबिज रहा है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ ही पूरी राज्य सरकार ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी, फिर भी हार गए. माना जा रहा है कि इस चुनाव में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण गुटबाजी और कुप्रबंधन है. अब आगे की राह और कठिन दिख रही है. (BJP lost in Gwalior due to factionalism) (BJP lost in Gwalior due to mismanagement) (Factionalism of Scindia and Tomar)

BJP lost in Gwalior due to factionalism and mismanagement
गुटबाजी और कुप्रबंधन से ग्वालियर में हारी बीजेपी

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Published : Jul 18, 2022, 10:02 PM IST

ग्वालियर।ग्वालियर नगर निगम में पिछले 57 साल से बीजेपी जीतती आ रही है. लेकिन इस बार कांग्रेस ने यहां कमाल कर दिया. अब सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि बीजेपी क्यों हारी. बीजेपी की हार के पीछे सबसे पहला कारण यह है कि इस चुनाव में जमकर गुटबाजी देखने को मिली. जब से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. उसके बाद इस अंचल में गुटबाजी और बढ़ गयी है. सबसे ज्यादा गुटबाजी बीजेपी के दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच है. अंदर ही अंदर ये दोनों दिग्गज नेता अपने वर्चस्व के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. यह लड़ाई इस बात को लेकर है कि ग्वालियर- चंबल संभाग का बीजेपी का सबसे बड़ा नेता कौन है. यही वर्चस्व की लड़ाई निकाय चुनाव में देखने को मिली.

गुटबाजी और कुप्रबंधन से ग्वालियर में हारी बीजेपी

उम्मीदवार पर अंत तक चली माथापच्ची :बीजेपी में महापौर उम्मीदवार के लिए यहां पर जमकर मंथन हुआ लेकिन इसके बावजूद महापौर प्रत्याशी का नाम फाइनल नहीं हो पा रहा था. ये दोनों दिग्गज नेता अपने-अपने समर्थकों को महापौर प्रत्याशी बनवाना चाहते थे. यही कारण था कि ग्वालियर महापौर का नाम फाइनल नहीं हो पा रहा था. बीजेपी की तरफ से कई कोर कमेटी की बैठक में हुई, लेकिन इसके बावजूद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर अपने अपने समर्थक के नाम पर अड़े रहे. जब यह बात नेतृत्व के पास पहुंची तो जल्दबाजी में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने ग्वालियर महापौर प्रत्याशी के रूप में सुमन शर्मा को फाइनल किया और इसके बाद इस नाम पर दोनों ही नेताओं की सहमति बन गई.

कुप्रबंधन का शिकार रहा मेयर का चुनाव :ग्वालियर नगर निगम के चुनाव में पहली बार देखा गया कि बीजेपी में जिस तालमेल और प्रबंधन के साथ चुनाव लड़ा जाता है वैसा इस चुनाव में नहीं देखने को मिला. इस चुनाव में बीजेपी के की तरफ से कोई रणनीति नहीं देखने को मिली और यही हार का सबसे बड़ा कारण रहा. इसके साथ ही बताया जा रहा है कि ग्वालियर की कमान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के हात में थी. यही कारण है कि उन्होंने अपने चेहते नेताओं को ग्वालियर नगर निगम की कमान सौंप दी, जिनकी अंचल में कोई पकड़ नहीं थी और ना ही कोई पहचान थी. इस कारण इस चुनाव में कुप्रबंधन देखने को मिला.

गुटबाजी और कुप्रबंधन से ग्वालियर में हारी बीजेपी

सिंधिया और तोमर के बीच गुटबाजी :केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक नेता भी इस चुनाव में खुलकर मैदान में नहीं दिखाई दिए और ना ही वह प्रचार प्रसार के दौरान नजर आए. इसके साथ ही इस चुनाव में यह भी चर्चा हो रही थी कि बीजेपी महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के गुट से आती है. यही कारण है कि सिंधिया समर्थक कार्यकर्ता निकाय चुनाव में खुलकर बाहर नहीं आए. इसके साथ ही जिन सिंधिया समर्थकों को टिकट नहीं मिल पाया, उनकी भी नाराजगी देखने को मिली. वहीं राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा थी कि ग्वालियर महापौर का चुनाव जितना सिंधिया की साख का सवाल है कि इस कारण नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक ने भी इस चुनाव से दूरी बना कर रखी. मतलब इस पूरे निकाय चुनाव में सिंधिया और तोमर के बीच गुटबाजी हावी रही.

बीजेपी के कई बड़े नेताओं में दिखी नाराजगी :ग्वालियर नगर निगम महापौर प्रत्याशी को लेकर बीजेपी में शुरुआत से ही गुटबाजी देखने को मिली. यही कारण है कि सबसे अंतिम मुहर महापौर प्रत्याशी पर लगी. महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा का नाम घोषित होने के बाद सबसे बड़ी नाराजगी पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा में देखी गई. क्योंकि कहा जा रहा था कि पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा अपनी बहू को महापौर प्रत्याशी बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे और इनके नाम पर सिंधिया भी सहमत थे, लेकिन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहमत नहीं थे. इसके बाद प्रचार प्रसार के दौरान पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा लगातार नाराज दिखे. उन्हें बीजेपी के मंच पर जगह नहीं दी गई.

ग्वालियर में बीजेपी की हार के ये हैं प्रमुख कारण :

  • अंचल के दोनों दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच गुटबाजी
  • इन दोनों जगह नेताओं की गुटबाजी के कारण महापौर प्रत्याशी के नाम पर जल्दबाजी
  • बीजेपी के नेता और कार्यकर्ताओं में नाराजगी
  • ग्वालियर में पहली बार इस निकाय चुनाव में बीजेपी की तरफ से कुप्रबंधन
  • भाजपा महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा की कार्यकर्ताओं में पकड़ न होना
  • आम जनता के बीच कोई पहचान नहीं और सक्रियता की कमी
  • बीजेपी महापौर प्रत्याशी में चुनाव लड़ने का कोई भी अनुभव नहीं

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विधानसभा चुनाव जीतना बड़ी चुनौती : अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सत्ता के इस सेमीफाइनल के बाद आगामी साल विधानसभा का चुनाव होना है. विधासनभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का बड़ा असर देखने को मिल सकता है. क्योंकि जिस तरीके से ग्वालियर- चंबल अंचल में बीजेपी के दिग्गज नेताओं में गुटबाजी हावी है. ऐसे में अगर यह गुटबाजी जारी रही तो इसका असर आगामी विधानसभा में देखने को मिलेगा. क्योंकि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह की वर्चस्व की लड़ाई के बीच कई ऐसे बीजेपी के नेता हैं, जिन्हें पार्टी से दरकिनार कर दिया है और यह नेता अंदर ही अंदर बीजेपी का विरोध कर रहे हैं. इसके साथ ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए दर्जनभर सिंधिया समर्थक नेता भी लगातार टिकटों को लेकर आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तैयार बैठे हैं. इसके साथ ही जो बीजेपी के नेता है, वह भी टिकट की आस में पार्टी के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. (BJP lost in Gwalior due to factionalism) (BJP lost in Gwalior due to mismanagement) (Factionalism of Scindia and Tomar)

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