नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने तीनों राज्यों में इस बार पहले रिजल्ट के बाद और अब सीएम चेहरे के बाद लोगों को चौंका दिया. हालांकि प्रधानमंत्री को ठीक से जानने वाले लोग ये जानते हैं कि वर्तमान निर्णय नरेंद्र मोदी स्टाइल का हिस्सा रहा है. लेकिन इन चेहरों ने जनता से लेकर नेताओं को चौंका जरूर दिया है और बीजेपी ने इन निर्णयों से तीनों राज्यों के माध्यम से जातिगत व्यवस्था को तो साधा ही है, साथ ही पार्टी फर्स्ट के नारे को भी आत्मसात किया है.
बीजेपी का हमेशा से नारा रहा है, नेशन फर्स्ट. पार्टी ये भी कहती रही है कि पार्टी फर्स्ट लीडर बाद में आते हैं, यानी कितने बड़े भी दिग्गज नेता क्यों न हों, यदि पार्टी ने फैसला ले लिया तो वो मानने को बाध्य हैं और यही वजह है कि आज एक आम नेता या कार्यकर्ता भी पार्टी में किसी भी पद के सपने देख सकता है. ये है आधुनिक बीजेपी की दशा और दिशा भी. यदि कहा जाए तो शाह और मोदी के कार्यकाल ने समय-समय पर उन नेताओं को ये अहसास दिला दिया, जो अपने आप को पार्टी से बड़ा समझने लगे थे.
तीन राज्यों के मुख्यमंत्री के चेहरे ने अब पार्टी के सभी नेताओं के लिए दरवाजे खोल दिए है, या दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि इन तीनों राज्यों के फैसले में पार्टी ने जातीय समीकरण को भी साधा है. जहां छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश में ओबीसी और अब राजस्थान में अगड़ी जाति के मुख्यमंत्री देकर भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोटर्स को एक संदेश दिया है, वहीं खासतौर पर उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे क्षेत्र में जातिगत समीकरण को भी साधा है.